तुम आशा विश्वास हमारे
तुम धरती आकाश हमारे...गीत बजने लगा है विविध भारती पर ....
है तो प्रार्थना ही पर मैं चली गई अतीत में ,मन भारी हो गया,सूरज की लाली दिखाई देने लगी है अब ..अरे!ये क्या सूरज से पहले तुम उग आए आसमान में!
-मैं जानता था,इस गीत के बजते ही तुम्हारे हृदय की सितार के तार झनझना उठेंगे और मैं चल पड़ा उन्हें सुनने ...ये क्या? तुम्हारी आँखों में नमी तो नहीं ,मन का बोझ महसूस हो गया था मुझे ...
- ह्म्म्म!मैंने कोशिश की ...पर....
पर आजकल आँसू बहुत जल्दी आने लगे हैं ....
आपके इतना कहने पर भी...
-मन हल्का हो जाता है.. रो लिया करो... मत रोको आँसुओं को...
-आते हैं और रूक जाते हैं ...
लगता है खूब जोर से चिल्लाउं ... और एक दर्द में सब खतम ... सच्ची
थक गई हूं ...
.डर है ...आगे क्या होगा का
-तो चिल्लाओ.. अकेले में ख़ूब ज़ोर से.. यह थेरेपी का हिस्सा है... जो घुटकर रोते हैं वो बहुत तकलीफ़ पाते हैं.. चीख़कर रोने से मन हलका होता है..
-मगर मुझे ये सौभाग्य अभी तक नहीं मिला कि ये थेरेपी आजमाऊँ ....पहली और आखरी बार तभी ली थी ,जब तुम बादलों के पार.....
....
ओह!!!।ये क्या? रे!सूरज !आंसू पोछकर हथेलियाँ सरकाई नहीं कि नेपथ्य में धकेल दिया उन्हें ?
बस आवाज ही सुनाई दी -मायरा कैसी है?
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गीत खत्म हुआ, अगला गीत ....पंछी बनूँ उड़ती फिरूं मस्त गगन में ...
आज मैं आजाद हूँ .......
अनवरत लिखी जा रही प्रवाहमान कहानी का टुकड़ा ...
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ReplyDeleteVery nice!!!
ReplyDeleteब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, "खुफिया रेडियो चलाने वाली गांधीवादी क्रांतिकारी - उषा मेहता “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर लेखनी!
ReplyDeleteVery nice post...
ReplyDeleteWelcome to my blog.
बहुत सुन्दर
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