मैं टूटी शाख़ से
उड़ती रही दर-ब-दर
गोया कि कोई पत्ती हूँ किसी पेड़ की..
शाख़ हो या दामन
जब भी छूटा करता है,
बिख़र जाता है सब-कुछ
और दर्द होता है........
सूखने को मुझको न छोड़ो
यूँ पत्ती की तरह
मिलोगे मुझसे तो हरी हो जाउंगी...
( बस ..मन हुआ और गा लिया.........) Sorry..
उड़ती रही दर-ब-दर
गोया कि कोई पत्ती हूँ किसी पेड़ की..
शाख़ हो या दामन
जब भी छूटा करता है,
बिख़र जाता है सब-कुछ
और दर्द होता है........
सूखने को मुझको न छोड़ो
यूँ पत्ती की तरह
मिलोगे मुझसे तो हरी हो जाउंगी...
( बस ..मन हुआ और गा लिया.........) Sorry..
पत्ती तो एक बार सूखने पर नष्ट ही हो जाती है , मगर इंसान फिर- फिर हरा !
ReplyDeletebahut sundar
ReplyDeletewhy to say sorry ???
ReplyDeleteबहुत बढ़िया,
ReplyDeleteहमें गिर गिर कर उठने का वरदान मिला है।
ReplyDeleteबिल्कुल सही किया ..
ReplyDeleteबहुत खूब ... क्या बात कही है ..
ReplyDeleteक्या बात है...वाह!!
ReplyDeleteजरुर हरी होना है...
पत्ती और इंसान में अंतर तो रहता ही है। आपकी कविता अच्छी लगी।
ReplyDeleteलगता है ये सॉरी किसी खास इन्सान के लिए है और कविता भी .....
ReplyDeleteउम्मीद है बात उन तक पहुँच गयी होगी ......:))
बहुत ही बेहतरीन और प्रशंसनीय प्रस्तुति....
ReplyDeleteइंडिया दर्पण की ओर से शुभकामनाएँ।
वाह !!! क्या बात है अंतिम पंक्तियों में गजब का लिखा है आपने...बेहतरीन भाव संयोजन से सुसजित भावपूर्ण अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteसॉरी का क्या तुक हुआ? ये समझाया जाए।
ReplyDeleteऔर गीत! हमेशा ही की भांति, I find myself poor.