Tuesday, July 8, 2014

पहली बारिश

अब लिखेंगे खूब बरस कर
हम बारिश पर कविताएँ
कहीं भरेंगे नाले,पोखर,
और कहीं पर सरिताएँ...

कहीं करेंगे मेंढक टर्र -टर्र
कहीं बजेगा झिंगुरी गान
बूंदों की टिप-टिप के संग में
पकौड़े होंगे ख़ास पकवान...

हल्की -हल्की बौछारों से
जब भीगेगा आँचल -तन
चुपके-चुपके भीग जाएगा
नयनों की बारिश में मन ...

झुके-झुके से पेड़ लटक कर
नन्हीं बूंदों को सहलाते हैं
उनको देख-देखकर मुझको
मेरे साजन याद आते हैं .....

ओ बरखा!तुम रोज़ ही आना
ले जाने को मेरा संदेसा
साजन को गीली पतिया से
शायद पीड़ा का हो अंदेसा !!!......

-अर्चना




4 comments:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति!

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  2. ओ बरखा!तुम रोज़ ही आना
    ले जाने को मेरा संदेसा
    साजन को गीली पतिया से
    शायद पीड़ा का हो अंदेसा !!!......
    ............ मन को छूते शब्‍द

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  3. रिमझिम भाव लगा जैसे मन ठंडा हो गया !! मंगलकामनाएं आपको

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