(ये कोई कविता नहीं है बस बात की है मैंने और दिलीप ने)...
अक्सर ऐसा होता है कि
जिंदगी आपको इतना पत्थर कर देती है कि
सबसे दूर जाने का मन करने लगता है
पर कुछ रिश्ते कभी नहीं टूटते
जैसे - तुमसे मेरा....
हमारा रिश्ता ही ऐसा है कि
तुम मुझसे दूर नहीं जा सकते
और
मैं तुम्हें जाने नहीं दे सकती...
बिछड़ने का तो सवाल ही नहीं उठता..
ये तुम भी जानते हो और मैं भी..
बाँध कर रखा है एक डोर से..
जो दिखाई नहीं देती....
अक्सर ऐसा होता है कि
जिंदगी आपको इतना पत्थर कर देती है कि
सबसे दूर जाने का मन करने लगता है
पर कुछ रिश्ते कभी नहीं टूटते
जैसे - तुमसे मेरा....
हमारा रिश्ता ही ऐसा है कि
तुम मुझसे दूर नहीं जा सकते
और
मैं तुम्हें जाने नहीं दे सकती...
बिछड़ने का तो सवाल ही नहीं उठता..
ये तुम भी जानते हो और मैं भी..
बाँध कर रखा है एक डोर से..
जो दिखाई नहीं देती....
मैं न कभी चिंतित होता था, चिंतित होना सीख गया,
ReplyDeleteहृद पाथर था, अब अँसुओं से सिंचित होना सीख गया,
अक्सर अपने सबसे प्यारे रिश्ते में यूँ ही महसूस होता हैं ....
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सूचनार्थ
सैलानी की कलम से
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ब्लॉ.ललित शर्मा
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बहुत बेहतरीन रचना....
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है।
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteखूबसूरत अभिव्यक्ति
ReplyDeleteरिश्तों की डोर दिखलाई नहीं देती पर शायद अटूट होती है
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
ना दिखाई देने वाली डोर से बांधा रिश्ता अटूट होता है !
ReplyDeleteबढ़िया !
वाह ... बेहतरीन
ReplyDeleteakser ham baat hi to kerte hai ....
ReplyDeletebahut umda