Tuesday, June 5, 2012

हसीन मुलाकातें...कुछ यादें ...कुछ बातें

खुद से मिलना 
खुद को पाना 
खुद से मिलकर फिर 
खुद में समां जाना 
कितनी हसीन होती है ये मुलाकातें 
खुद से जब करती हूँ खुद की बातें 
न कुछ बोलना 
न कुछ सुनना 
बस  दिल का दर्द दिल ही में घोलना 
फिर उसे नम आँखों से तोलना 
ख़ामोशी सब कुछ बयां क़र जाती है 
ये सब होता है तब 
जब सिर्फ और सिर्फ  
तुम्हारी याद आती है 
 
-अर्चना
एक गीत--- न जाओ सैंया....

10 comments:

  1. आत्मलीन जैसे शकुंतला :)

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  2. गहरे भावों की बहती शान्त नदी...

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  3. कविता पढ़ना और गीत सुनना बहुत अच्छा लगा।

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  4. खुद से खुद की बातें
    मौन की आवाजें
    और तुम्हारी याद ।

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  5. बहुत सुंदर रचना.... आडियो की वाल्यूम ही कम है शायद....
    सादर

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  6. अनुपम भाव सन्योंजन से सजी उम्दा पोस्ट....शुभकामनायें

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  7. कविता सरल है पर इसे जीना कठिन है।

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  8. उत्तम रचना....वाह!

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  9. खुद को तलाशना और फिर उसमे खो जाना.. क्या कहूँ.. ये तो आत्म मंथन जैसा है...:)
    और इसका कारण.. सिर्फ "वो" यानि कुछ तो प्रेम की पराकाष्ठा है ...
    बहुत बेहतरीन...

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