Saturday, May 26, 2012

नगरी-नगरी ...द्वारे -द्वारे ...

जब भावनाओं के सागर में डूबूं उतरूँ
शब्दों के जंगल में गोते लगाऊँ
अपनी कहानी खुद को सुनाऊँ

क्यों नैन सोचे नीर बहाऊँ
दिल बोले अब कहाँ जाउँ
मन कहे कहाँ ढूंढू,किसे बताऊँ?

क्या सब छोड़ उड़ जाऊँ?
किसे खोऊँ?,किसे पाऊँ?

-अर्चना 

14 comments:

  1. सुन्दर अभिव्यक्ति!

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  2. शायद इसी को आत्ममंथन कहते हैं
    सुन्दर

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  3. बहुत ही बेहतरीन और प्रशंसनीय प्रस्तुति....


    हैल्थ इज वैल्थ
    पर पधारेँ।

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  4. बहुत ही बेहतरीन रचना....
    मेरे ब्लॉग

    विचार बोध
    पर आपका हार्दिक स्वागत है।

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  5. :) sabko rakho apne saath...
    kyunki sab chahte tumhara saath:)

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  6. वाह ! सुन्दर

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  7. गीत गाने वाले कंठ से जब इतनी गहरी अभिव्यक्ति कविता के माध्यम से प्रस्फुटित होती है तब लगता है कि कहाँ छिपाए रखा था ये सब!!
    बहुत सुन्दर!!

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  8. सबको सब कुछ पाना है,
    जीवन यहीं निभाना है।

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  9. beautiful expression of emotions.
    lost and found.......

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  10. सुंदर भाव । सुंदर रचना ।

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  11. shabd sanyojan ati sundar...badhiya

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  12. सवालों के जंगल का नाम ही जीवन है...बढ़िया अभिव्यक्ति!

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