बहुत दिनों से मन था इसे रिकार्ड करने का ...कई प्रयास किए, मगर एक तो मेरी कम पुस्तक पढ़ने की आदत और दूसरे इतनी बड़ी रचना ,नेट से स्क्रीन पर देखते-देखते आंखें थक जाती ... .... हर बार अधूरा करके छोड़ देती लगता नहीं हो पायेगा
लेकिन इस बार जब दशहरे पर राँची गई ,तो बाज़ार में उस दूकान को देख मन माना नहीं जहाँ २० साल पहले जाया करती थी बच्चों के लिए कहानियों की किताबें लेने ... वत्सल और नेहा से बताया कि ये वही दूकान है तो हम तीनों अन्दर गए मुझे छोड़ दिया किताबों के स्टैण्ड के पास ...देखते -देखते नज़र पड़ी बोर्ड पर लिखा था - पुराना हिन्दी साहित्य ..... एक काउंटर अलग से था ...ऊपर में ...चढ़कर गई तो कई साहित्यकारों जिनके नाम सुने थे की किताबें नज़र आई , सामने ही थी - जयशंकर प्रसाद जी की "कामायनी"... बस खरीद ली और अब रिकार्ड किया पहले भाग -चिंता को ....
कैसा हुआ ये तो आप ही सुनकर बता पाएंगे ...और गलतियों के लिए माफ़ भी करेंगे ... सुझाव भी देंगे तो कोशिश करूंगी आगे के भाग को और अच्छे से कर पाउं ....
और प्रोत्साहन मिलेगा तो जल्द से जल्द पूरा करने की भी कोशिश रहेगी मेरी ...आप तो जानते ही हैं-"मायरा" में मन उलझा हुआ है मेरा .....
डाउनलोड करिए या सुनिए यहाँ -
और एक और प्लेअर पर यहाँ -
लेकिन इस बार जब दशहरे पर राँची गई ,तो बाज़ार में उस दूकान को देख मन माना नहीं जहाँ २० साल पहले जाया करती थी बच्चों के लिए कहानियों की किताबें लेने ... वत्सल और नेहा से बताया कि ये वही दूकान है तो हम तीनों अन्दर गए मुझे छोड़ दिया किताबों के स्टैण्ड के पास ...देखते -देखते नज़र पड़ी बोर्ड पर लिखा था - पुराना हिन्दी साहित्य ..... एक काउंटर अलग से था ...ऊपर में ...चढ़कर गई तो कई साहित्यकारों जिनके नाम सुने थे की किताबें नज़र आई , सामने ही थी - जयशंकर प्रसाद जी की "कामायनी"... बस खरीद ली और अब रिकार्ड किया पहले भाग -चिंता को ....
कैसा हुआ ये तो आप ही सुनकर बता पाएंगे ...और गलतियों के लिए माफ़ भी करेंगे ... सुझाव भी देंगे तो कोशिश करूंगी आगे के भाग को और अच्छे से कर पाउं ....
और प्रोत्साहन मिलेगा तो जल्द से जल्द पूरा करने की भी कोशिश रहेगी मेरी ...आप तो जानते ही हैं-"मायरा" में मन उलझा हुआ है मेरा .....
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अच्छा है। पुण्य का काम !
ReplyDeleteबहुत अच्छा!
ReplyDeleteबढ़िया
ReplyDeleteअब सुन रहा है।
ReplyDeleteबढ़िया!