ट्रेन में सफ़र करते समय मिले थे वे तीनों --------------
१७ -१८ वर्ष का लड़का, अच्छा भला लग रहा था, हट्टा-कट्टा, पैर में एक घाव खरोंच जैसा बनाया हुआ लग रहा था जिस पर से हल्का खून रिस रहा था, चेहरे पर मुस्कान कुटिलता की कहानी सी कह रही थी ........पहले एक चक्कर पूरी बोगी में लगाया ---------
फिर वापसी में हाथ फैलाकर सबसे पैसे मांग रहा था जो उसकी ओर ध्यान नहीं दे रहें थे उन्हें हाथ से हिला-हिलाकर अपना घाव दिखा रहा था ...........................मैंने अपना चेहरा घुमा लिया था, सामने बैठे सज्जन ने २ रुपये का सिक्का उसके हाथ पर रख दिया था ..................मुझे ठीक नहीं लगा था....................
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जैसा की हमेशा होता है कहीं जाना हो तो एक बेग की चेन या तो टूटी रहती है या रास्ते में टूट जाती है ........इस बार मेरे पर्स की चेन टूटी हुई थी, पर दूसरा न होने के कारण वही लेकर सफ़र करना पड़ रहा था ...........सोच लिया था ........ट्रेन में ही------ जो ठीक करने वाला आता है, उसी से करवा लूंगी, इस बार मेरी भाभी ने भी उसी से ठीक करवाई थी ........सो रास्ते में जब वो १४-१५ वर्ष का बच्चा मिला तो बेटी की और देखकर चेहरे पर मुस्कान आ गई मेरे ........उसे पर्स दिखाया पूछा --कितने में करोगे ?
-----lok बदलना पड़ेगा ,२० रुपये लगेगे |
--------ठीक है कर दो ............और उससे चेन ठीक करवा के २० रुपये दे दिए .....पैसे लेकर जब वो चला गया तो बेटी से कहा इतने में तो अपने यहाँ पूरी चेन ही नई लगा देता .........साथ बैठे सज्जन बोल पड़े थोडा भाव करती तो १० में कर के देता ........अब मुझसे चुप नहीं रहा गया बोल पड़ी कम-से कम काम तो कर रहा है ...............पता नहीं कितना कमा पाता होगा दिन भर में ......इससे भाव करके क्या फर्क पड़ेगा ????............मुझे अच्छा नहीं लगा था .................
थोड़ी -ही देर में आवाज सुनाई दी दस में तीन ,दस में तीन ....देखा तो १०-१२ वर्ष का एक लड़का हाथो में पेपर -सोप के पेकेट पकडे आवाज लगा रहा था ...............मेरे बेटे ने १० रुपये बढ़ाकर तीन ले लिए ..................मैं लगातार उसे देख रही थी .........मैंने धीरे से करीब झुकते हुए कहा----------चार आते है न ....वो मुस्करा दिया ,फिर बोला मुझे क्या बचेगा ???----- हाँ, कहते हुए मैं भी मुस्करा दी ..................थोड़ी देर बाद बोगी में चक्कर लगाकर वापस आते समय एक और पेकेट मेरी ओर बढाते हुए बोला एक औए लेलो आंटीजी ...........और मै हँस दी कहा ----नहीं तुम रखो मै तो ऐसे ही पूछ रही थी ................
..................मुझे बहुत अच्छा लगा था .............
अच्छा संस्मरण
ReplyDeleteकई सारी बातें देखने को मिलीं एक ही पोस्ट में.. बढ़िया यात्रा संस्मरण.
ReplyDeleteबहुत सुंदर लगा, मै भी उस भिखारी को कुछ नही देता, धन्यवाद
ReplyDeleteबढ़िया यात्रा संस्मरण.
ReplyDeletemere blog per jaroor dekhen
विलुप्त नहीं हुई बस बदल गई हैं पंरंपराएं.......!!!
http://sanjaybhaskar.blogspot.com/2010/05/blog-post_26.html
हा हा हा
ReplyDeleteबहुत ही मज़ा आया.
बड़ा ही अच्छा संस्मरण था और आपकी प्रस्तुति भी लाजवाब थी, वरना बहुत से लोग तो अच्छी-भली बात को कुछ यूँ कहते हैं कि हँसी के बजाय रोना आ जाता है.
बेहद मजेदार.
हा हा हा
सिर्फ यात्रा स्मरण नहीं है मेरी पोस्ट .............राज जी की आभारी हूँ जो मेरी बात को कुछ हद तक समझ पाए ..............मैंने इस पोस्ट में कई बाते गौर करने के लिए लिखी है -----------
ReplyDelete१---तीनों बच्चों की उम्र के साथ उनकी सोच में होता बदलाव
२---बचपन की मासूमियत व ईमानदारी जो बड़े होने पर खो गयी
३---बिना काम किए पैसा कमाने की आदत
४---भिखारी को पैसे देना -जो जरूरतमंद न हो
५--- मेरी अपनी नीयत --जब मुझे चेन ठीक करवाने के पहले भाव नहीं करना था तो ,कहकर जताना भी नहीं था कि मैंने उसे ज्यादा पैसे दिए है ....
६---छोटे बच्चे से प्यार भरी भाषा में बात करना----जिससे उसका दिल जीता जा सकता है ............
इन बातों को ध्यान में रखकर........... फिर पढ़े ये पोस्ट ...............
सुन्दर संस्मरण
ReplyDeleteकाम करने वाले को कुछ ज्यादा दे देने में हर्ज नहीं है पर इन व्यवसायिक भिखारियो को ---
ट्रेन में अधिकाँश भिखारी प्रशिक्षित होते हैं.
ReplyDeleteआपने अपने संस्मरण सुनाये, ये जरुरी बात लगी मुझे.
जो बच्चे कामकाजी हैं उन्हें मैं भी प्यार से प्रोत्साहित करता हूँ. जो बच्चे घर में/ बाज़ार में तीखा व्यवहार सुनते झेलते हैं, बाद में वही नफरत उगलते हैं. शरीफ और दुष्ट में अंतर नहीं कर पाते.
आपने अपने व्यवहार से अच्छा सन्देश दिया है.