चित्र में जस्टिस पी. डी. मुल्ये जी से पुरस्कार प्राप्त करते हुए पल्लवी
गुलाबी जाड़े के आते ही याद आ जाता है ये गुलाबी स्वेटर ....
होस्टल में रहते हुए बहुत मेहनत से बनाया था बेटी पल्लवी के लिए मैने ...एक तो समय बहुत कम मिलता था होस्टल में बच्चों की दखरेख के बीच ...काम भी नया था ..... स्कूल इन्दौर के बाहरी भाग में था तो ठंड भी बहुत ज्यादा लगती थी , बुनाई का शौक तो पहले से ही था , सुनील ने पहले जन्मदिन पर तीन किताबें भेंट में दी थी उसमें से एक स्वेटर की डिज़ाईन की भी थी ....
इस बीच वक्त कुछ ऐसा बीता कि बहुत दिनों तक हाथ ही नहीं आया ...फ़िर आया भी तो खुद को बच्चों के बीच होस्टल में पाया था मैंने ....
जब स्वेटर बनाने का खयाल मन में आया तो वही आदत कुछ अलग हटकर करने की ...और दो किताबों की डिज़ाईन से देखकर फ़्रिल वाला ये कार्डिगन बनाया था ....पल्लवी खिलाड़ी रही तो इस स्वेटर के कंधे पर दो स्केट्स लेस से बंधे लटकते हुए बनाए थे ,वो भी बुनकर ...किसी किसी लाईन में हर फ़ंदा अलग-अलग रंग का भी बुनना पड़ा था .......
बहुत तारीफ़ बटोरी थी इस स्वेटर ने .....
बात तब की है जब पल्लवी ने बी. बी. ए. की पढा़ई के लिए पूना के एम. आई. टी . कॉलेज में प्रवेश लिया था , मैं उसे पहली बार छोड़ने ले लिए साथ गई थी ,हमने उसके रहने के लिए कई होस्टल और कमरे देखे लेकिन पहली बार उसे अकेले रहने के लिए छोड़ना मुझे चिंतित कर रहा था ....कुछ बड़ी लड़कियों के साथ रहने से उसे पढ़ाई में मदद मिलेगी और अकेले रहने का डर भी दूर होगा ये सोच कर अन्त में एक लड़कियों का होस्टल तय किया जहां सारी लड़कियां जो एम .बी. ए. कर रही थी रहती थी ...ये अकेली बी. बी. ए की और उम्र में छोटी थी ...छह: महिने सब कुछ अच्छा रहा ..... प्रथम सेमिस्टर खतम हुआ ...आखरी पेपर के दूसरे दिन उसे इन्दौर वापस आना था ...उन्हीं दिनों उसका जन्मदिन भी आकर चला गया था ....
उसकी कुछ दोस्तों ने आखरी दिन पार्टी रखी ...उसमें जाने के लिए यही स्वेटर उसने पहना ..... लेकिन ये याद आते ही कि केक काटने के बाद सब चुपडे़गे भी और कहीं स्वेटर गन्दा हो गया तो .... उस मासूम ने तुरत -फ़ुरत निकाल कर वहीं छोड़ दिया पलंग पर .....और ....जब लौटी तो कोई उसका स्वेटर तो स्वेटर ...वो पूरी ड्रेस ही चुरा कर ले गया था ....जो उसने पलंग पर छोड़ दी थी ... :-(
फोन पर उसकी दर्द भरे भारी मन से स्वेटर चोरी की दासतां सुनाने की आवाज आज भी गूंजती है- मेरे कानों में....
और हर साल इस गुलाबी जाड़े में याद आता है उसे गुलाबी स्वेटर माँ का बुना , जिसके हर फ़ंदे में दुआ बुनी थी मैंने .........
खैर दुआ किसी के तो काम आ रही होगी .... वो लड़की भी कभी हमें नहीं भूलेगी इस स्वेटर को पहनते हुए ...बस यही खयाल जाडे़ मे गरम अहसास दे जाता है हमें ..... चोट्टी लड़की नाम रखा है मैंने उस स्वेटर सहेजने वाली का .... जो एम. बी. ए. पास कर चुकी होगी कब की .......
शायद मुझे पूना में कहीं किसी मोड़ पर मिले ..... तो दौड़ कर माथा चूम लूंगी उसका ...... :-)
यादें। यादें। इतना सुंदर स्वेटर, इस तरह चोरी हो जाना ... खैर, चोरी होकर भी किसी के काम ही आया होगा
ReplyDeleteSard mausam me amma ke haathon ka buna sweater.. Khoobsoorat yaad..
ReplyDeleteयादों के पल ... स्वेटर के साथ जुड़े ...
ReplyDeleteसुंदर स्वेटर और उससे जुड़ी यादें...बहुत जतन से सहेज रखी हैं,आपने .
ReplyDeleteसुंदर यादें.....
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