लम्बा लेख या लम्बी कहानी पढ़ने से हमेशा से परहेज रहा है मुझे,खुद भी ज्यादा लम्बा लिख नहीं पाती....अगर लिखा भी होगा तो वही जिसे किसी को पढ़वाना नहीं चाहती।
"गीता" भी नहीं पढ़ी... बस पढ़ा तो "गीता-सार".....जिसे समझने में "अर्जुन की आँख और मछली" की कहानी याद आई,और युधिष्ठिर की भी--जिसमें वे कहते रहे पाठ याद नहीं हुआ।.....
"गीता" भी नहीं पढ़ी... बस पढ़ा तो "गीता-सार".....जिसे समझने में "अर्जुन की आँख और मछली" की कहानी याद आई,और युधिष्ठिर की भी--जिसमें वे कहते रहे पाठ याद नहीं हुआ।.....
मुझे भी नहीं पसंद!!
ReplyDeleteसार में ही तत्व छिपा है।
ReplyDeleteचलो, कम से कम सार समझने का प्रयास तो है वरना कई तो उसे भी सरसरी तौर पर देख कर निकल लेते हैं.
ReplyDeleteसार से तो मतलब रहना चाहिए ...
ReplyDeleteहम भी इसी राह के हमराही है ...:)
ReplyDeleteजीवन में जिसने सार का महत्त्व समझ लिया उसने सब कुछ समझ लिया..
ReplyDeleteअगर 'सार' समझ लिया तो सब कुछ समझ लिया. महत्वपूर्ण सार ही है.
ReplyDeleteचाहते तो हम भी यही हैं, लेकिन थोड़े में अपना काम नहीं चलता:)
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