खुद से मिलना
खुद को पाना
खुद से मिलकर फिर
खुद में समां जाना
कितनी हसीन होती है ये मुलाकातें
खुद से जब करती हूँ खुद की बातें
न कुछ बोलना
न कुछ सुनना
बस दिल का दर्द दिल ही में घोलना
फिर उसे नम आँखों से तोलना
ख़ामोशी सब कुछ बयां क़र जाती है
ये सब होता है तब
जब सिर्फ और सिर्फ
तुम्हारी याद आती है
-अर्चना
एक गीत--- न जाओ सैंया....
आत्मलीन जैसे शकुंतला :)
ReplyDeleteगहरे भावों की बहती शान्त नदी...
ReplyDeleteवाह जी वाह ... बहुत खूब ...
ReplyDeleteइस पोस्ट के लिए आपका बहुत बहुत आभार - आपकी पोस्ट को शामिल किया गया है 'ब्लॉग बुलेटिन' पर - पधारें - और डालें एक नज़र - दुनिया मे रहना है तो ध्यान धरो प्यारे ... ब्लॉग बुलेटिन
कविता पढ़ना और गीत सुनना बहुत अच्छा लगा।
ReplyDeleteखुद से खुद की बातें
ReplyDeleteमौन की आवाजें
और तुम्हारी याद ।
बहुत सुंदर रचना.... आडियो की वाल्यूम ही कम है शायद....
ReplyDeleteसादर
अनुपम भाव सन्योंजन से सजी उम्दा पोस्ट....शुभकामनायें
ReplyDeleteकविता सरल है पर इसे जीना कठिन है।
ReplyDeleteउत्तम रचना....वाह!
ReplyDeleteखुद को तलाशना और फिर उसमे खो जाना.. क्या कहूँ.. ये तो आत्म मंथन जैसा है...:)
ReplyDeleteऔर इसका कारण.. सिर्फ "वो" यानि कुछ तो प्रेम की पराकाष्ठा है ...
बहुत बेहतरीन...