Thursday, September 9, 2010

टुकड़ा-टुकड़ा जिंदगी..............

टुकड़ा-टुकड़ा जिंदगी जीती रही मै
कतरा कतरा गम पीती रही मै
जख्मो पर लगे कच्चे टाँके
बार-बार रह रह कर सीती रही मै ...

14 comments:

  1. आप ही जिंदगी से गुजर गए होते,
    अब तक तो कब के मर गए होते,
    यादों ने जो न की होती जख्मों छेड़छाड़,
    कभी के वो अब तक भर गए होते ....

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  2. गहरी, हृदय में उतरती हुयी।

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  3. gahare dard kaa ehsaas karati panktiyan..bahut badhiya.

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  4. इसी को जिन्दगी कहते है,

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  5. बहुत सुन्दर मुक्तक है।
    --
    जीवन की आपाधापी में झंझावात बहुत फैलें हैं!

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  6. ऐसी रचना पर बहुत सुन्दर भी नहीं कह सकता मैं।
    आप गाती हैं, कभी सुनिये भी
    ’दुनिया में कितना गम है, मेरा गम कितना कम है।’

    आभार।

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  7. waah! bahut khub
    http://kavyamanjusha.blogspot.com/

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  8. बहुत सुन्दर. लगता है आपतो एक स्थापित कवियत्री हैं.

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