कहानी का शीर्षक अपनापन कुछ हद तक दुख दे गया ..हम रिश्तों को जियें .न की रिसतों को जियें . कहानी अपनों की लेकिन सही के अपनों से अलग कहानी कहती .. जितना सुन्दर मेरी बहन गातीं हैं उससे भी सुन्दर मेरी बहन कहानी सुना जाती हैं ...
आपके द्वारा यह लाजवाब प्रस्तुति जिसे पढ़ हम सराबोर हुए अब गुलशन-ए-महफ़िल बन आवाम को भी लुभाएगी | आप भी आयें और अपनी पोस्ट को (बृहस्पतिवार, ३० मई, २०१3) को प्रस्तुत होने वाली - मेरी पहली हलचल - की शोभा बढ़ाते देखिये | आपका स्वागत है अपने विचार व्यक्त करने के लिए और अपना स्नेह और आशीर्वाद प्रदान करने के लिए | आइये आप, मैं और हम सब मिलकर नए लिंकस को पढ़ें हलचल मचाएं | आभार
कहानी का शीर्षक अपनापन कुछ हद तक दुख दे गया ..हम रिश्तों को जियें .न की रिसतों को जियें .
ReplyDeleteकहानी अपनों की लेकिन सही के अपनों से अलग कहानी कहती ..
जितना सुन्दर मेरी बहन गातीं हैं उससे भी सुन्दर मेरी बहन कहानी सुना जाती हैं ...
बड़ी ही मार्मिक कहानी, अपनापन खून से भी अधिक दिल से होता है..
ReplyDeleteपढ़ी थी यह कहानी...आज सुन कर फिर आँख भर आई...
ReplyDeleteमार्मिक कहानी....
ReplyDeleteबेहद मार्मिक
ReplyDeleteआपका प्रस्तुतिकरण नि:सन्देह अनुपम है भावमय करती प्रस्तुति ..आभार
ReplyDeletebadi hi marmik kahani magar yahi aaj ka sach hai. apne pan ke rishte hamesha khoon ke rishton se badhkar hi hote hain.
ReplyDeleteफिर फिर सुनना अच्छा लगा, शुभकामनायें!
ReplyDeleteआपके द्वारा यह लाजवाब प्रस्तुति जिसे पढ़ हम सराबोर हुए अब गुलशन-ए-महफ़िल बन आवाम को भी लुभाएगी | आप भी आयें और अपनी पोस्ट को (बृहस्पतिवार, ३० मई, २०१3) को प्रस्तुत होने वाली - मेरी पहली हलचल - की शोभा बढ़ाते देखिये | आपका स्वागत है अपने विचार व्यक्त करने के लिए और अपना स्नेह और आशीर्वाद प्रदान करने के लिए | आइये आप, मैं और हम सब मिलकर नए लिंकस को पढ़ें हलचल मचाएं | आभार
ReplyDelete