Wednesday, April 10, 2013

खुशबू

"काव्यालय" ग्रुप के मित्र ने इसे पढ़कर  कमेन्ट में लिखा - "समर्पण-अर्चना "... शीर्षक पसंद आया --आभार उनका 


 "समर्पण-अर्चना ".

मैं बनूँ खुशबू पारिजात की
महकी-महकी खुली पात की
साँसों में तेरी समाई रहूँ
ख्वाबों में तेरे छाई रहूँ

आज मैं बनूँ खूशबू चमेली की
महकूं अध-खुली कली से ही
थकान को तुम्हारी सारी मिटाउं
जीवन में एक नई ताजगी लाउं...

गुलाबों से होंठ मेरे जो छू लो
रंगत तुम्हारी निखर जाएगी
कभी जब खोलोगे डायरी के पन्ने
मेरी ही खुशबू तुम्हें आएगी...

केवड़े-सी कभी न महकना चाहूं
कि उसमें सदा ही नाग बसते हैं
चाहूं मैं सिर्फ़ कोयल-सी चहकना
कि सुरों में सदा ही ख्वाब सजते हैं...:

खुशबू में मेरी जो तुम खो गये तो
महकेगा आँगन तुम्हारा पिया..
और खूशबू जो मेरी ही तुम हो गए तो
चहकेगा आँगन तुम्हारा पिया... :-)

मिट्टी की सोंधी-सी खूशबू बनूँ मैं
पहली फ़ुहार में ही दिल जीत लूं मैं
तकती निगाहों को और न तरसाउं
हरियाली से सजकर कई रंग बरसाउं...
-अर्चना

12 comments:

  1. जीवंत भाव , मन को नए उत्साह से जोड़ती आपकी रचना , शुभकामनायें

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  2. आपकी यह प्रस्तुति कल के चर्चा मंच पर है
    कृपया पधारें

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  3. सचमुच खुशबू की तरह है यह रचना.. बिखर जाती है पूरी फिजां में!!

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  4. बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
    नवसम्वत्सर-२०७० की हार्दिक शुभकामनाएँ स्वीकार करें!

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  5. कामना भी बड़ी प्यारी है!

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  6. वाह ... खुशबू की हिलोरें ले रही है रचना ...
    नव वर्ष मंगलमय हो ...

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  7. मिट्टी की सोंधी-सी खूशबू बनूँ मैं
    पहली फ़ुहार में ही दिल जीत लूं मैं
    तकती निगाहों को और न तरसाउं
    हरियाली से सजकर कई रंग बरसाउं...
    !! !! !! !!

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  8. बहुत ही सुन्दर और कोमल भावों से सजी रचना।

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  9. मिट्टी की सोंधी-सी खूशबू बनूँ मैं
    पहली फ़ुहार में ही दिल जीत लूं मैं
    तकती निगाहों को और न तरसाउं
    हरियाली से सजकर कई रंग बरसाउं...

    पूरी कायनात को समेत लिया आपने मन तरंगित हो गया ....

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  10. मिट्टी की सोंधी-सी खूशबू बनूँ मैं
    पहली फ़ुहार में ही दिल जीत लूं मैं
    तकती निगाहों को और न तरसाउं
    हरियाली से सजकर कई रंग बरसाउं...

    पूरी कायनात को समेट लिया आपने मन तरंगित हो गया ....

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  11. बहुत ही सुन्दर रचना .........

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