Sunday, October 24, 2010

ये.....गोल्ड मेडल होता कैसा है?

Gourav Agrawal ने कहा…
@ अर्चना जी आपकी टिप्पणी जैसे गोल्ड मेडल :) आभार :)

मेरी द्वारा की गई टिप्पणी पर इस जबाब ने मुझे मुड़कर देखने को मजबूर कर दिया.........और जब पलट कर (अभी जितना देख पाई) देखा तो जो पाया आप भी देख सकते हैं -----   .ये गोल्ड मेडल होता कैसा है?..


इसे कहते हैं ------बढिया,खूबसूरत,और मनमोहक प्रस्तुती----
पढने ,सुनने ,देखने -----की तीनों विधाओं का भरपूर प्रयोग.......
सहेजने योग्य-- एक यादगार पोस्ट-----मनोज


कही "ये" से "वो" बन कर नींद ढो रहे हैं .....
तो कहीं "वो" बनने के बाद अपना "ये" खो रहे हैं..adaa 


साँप और सीढ़ी
खेली मेरे साथ जिंदगी
निन्यानवे अब तक
पार नहीं हुआ
कई बार चढ़ी
खेल अब भी शुरू है
जीतूंगी भी, मै ही
चाहे खेलना पड़े
 पीढ़ी दर पीढ़ी.....गीत मेरी अनुभूतियाँ


बिछड़े सभी बारी बारी है....
याद आती बाते सारी है....
चाहे भोला हो या हो फत्तू....................मो सम कौन


जिस घर मेरा बचपन बीता वो घर भूल न पाती हूं....
बाट जोहता है भैया मेरा-ये मैं जान जाती हूँ....
इसीलिए माँ -हर सावन में राखी के बहाने आती हूँ....
झूला देख मुझको--माँ पापा की बांहें याद आती है ...
इसीलिए शायद सावन में मेरी आँखें भर आती .........................मेरे गीत 


हर जगह बिखरा पडा था ,
मै था एक माटी का लौंदा,
ले न पाता रूप कोई, मुझको था
धर्म,जाति,क्षेत्रियता ने रौंदा,
मिले कुम्हार जीवन में मुझको,
देख जिन्हें मेरा मन कौंधा,
श्रद्धानवत हूँ उनके आगे,
 बना जिनसे मेरा घरौंदा.........मेरे कुम्हार


पता नहीं कब तक
वही आंसू
फिर वही शांती
फिर वही पैग
फिर वही पिता
फिर वही कुपुत्र
और अनंत तक चलने वाली शान्ति की खोज ....---बाबा के बारे में


...और जब कुछ लिखने का मन होता है
बन्द करता हूँ आँखों को
पलकों की कोर से भी
कुछ नहीं देखता
तुम हर ओर नजर आती हो
कलम अनायास ही चल पड़ती है
कागज पर उकेरने शब्द
एक लम्बी आह लेकर
और उभर आता है तुम्हारा अक्स
लोग उसे भी कविता कहते हैं.....समीरलाल


....मैने कहा-आँखों से
तुमने सुना मुस्कानों से,
आओ मिल-बैठ कुछ बतिया लें
कुछ धीमे से-कुछ दुबके से...
अब भी तुम न मौन रहो
कुछ तो कह दो चुपके से ...कडुआ सच


और जब सपने टूट जाते थे ,
और जरूरते रोती थी ,
तब सरकार सपनों की गिनती कर,
जरूरतों के हिसाब से कागज पर,
आंकडे भरती थी.......... मौन थी मै ओम जी की ये कविता पढकर.....


"कॄष्ण" तुम हो नही ..मुझे लगते हो "राम" से ,
माता से दूर वनवास.. गए हो अपने काम से ...... दिलीप


ये दुख तो बस तब कम हॊ
जब किसी को न कोई  गम  हो
बाँट चुके हम सारी खुशियाँ
इस दुख के बदले में कि
कम से कम मेरे आस-पास
किसी की आँख नम न हो.............
जिनको भी दुख हो वे
आए और ले जाएं कि
मेरी खुशियाँ.. कभी खतम न हो............मौन हूँ मै 


अच्छाई में पाप नहीं,तुम अच्छाई से नहीं डरो.......
बस!! भला सभी का हो जिससे,सदा काम तुम वही करो.....दिलीप 



"तकदीर तो उनकी भी होती है जिनके हाथ नहीं होते ,
भला क्यों न हो....."आदत जो होती है उन्हे मुसकुराने की "......तकदीर


वो भी एक घर था
ये भी एक घर है ,
वो घर याद आता है मुझे ,
 ये घर याद करेगा मुझे .....बैचैन आत्मा


..और जब हम फ़ैले
तो सब कुछ समेट लाएं
अपने अन्दर बन कर समंदर... ...मौन की चाह..


आओ मुझसे मिलो
बिना झिझके
गले भी लगो
मैने बना लिया है
मौन का एक खाली घर
जहाँ मैं हूँ और मेरे कंधे
रो कर थके हुओं को
सोने के लिए
एक जादू की झप्पी के बाद
रोने की नहीं होती कोई वजह
और इसीलिए
मेरे घर में हमेशा बची रहती है जगह...       मौन के घर में--


तुम छलना नही छोड़ सकते
तो क्यों मैं छोड़ दूँ अपनी प्रीत ! ....
तुम चाहे जग को जीत लो..
पर मैं जाउंगी तुमको जीत......सुनो उधो



ये अहम ही तो है जो बादल लेह में फटे ,
जहाँ कहा जाता है,वो बरसते भी नहीं ...
फटने न् देना कभी मन में छाए घने बादलों को,
वरना सबके साथ अपना वजूद भी नजर नहीं आएगा ...
तबाही फैलाने को नहीं है ये मन तुम्हारा,
उम्मीद रखो रिश्ते का रेगिस्तान भी हरा नजर आएगा ........कुछ मेरी कलम से .


मैं आदमी अंधेरे का बिखेरता प्रकाश रहूं
टुकड़े टुकड़े होकर बस रुप बदलता रहूं
खुदा ने चाहा तो फिर मिलेंगे...
उम्मीद की एक किरण- चमक बाकी हैं कहीं...----अंधेरे का आदमी 


हाँ---- दुख और आँसू.........
हाँ दुख सचमुच ही लहू को ठंडा कर देता है ,
तभी तो आँखें भर आती हैं ,
ओस की तरह ,
और ठंडा लहू जब रगों में दौडता है ,
आँसू जम जाते हैं आँखों में........मौन के खाली घर में ......


मेरे डसने के बाद आदमी जिन्दा नही बचता,
मगर तुम्हारे डसने के बाद तो,
जीते-जी ही- मरते रहता है ......एक साँप धीरे से जा बैठा ----

एक चमकीली... काली-काली कविता.........छोटी-छोटी बातें ...पर मैने पा ली कविता......... एक था काला......


हाए!!! मौला !!!
होश गँवाकर
ये क्या-
कर गया ???
इन्सान तो रस्ते पर आया नहीं
और
शैतान गुजर गया..... देखो न !!!!!!!! कब तक वो देखता ??


तडप-तडप के जी रहा अब,कि उसका अक्स भी बदल गया,
जला था सिर्फ़ वो,पर उसका सब कुछ झुलस गया........शबनमीं लू में................



आशा करती हू ------
हंसों के वे जोडे वापस आएंगे
रिश्तों के टूटे मोती भी साथ लाएंगे
गूंथेंगे माला
पहनाएंगे दादी को
सुनाएंगे कहानी
और याद करेंगे नानी को
खेलेंगे खेल और
सूने घर में भर देंगे शोर
निराश न हों
होगी एक दिन फ़िर वही सुहानी भोर......जुडेगी फ़िर रिश्तों की डोर


मुझे याद करते ही हाजिर रहूंगी...
माँ हूँ तेरी---मुँह से कुछ न कहूंगी.....


और अगर फ़िर भी बच जाए ,
तो बारिश मे भी लाएं,
हम जैसे नन्हे मुन्नों को,
इंद्रधनुष दिखलाएं..............सूरज से विवेक पूर्ण रिक्वेस्ट .............


जरूरतें होने लगती हैं
सपनों पर हावी
पर विश्वास
जिन्दा रखता है
सपनों को भावी....."
या
जरूरतें होने लगती है
हावी--- सपनो पर ...
और विश्वास जिन्दा रहता है
भावी सपनों पर .....विश्वास और सपने ---


माँ-----
कब याद नहीं आती ?.....
हर पल,हर दिन .....
मेरे साथ रहती है .....
मुझसे बातें करती है ....
मुझे छोड कर कहीं नहीं जाती है .....
आज भी आयेगी .....और
मेरे साथ केक खाएगी................Samir Lal


वाह दीपक उस्ताद जी को भी झिलवा ही दिया ...हा हा हा...एक मेल और करो..थोड़ी और व्याख्या.....

21 comments:

  1. अब हमने जाना कि ये ’गोल्ड मेडल ’ ऐसा है,
    भावनाओं और अपनेपन से बना!
    इसमे न लगा एक भी पैसा है!! :)

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  2. आपकी टिप्पणियाँ में खालिस सोना है, उसकी चमक पोस्टों की गरिमा बढ़ा जाती है।

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  3. "मेरे मन की" का ब्लॉग चलाने वालीं अर्चना चावजी को जन्मदिन की बहुत-बहुत शुभकामनाएँ!

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  4. जन्मदिन की
    बहुत-बहुत
    बहुत-बहुत
    बहुत-बहुत
    ............शुभकामनाएँ!

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  5. aur goldmedal ke bare me nahi bata paunga kyoki hume to kabhi mila hi nahi.....

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  6. दीदी,

    जन्मदिन कि ढेर सारी शुभकामनाएं :)

    बहुत दिन से मुझे गोल्ड मेडल नहीं मिला :(

    [गोल्ड मेडल = दीदी की टिप्पणी]

    वैसे तो मैंने टिप्पणी करने से ब्रेक लिया हुआ है, पर जब बात जन्म दिन कि हो तो फिर कैसे रुकता ? :)
    अभी टिप्पणियों से ज्ञात हुआ कि आज आपका जन्मदिन है :)



    शुभकामनाएं !

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  7. जन्म दिन की बहुत बहुत शुभकामनाये !

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  8. जन्मदिन कि ढेर सारी शुभकामनाएं

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  9. अर्चना चावजी जन्मदिन की बहुत-बहुत शुभकामनाएं!

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  10. जन्म दिन की बहुत बहुत शुभकामनाये

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  11. जन्म दिन मुबारक..ऐसे ही गोल्ड मैडलों से नवाजते रहिये.

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  12. @ रचना--धन्यवाद...तुमने मेरा परिचय लिख कर बहुत कुछ कह दिया है ...बिना खर्चा...
    @ प्रवीण जी-- आपकी पारखी नजर को सलाम ...
    @ शास्त्री जी, संजय,गौरव,अमरजीत जी,नरेश जी,संजय जी ,अरविन्द जी,जयकॄष्ण जी,समीर जी...आप सभी को धन्यवाद...

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  13. अर्चना चाव जी आप को जन्मदिन की बहुत-बहुत बधाई ओर शुभकामनाये

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  14. किसी अन्य की रचना को अपने स्वर में ढालना और उसको रिकार्ड करना आसान कार्य नहीं है ! इतने तमाम लोगों की रचना पढना , उसे स्वर बद्ध करना एक तरह से उस रचना को अमर कर देना है ! इस दुष्कर काम के लिए आपकी जितनी तारीफ़ की जाए कम है !
    आपके जन्म दिन पर हार्दिक शुभकामनाएं कबूल करें अर्चना जी !

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  15. भई देर से ही सही......

    पर जन्मदिन की शुभकामनाएं स्वीकार कीजिए......


    “दीपक बाबा की बक बक”
    प्यार आजकल........ Love Today.

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  16. " ये गोल्ड मेडल होता कैसा है |"
    बहुत अच्छी पोस्ट के लिए धन्यवाद ....

    http://nithallekimazlis.blogspot.com/

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  17. हम तो आपके लेखन के मुरीद पहले से ही रहे हैं टिप्पणियों के भी हो ही जायेगें ...

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  18. जन्मदिन की विलंबित बधाई भी ...

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  19. वाह ! हमको भी गोल्ड मेडल मिल चुका है !

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