Friday, May 20, 2011

बस कहे देती हूँ ...

मेरा लिखा मत पढ़ना तुम,
मै तो बस लिख देती हूँ "मेरे मन की",
मुझे ये भी पता है ,तुम न मानोगे,पढोगे,फिर कुछ कहोगे,

और फिर यही वजह होगी अपनी अनबन की........

14 comments:

  1. अब अनबन ही सही..मगर पढ़ लिया. :)

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  2. मै तो बस लिख देती हूँ "मेरे मन की",

    बहुत सुंदर ..... हाँ पढ़कर ही कुछ कहेंगें ... पर अनबन न होगी...

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  3. मन की लिखी शायद इस अनबन को कम भी कर दे.

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  4. मन की बातें जब शब्‍द बने तब कविता.

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  5. anban ka adhhar ek disha deta hai ...pareshani kis baat ki

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  6. वैसे अनबन की बात सटीक कही है ..

    क्यों की मुझे लगता है की यह बात आपने अपने हमसफ़र के लिए कही है :):)

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  7. आपके मन की कविता पढ़ कर बहुत अच्छा लगा

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  8. सुन्दर शेली सुन्दर भावनाए क्या कहे शब्द नही है तारीफ के लिए .

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  9. अब अनबन ही सही..मगर पढ़ लिया

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  10. जब तक पढेंगे नहीं तो मन की बात समझेंगे कैसे..और प्यार में अनबन तो होती ही रहती है..बहुत भावपूर्ण प्रस्तुति..

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  11. बन ठन कर अनबन भी निकली।

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  12. अनबन से क्या डरना यह तो दिनचर्या है हर दिन की

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