Thursday, October 21, 2010

महकता गुलाब...जो कहीं खो गया...

अतीत का वो सुनहरा पन्ना
उड़ गया है मेरी डायरी से
जिस पर रखा था मैंने
खुशबू बिखेरता एक गुलाब
पता नहीं वो आँधी थी,
या कोई तूफ़ान
जिसमें बिखरा
मेरा सब सामान
दूर-दूर उड़कर अब
हुआ आँखों से ओझल
समेटते-समेटते अब तो
मेरा दिल भी हो चुका बोझल
सोचती हूँ अब खुद भी बिखर जाऊँ
उसी हवा संग उड़ जाऊँ
जिसने मेरा पन्ना उड़ाया
और खूशबू बिखेरता मेरा गुलाब चुराया......

17 comments:

  1. अर्चना जी! बहुत ही लयात्मकता है इस कविता में और बहुत ही गहरे भाव लिये है. किंतु अतीत से इस तरह चिपके होने के कारण ही शायद हवा ने उस सुनहरी वरक़ को हवा में बिखेर दिया है और उस सूखे गुलाब से दसों दिशाओं को मँहका दिया है. हवा का एह्सान है बहुत बड़ा!!

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  2. हवाओं को तूफान बनने से पहले ही उनकी मंशा जान लेनी चहिये , सुंदर रचना

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  3. अतीत महकाता है, बहकाता भी है।

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  4. bhn archnaa ji mujhe ptaa thaa apa nhin smbhala kr rkh skogi meraa mhkta gulaab guma diyaa naa aapne ab preshaan mt rho men dusraa de dungaa. bhn ji aapke bhaav is kvitaa ke or becheni bhut khub andaaz men pesh he mubark ho mzaaq ka mn thaa isliyen thodaa sa kr betha hun bhaayi smjh kr maaf kr denaa . akhtar khan akela kota rajsthan

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  5. बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति...

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  6. बेहतरीन अभिव्यक्ति

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  7. सलिल जी की बात पर गौर कीजिए उन्होंने मेरी बात कह दी पहले ही.. :)

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  8. soft emotions are beautifully expressed in the lovely lines.

    .

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  9. Archana ben, awesome. bahut touching hai

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  10. क्या कहें?
    मन को छूने वाली रचना है।

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  11. बहुत सुन्दर प्रस्तुति।

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  12. कुछ तो है इस कविता में, जो मन को छू गयी।

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  13. बहुत ही ख़ूबसूरत अभिव्यक्ति

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  14. aapka wo panna udkar net par aa gaya hai aur blog ki shakl lekar jazbaaton ke gulabon ki khushbu bikher raha hai; BOLO THEEK HAI NA ?
    aur haan aapka comment baut pasand aaya. shukria. main aapke khargon kavi sammelan -narmada award mein aa chuki hoon.bahut accha sunte hain shrota wahan ke ,aap wahan ke sahitya premiyon ka subut hain. mahkti rahiye.

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