Saturday, December 7, 2013

चार पंक्तियाँ ...

वक्त ने फ़िर नया मोड़ लिया
उफ़नती लहरों के बीच हमें छोड़ दिया
हैं हम पानी से भी तरल और सरल
बस! हमने भी चट पट बूँदों से रिश्ता जोड़ लिया ....


इन्सान बनाने की प्रयोगशाला  में
ईश्वर ने हमको दुखों का कोढ़ दिया
भूल गया था शायद जल्दबाजी में वो भी
सहनशक्ति की आलमारी का ताला खुला छोड़ गया .... 


8 comments:

  1. Wah, sahn shakti kee almari ka tala khula chod diya. na chodta to hum kaise jeete.
    Bahut sunder.

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  2. ये मेरी बहन भी ना ज़बर्दस्त पागल है!! क्या कहूँ.. फिर से दोहराता हूँ अपनी बात.. ये तुम्हारी इण्टरवल (मेरी ओर से) के बाद का शो सचमुच दिल को छूता है!! गॉड ब्लेस यू!! और वो सहनशीलता की आलमारी नहीं, सुकून की आलमारी की चाबी तुम्हारे सिरहाने छोड़ कर जाये!! आमीन!!!

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  3. वाह... उम्दा भावपूर्ण प्रस्तुति...बहुत बहुत बधाई...
    नयी पोस्ट@ग़ज़ल-जा रहा है जिधर बेखबर आदमी

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  4. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज सोमवार (09-12-2013) को "हार और जीत के माइने" (चर्चा मंच : अंक-1456) पर भी है!
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  5. wah bahut sundar...sehjta say kitni badi baat keh di apne

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  6. आप सभी का आभार ...

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  7. ईश्वर क्या चाहे जीवन से,
    प्रश्न नित्य ही गहराते हैं।

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  8. bahut sundar; kahane ko paryapt shabd he nahi hai...

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