सुबह गज़ब का नजारा देखा
घूमने के समय अजब तमाशा देखा
गुलमोहर गुमसुम खड़ा था
दूब खिलखिला रही थी
बादल नंगे पाँव दौडे चले आ रहे थे
हवा उनको पीछे से दौड़ा रही थी
हम अपनी धुन में चले जा रहे थे
प्रकॄति संग में गुनगुना रही थी
गुलमोहर और दूब की छेड़छाड़ के बीच
गुलमोहर के लाल फूल झड़े जा रहे थे
ये देखकर उनकी माँ कभी उन्हें डरा
और कभी मना रही थी..
शायद स्कूल के लिए देर हो रही थी
और वो दोनों को नहाने के लिए बुला रही थी
सूरज दादा बदली की चादर ताने
झूठ-मूठ ही सोने का नाटक कर रहे थे
तभी चिडिया रानी ने चीं-चीं का शोर मचाया
देर हो जायेगी ऐसा बताया...
बादल नें दौड़कर उनको पकड़ लिया
उनकी धक्का-मुक्की में मुझको भी धर लिया..
नहलाना था उन दोनों को
साथ-साथ मुझे भी नहला दिया
भीगे बदन से घर लौटना पड़ा
पर सिहरन को समेटना बहुत अच्छा लगा
आते ही मौसम ने ली अँगड़ाई
और पर्यावरण दिवस पर दी सबको बधाई.....
-अर्चना
(०५-०६-२०१३,नासिक)
घूमने के समय अजब तमाशा देखा
गुलमोहर गुमसुम खड़ा था
दूब खिलखिला रही थी
बादल नंगे पाँव दौडे चले आ रहे थे
हवा उनको पीछे से दौड़ा रही थी
हम अपनी धुन में चले जा रहे थे
प्रकॄति संग में गुनगुना रही थी
गुलमोहर और दूब की छेड़छाड़ के बीच
गुलमोहर के लाल फूल झड़े जा रहे थे
ये देखकर उनकी माँ कभी उन्हें डरा
और कभी मना रही थी..
शायद स्कूल के लिए देर हो रही थी
और वो दोनों को नहाने के लिए बुला रही थी
सूरज दादा बदली की चादर ताने
झूठ-मूठ ही सोने का नाटक कर रहे थे
तभी चिडिया रानी ने चीं-चीं का शोर मचाया
देर हो जायेगी ऐसा बताया...
बादल नें दौड़कर उनको पकड़ लिया
उनकी धक्का-मुक्की में मुझको भी धर लिया..
नहलाना था उन दोनों को
साथ-साथ मुझे भी नहला दिया
भीगे बदन से घर लौटना पड़ा
पर सिहरन को समेटना बहुत अच्छा लगा
आते ही मौसम ने ली अँगड़ाई
और पर्यावरण दिवस पर दी सबको बधाई.....
-अर्चना
(०५-०६-२०१३,नासिक)
पर्यावरण दिवस को इस तरह कविता में अभिव्यक्त करना एक अनूठा प्रयोग लगा, बहुत ही खूबसूरत भाव और संदेश.
ReplyDeleteरामराम.
खूबसूरत संदेश पर्यावरण दिवस पर
ReplyDeleteईश्वर सबको प्रकृति का सौन्दर्य समझने की शक्ति दे।
ReplyDeleteबहुत खूब, बहुत ही सुन्दर
ReplyDeleteप्रकृति की खुबसूरती ही कुछ ऐसी होती है हर कुछ जीवंत सा रहता है सदा .....
साभार!
पर्यावरण दिवस पर सुन्दर कविता प्रस्तुत करने के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद।
ReplyDeleteघुइसरनाथ धाम - जहाँ मन्नत पूरी होने पर बाँधे जाते हैं घंटे।
शब्दों की बूँदों की रिमझिम में शीतलता प्रदान करती सुंदर रचना.......
ReplyDeleteबहुत खूब...यही है कविता जो अपने आप फूटती है।
ReplyDeleteपर्यावरण दिवस पर बहुत सुंदर कविता सुनाई आपने ! मन भी बादल और सूरज की आँख मिचौली में रम गया ! बहुत सुंदर !
ReplyDeleteसुन्दर, अति सुन्दर!!
ReplyDeleteपर्यावरण दिवस पर जन जीवन को प्यारा सन्देश देती रचना बधाई
ReplyDeleteभावों से भारी हुई लेखनी
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