दोनो बाल-मंदिर में पढ़ने आये थे।
माता-पिता पहली बार स्कूल छोड़ने आये थे,नई जगह नया लालच देकर लाए थे शायद।शुरू में तो सिर्फ़ एक-दूसरे को देखते रहे।
दूसरे दिन से स्कूल आना शुरू किया,पास बैठते,साथ टिफ़िन खाते अपनी चीजें खाना,खिलौना सब बांटते।
धीरे-धीरे दोस्ती ने जगह बनाई,और जब एक स्कूल नहीं आता तो दूसरा कुछ नहीं करता , उसका मन न लगता किसी काम में, न पढ़ना,न खेलना.न टिफ़िन खोलना बस अपनी टीचर के बाजू में बैठे रहना...और दरवाजे की ओर ताकते रहना।
.
................निष्कपट दोस्ती ।
साथ-साथ खेलते।एक ही आदत चुप रहने की,बस किसी की मुर्खतापूर्ण बात या मजाक पर आपस मे देखकर मुस्करा देते,जैसे जान गए हों मन की बात ।
क्लास अलग-अलग मगर खेलने का मैदान एक ,यहां भी वही हाल एक्न आए तो दूसरे का मन न लगे, और दोनों रहने पर भले बात न करे,खेले अलग-अलग टीम से पर भरोसा की चिटींग नहीं करेंगे,एक विश्वास की सपोर्ट जरूर मिलेगा दूसरे का ...
.................निस्वार्थ दोस्ती।
अब एक -दूसरे की नजरों के भाव पढ़ना सीख गए ,पस-पास घर ..एक दूसरे के कार्य-कलापों पर दूर से नजर,
देर तक इन्तजार एक नजर देख लेने का...
पहचानी -सी आहट आने पर...एक का खिड़की की झिर्री से झांकना / गैलरी मे आना और दूसरे का उस झिर्री से आती रोशनी को देखना / चाहे कितना भी अंधेरा हो, चेहरा भी नजर न आए....बस गर्दन घुमाने की आदत ...और आंखों का उपर उठना.....
सोने से पहले आखरी बार एक झलक देख लेने का इन्तजार .....
दिन की शुरूआत सामान्य, कभी-कभी पूरा दिन सामान्य....बस शाम का इन्तजार....
सब मन के भीतर---बातें मुलाकातें....
...............रोमांचक दोस्ती......।.
दोनों अलग-अलग अपने-अपने घरों मे ..............न साथ ,न बात, न मुलाकात न ही कोई इन्तजार..
सुखद,खुशहाल जिंदगी..............
..............समर्पित दोस्ती.......।
और अब अपने काम/जिम्मेदारी पूरी करते -करते जीवन का अधिकतम पड़ाव खतम करने के बाद ....
फ़िर वही दोस्ती.....कहीं किताबें,कहीं लेखन,कहीं पठन ,कहीं संवाद.........फ़िर से वही ....
................भावनात्मक दोस्ती ............।
एक गीत ..इस दोस्ती के भी नाम
माता-पिता पहली बार स्कूल छोड़ने आये थे,नई जगह नया लालच देकर लाए थे शायद।शुरू में तो सिर्फ़ एक-दूसरे को देखते रहे।
दूसरे दिन से स्कूल आना शुरू किया,पास बैठते,साथ टिफ़िन खाते अपनी चीजें खाना,खिलौना सब बांटते।
धीरे-धीरे दोस्ती ने जगह बनाई,और जब एक स्कूल नहीं आता तो दूसरा कुछ नहीं करता , उसका मन न लगता किसी काम में, न पढ़ना,न खेलना.न टिफ़िन खोलना बस अपनी टीचर के बाजू में बैठे रहना...और दरवाजे की ओर ताकते रहना।
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................निष्कपट दोस्ती ।
साथ-साथ खेलते।एक ही आदत चुप रहने की,बस किसी की मुर्खतापूर्ण बात या मजाक पर आपस मे देखकर मुस्करा देते,जैसे जान गए हों मन की बात ।
क्लास अलग-अलग मगर खेलने का मैदान एक ,यहां भी वही हाल एक्न आए तो दूसरे का मन न लगे, और दोनों रहने पर भले बात न करे,खेले अलग-अलग टीम से पर भरोसा की चिटींग नहीं करेंगे,एक विश्वास की सपोर्ट जरूर मिलेगा दूसरे का ...
.................निस्वार्थ दोस्ती।
अब एक -दूसरे की नजरों के भाव पढ़ना सीख गए ,पस-पास घर ..एक दूसरे के कार्य-कलापों पर दूर से नजर,
देर तक इन्तजार एक नजर देख लेने का...
पहचानी -सी आहट आने पर...एक का खिड़की की झिर्री से झांकना / गैलरी मे आना और दूसरे का उस झिर्री से आती रोशनी को देखना / चाहे कितना भी अंधेरा हो, चेहरा भी नजर न आए....बस गर्दन घुमाने की आदत ...और आंखों का उपर उठना.....
सोने से पहले आखरी बार एक झलक देख लेने का इन्तजार .....
दिन की शुरूआत सामान्य, कभी-कभी पूरा दिन सामान्य....बस शाम का इन्तजार....
सब मन के भीतर---बातें मुलाकातें....
...............रोमांचक दोस्ती......।.
दोनों अलग-अलग अपने-अपने घरों मे ..............न साथ ,न बात, न मुलाकात न ही कोई इन्तजार..
सुखद,खुशहाल जिंदगी..............
..............समर्पित दोस्ती.......।
और अब अपने काम/जिम्मेदारी पूरी करते -करते जीवन का अधिकतम पड़ाव खतम करने के बाद ....
फ़िर वही दोस्ती.....कहीं किताबें,कहीं लेखन,कहीं पठन ,कहीं संवाद.........फ़िर से वही ....
................भावनात्मक दोस्ती ............।
एक गीत ..इस दोस्ती के भी नाम
दोस्तों को शुभकामनाएँ...
ReplyDeleteसदियों सलामत रहे ये दोस्ताना.
ReplyDeleteकभी भ्रम नहीं इसमें आने देना ..
खेंगे लोग करेंगे अनुसरण,
शायद इसी बहाने छूटे लड़ना-लड़ाना.
अनुकरणीय और सराहनीय. बधाई.
सुंदर :)
ReplyDeleteबेहतरीन, दोस्ती गहन होती है।
ReplyDeleteदोस्ती के कई रूप दिखा दिए ..अच्छी प्रस्तुति
ReplyDeleteआपकी पोस्ट बहुत अच्छी लगी।
ReplyDelete--
पितृ-दिवस की बहुत-बहुत शुभकामनाएँ।
आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
ReplyDeleteप्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (20-6-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com/
शुभकामना@मित्रता.ओआरजी
ReplyDeleteदोस्ती की विभिन्न किस्में ...
ReplyDeleteसभी शानदार हैं !
बहुत बढ़िया ...दोस्ती
ReplyDeleteबेहतरीन, दोस्ती गहन होती है।
ReplyDeleteदोस्ती बनी रहे । परवान चढे ।
ReplyDeleteएहसान मेरे दिल पे तुम्हारा है दोस्तो,
ReplyDeleteये दिल तुम्हारे प्यार का मारा है दोस्तो!
इतने रूप दिखाए तुमने दोस्ती के, सचमुच कई पुराने दोस्त याद आ गये.. हाँ नये भी याद आये जो भूले, रूठे, फूले, रिसियाए, गुसियाए, बैठे हैं!! खैर, ये शिकायत की जगह नहीं, मौका नहीं..
दोस्ती इम्तिहान लेती है •••
Deleteदोस्ती इम्तिहान लेती है •••
Deleteदोस्तों को शुभकामनाएँ...
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