आनन्द --- १
....तब से लेकर अब तक आनन्द से सम्पर्क बना हुआ है ... सुख दु:ख के पल साझा करते हैं आपस में मैं और आनन्द ...जब उसे पता चला कि मेरे पैर में फ़्रेक्चर हुआ है ,तब उसने मेरे लिये तीन किताबें और एक बी. पी.मॉनिटर गिफ़्ट में भेज दिया था...अब जब कभी तबियत पूछता है, तो उसे बी.पी. चेक करके उसी समय बताना होता है ... :-)
किताबें पढ़ना जाने कब से छोड़ दिया था ...हर किताब का कोइ न कोई पन्ना खुद की जिंदगी से जुड़ा सा लगता है ..और किताब तो हाथ में ही रह जाती है जिंदगी बन्द आँखों से बह चलती है ,लेकिन जब किताबें मिली जिनमें एक थी हरिशंकर परसाई जी की -"विकलांग श्रद्धा का दौर" जिसमें छोटे -छोटे व्यंग्य़ हैं रोजमर्रा की जिंदगी से जुड़े ,तो उसे पॉडकास्टिंग करने के लिये उपयोग किया और रेडियो प्लेबेक पर भेजे , दूसरी थी प्रेमचंद की -"सेवासदन", बहुत सारी बैठकें दे कर पूरा कर ही लिया और पेंसिल लेकर अंडरलाईन करते-करते पिताजी को याद करती रही , कभी लिख पाई तो अंडर लाईन वाली लाईने सहेज लूंगी यहीं ,और तीसरी किताब है मैत्रेयी पुष्पा जी की - "इदन्नमम",जिसे अब तक कई बार खोला पर बार-बार रख दिया है(बहुत मोटी लगती है-ज्यादा पन्ने हैं) ...पर पढूँगी जरूर आनंद को बताना है को कि मैंने पढ़ा है ....
कई बार वो फोन पर भी बात करता रहा है लेकिन एस .टी. डी. से ,मोबाईल उसे पैसे और समय की बरबादी लगता है ,और अपनी मर्जी से बात करता है ,जब मुझे कुछ कहना हो तो मेल करो ...इस बात पर उसे कहती हूं- पक्का बिहारी गुंडा है ...तो जबाब होता है- वो तो मैं हूँ ही....
बस थोडा -थोडा सीखती रही हूं..इस बार मोबाईल का उपयोग बहुत जरूरी होने पर ही .....
आगे और भी है....मिलते रहेंगे आनन्द से
....तब से लेकर अब तक आनन्द से सम्पर्क बना हुआ है ... सुख दु:ख के पल साझा करते हैं आपस में मैं और आनन्द ...जब उसे पता चला कि मेरे पैर में फ़्रेक्चर हुआ है ,तब उसने मेरे लिये तीन किताबें और एक बी. पी.मॉनिटर गिफ़्ट में भेज दिया था...अब जब कभी तबियत पूछता है, तो उसे बी.पी. चेक करके उसी समय बताना होता है ... :-)
किताबें पढ़ना जाने कब से छोड़ दिया था ...हर किताब का कोइ न कोई पन्ना खुद की जिंदगी से जुड़ा सा लगता है ..और किताब तो हाथ में ही रह जाती है जिंदगी बन्द आँखों से बह चलती है ,लेकिन जब किताबें मिली जिनमें एक थी हरिशंकर परसाई जी की -"विकलांग श्रद्धा का दौर" जिसमें छोटे -छोटे व्यंग्य़ हैं रोजमर्रा की जिंदगी से जुड़े ,तो उसे पॉडकास्टिंग करने के लिये उपयोग किया और रेडियो प्लेबेक पर भेजे , दूसरी थी प्रेमचंद की -"सेवासदन", बहुत सारी बैठकें दे कर पूरा कर ही लिया और पेंसिल लेकर अंडरलाईन करते-करते पिताजी को याद करती रही , कभी लिख पाई तो अंडर लाईन वाली लाईने सहेज लूंगी यहीं ,और तीसरी किताब है मैत्रेयी पुष्पा जी की - "इदन्नमम",जिसे अब तक कई बार खोला पर बार-बार रख दिया है(बहुत मोटी लगती है-ज्यादा पन्ने हैं) ...पर पढूँगी जरूर आनंद को बताना है को कि मैंने पढ़ा है ....
कई बार वो फोन पर भी बात करता रहा है लेकिन एस .टी. डी. से ,मोबाईल उसे पैसे और समय की बरबादी लगता है ,और अपनी मर्जी से बात करता है ,जब मुझे कुछ कहना हो तो मेल करो ...इस बात पर उसे कहती हूं- पक्का बिहारी गुंडा है ...तो जबाब होता है- वो तो मैं हूँ ही....
बस थोडा -थोडा सीखती रही हूं..इस बार मोबाईल का उपयोग बहुत जरूरी होने पर ही .....
आगे और भी है....मिलते रहेंगे आनन्द से
आनन्द ऐसे ही बरसता रहे..
ReplyDeleteआनंद होता ही ऐसा है जीवन से जुडी खुबसूरत यादें हर हर महादेव
ReplyDeleteमहाशिव रात्रि की हार्दिक शुभकामनाएँ
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