न गज़ल के बारे में कुछ पता है मुझे,
न ही किसी कविता के,
और न किसी कहानी या लेख को मै जानती,
बस जब भी और जो भी दिल मे आता है,
लिख देती हूँ "मेरे मन की"
Tuesday, August 21, 2012
दौड़ते चित्र...भागती ट्रेन से
इस बार फ़िर जाना होगा अक्टूबर में रीवा खो-खो टीम
लेकर... पिछले साल जब वॉलीबाल टीम लेकर गई थी तो ऐसे सफ़र तय किया था...मेरे मोबाईल केमरे ने...
गीत याद आ रहा है -- हरी-भरी वसुन्धर पे नीला-नीला ये गगन......
नारी के भी कई रूप हैं माँ ,बहन ,बेटी ,पत्नी ,दादी, नानी, शायद मन के किसी कोने में छुपे इसी भाव ने वसुधरा को भी प्रकृति के अलग अलग रूपों संग चित्रित कर दिया .खुबसूरत फोटो बधाई ...
ये कौन चित्रकार है!!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर चित्रावली!
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर चित्र ... कुछ नये चित्रों की प्रतीक्षा रहेगी ... आपका स्वागत है :)
ReplyDeleteये कौन चित्रकार है!!
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत चित्र ...
ReplyDeleteकिस कवि की कल्पना का चमत्कार है...
ReplyDeleteचित्रों का कमाल ... यानी आपके केमरे का कमाल ...
ReplyDeletenice presentation....
ReplyDeleteAabhar!
Mere blog pr padhare.
खूबसूरत खूबसूरत खूबसूरत चित्र ....!!!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर!
ReplyDeleteवाह ..
ReplyDeleteनारी के भी कई रूप हैं माँ ,बहन ,बेटी ,पत्नी ,दादी, नानी, शायद मन के किसी कोने में छुपे इसी भाव ने वसुधरा को भी प्रकृति के अलग अलग रूपों संग चित्रित कर दिया .खुबसूरत फोटो बधाई ...
ReplyDeleteबहुत ही उम्दा पोस्ट और सुन्दर चित्र |
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