जब भी माँ के घर जाती हूँ उससे मुलाकात होती है,रिश्ते में भाई लगता है मेरा...पास ही रहते हैं और उम्र में भी बराबर,साथ-साथ बड़े हुए..
हम तीन भाई दो बहनें ,वो चार बहनों का अकेला भाई..
लाड़-प्यार में कोई कमी नहीं दोनो के यहाँ....बहुत ज्यादा तो नहीं पर जो थोड़ा बहुत याद आता है वो उम्र रही होगी १३-१४ साल की...
तब की बात ही और होती थी...तब को-एड नहीं होता था..
प्राथमिक शाला में सब साथ -साथ पढ़ते फ़िर होती थी कन्या माध्यमिक,उच्चतर माध्यमिक शाला इसी तरह बालक माध्यमिक व बालक उच्चतर .....
और यहाँ तक कि अलग स्कूल में पढ़ने की तरह खेलने के मैदान भी अलग .....आधे यहाँ ,आधे वहाँ....अंतर शुरू....
मैं सिमट कर रही और वो...बिखर कर.....
मेरी पसन्द गुम होने लगी...उसकी पसन्द का खयाल रखा जाने लगा......मुझे समय पर घर आना होता था ....वो घर आकर भी बाहर जा सकता था......
मुझे खाना बनाना सिखाया जाने लगा .और उसे खाना खाना......
नतीजा ....वही मैने मन को संयम में रखकर सब सीखा ..और उसने मन भी खो दिया....संयम कहाँ रहता ...
अब कई साल बाद फ़िर मिली हूँ उससे....मेरी शादी के बाद सुना था उसकी भी शादी कर दी गई......
कहते हैं न मुसीबतें किसकों नहीं आती.......दोनों पर आई...
मैं लड़ती रही हमेशा उनसे और वो......सिगरेट और शराब में मुसीबतों को डुबाते रहा.....जिंदगी चलती रही मेरी भी और उसकी भी.......
अब वो बीमार है और उसकी माँ,पत्नि,बेटी उसकी देखभाल करती है.......
सोचती हूँ, मैं अगर बीमार हुई तो .....कोई नहीं होगा....
मै फ़िर अकेली.........
क्यूँ सोचती हूँ मैं................
हम तीन भाई दो बहनें ,वो चार बहनों का अकेला भाई..
लाड़-प्यार में कोई कमी नहीं दोनो के यहाँ....बहुत ज्यादा तो नहीं पर जो थोड़ा बहुत याद आता है वो उम्र रही होगी १३-१४ साल की...
तब की बात ही और होती थी...तब को-एड नहीं होता था..
प्राथमिक शाला में सब साथ -साथ पढ़ते फ़िर होती थी कन्या माध्यमिक,उच्चतर माध्यमिक शाला इसी तरह बालक माध्यमिक व बालक उच्चतर .....
और यहाँ तक कि अलग स्कूल में पढ़ने की तरह खेलने के मैदान भी अलग .....आधे यहाँ ,आधे वहाँ....अंतर शुरू....
मैं सिमट कर रही और वो...बिखर कर.....
मेरी पसन्द गुम होने लगी...उसकी पसन्द का खयाल रखा जाने लगा......मुझे समय पर घर आना होता था ....वो घर आकर भी बाहर जा सकता था......
मुझे खाना बनाना सिखाया जाने लगा .और उसे खाना खाना......
नतीजा ....वही मैने मन को संयम में रखकर सब सीखा ..और उसने मन भी खो दिया....संयम कहाँ रहता ...
अब कई साल बाद फ़िर मिली हूँ उससे....मेरी शादी के बाद सुना था उसकी भी शादी कर दी गई......
कहते हैं न मुसीबतें किसकों नहीं आती.......दोनों पर आई...
मैं लड़ती रही हमेशा उनसे और वो......सिगरेट और शराब में मुसीबतों को डुबाते रहा.....जिंदगी चलती रही मेरी भी और उसकी भी.......
अब वो बीमार है और उसकी माँ,पत्नि,बेटी उसकी देखभाल करती है.......
सोचती हूँ, मैं अगर बीमार हुई तो .....कोई नहीं होगा....
मै फ़िर अकेली.........
क्यूँ सोचती हूँ मैं................
संघर्ष किसी और मायने में इंसान को आत्मबल प्रदान करता है. वहीँ निरंतर सुख के अपने नकारात्मक प्रभाव होते हैं... अगर बुद्ध को दुखों के दर्शन न होते तो बुद्ध बुद्ध न होते... और स्त्रियाँ सदियों से इसी संघर्षमय जीवन के कारण मानसिक रूप से अधिक बलवान और सहनशील होती रही हैं.
ReplyDeleteजाने कैसे यह फर्क माँ बाप कर लेते हैं !
ReplyDeleteयह फ़र्क क्यों ?? हमारे ही समाज ने पैदा किया हुआ है..कौन कहता है की एक लड़की, बहन व् माँ में कभी फ़र्क हो सकता है
ReplyDeleteखुश रहा करिए ....शुभकामनायें !!
ReplyDeleteआपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
ReplyDeleteप्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (21-4-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com/
शायद हर स्त्री की यही कहानी है ..
ReplyDeleteबहुत मार्मिक पोस्ट!
ReplyDeleteमर्मस्पर्शी लेखन ....आशा ही जीवन है
ReplyDeleteआदरणीय अर्चना जी
ReplyDelete...बहुत मर्मस्पर्शी लिख है आपने
इतना फ़र्क तो जायज हे, लडकी खाना बनाना नही सीखे गी तो क्या क्रिकेट खेलना सीखेगी, फ़िर भगवान ना करे कभी आप बिमार हो जाये, अगर कभी बिमार हुयी तो आप के बच्चे, आप के पति आप की देख भाल करेगे... मेरी बीबी जब भी बिमार होती हे तो बच्चे ओर मै सब को फ़िक्र होती हे, अगर एक दिन भी उदास दिखे तो हम हजार बार पुछते हे, जब कि मेरे से कोई नही पुछता...
ReplyDeleteनर ओर नारी को भगवान ने भी थोडा अलग अलग बनाया हे, अगर दोनो के गुण एक दुसरे मे आ जाये तो बहुत गडबड लगती हे, ओर स्भाव भी अलग अलग अलग बनाया हे, नारी को कोमल ओर मर्द को सख्त, अगर नारी सख्त हो ओर मर्द कोमल तो....
B +
ReplyDeleteprabhavkari lekh samajik hit chinatan
ReplyDeletedusaron ka prerana srot banata hai . sunder vicharon ke liye shukriya ji.
आप के मर्मस्पर्शी लेखन में मुझे एक अलग सी खुशबू आयी है.
ReplyDeleteइसी खुशबू को अपनी खुशियों का आधार बना लीजिये.
सलाम.
विचारणीय ...मर्मस्पर्शी कहानी....
ReplyDeleteकुछ चीजें पता नहीं क्यूँ नहीं बदलती । बहुत मर्मस्पर्शी लेखन ।
ReplyDeleteshuru se ladkiyon ko apne man par niyantran rakhna sikhaya jata hai jo unhe har jagah maryaadaon me rahne aur har sthiti ka saamna karne me mazbuti bhi sikhata hai. jab aap bimar ya akeli hongi to yahi seekha hua apke kaam aayega.
ReplyDeletemarmik vishay..aur gahen vishleshan karti post.
जीवन से जूझने भर मे जीवन से प्यार होने लगता है।
ReplyDeleteसुंदर पोस्ट बधाई और शुभकामनाएं अर्चना जी !
ReplyDeleteयही तो एक सवाल है जिसका ज़वाब खोजना सम्भव नही
ReplyDeleteमार्मिक पोस्ट
जाट देवता की राम-राम,
ReplyDeleteकभी-कभी ये लगता है कि ये लेख है या हकीकत?
बडी भ्रम की स्थिति हो जाती है, खैर जो भी दोनों ही सूरत में बुरा ही तो है।
-------- यदि आप भारत माँ के सच्चे सपूत है. धर्म का पालन करने वाले हिन्दू हैं तो
ReplyDeleteआईये " हल्ला बोल" के समर्थक बनकर धर्म और देश की आवाज़ बुलंद कीजिये...
अपने लेख को हिन्दुओ की आवाज़ बनायें.
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हमारा पता है.... hindukiawaz@gmail.com
समय मिले तो इस पोस्ट को देखकर अपने विचार अवश्य दे
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क्या यही सिखाता है इस्लाम...? क्या यही है इस्लाम धर्म