Friday, December 13, 2019

अदरक ,तुलसी वाली चाय

बहुत दिनों बाद भोर में 
इस प्रहर नींद खुली 
कारण सिर्फ इतना कि-
दिसंबर कि सर्द-सर्द 
मीठी सी रात का आखरी प्रहर ...
लिहाफ भी ठंडा 
सर्द और कुडकुडा हो चुका है 
प्रेम कविता ऐसे ही प्रहर जन्म लेती है 
सूरज का इंतज़ार-
कुहासे  की चादर में 
पंछियों का कलरव 
ओस के बगीचे में
देखने का मन ,
सुनने का मन -
रोशनदान से कि
चाँद -चांदनी में 
जाने क्या गपशप हुई
और ...
एक अदद चाय कि दरकार ....
बेड-टी ...
....
बालकनी कि दूसरी कुर्सी 
झूल कर- कर रही है आवाज 
कि जैसे कोई उठकर गया है अभी ....
पलकें खोलूं या न खोलूं 
सच है या सपना
सपना हो -तो सच हो...
सच होता है - 
भोर का सपना ...
ठण्ड बढ़ी है...
एक और कड़क चाय कि दरकार है ..
अदरक वाली ...

Monday, November 4, 2019

वो छोटा लड़का

मुझे उसका नाम याद नहीं आ रहा पर उसकी याद बहुत आ रही है ........जब शादी होकर गई तो वो दौड़कर घर की चाबी लेकर आया था कोई 14-15 साल का लड़का था ..

.लालमाटिया कोयला केम्प में चार बजे पत्थर कोयले की सिगड़ी जलने रखता और आधे घंटे बाद लाईन से एक-एक के घर में पहुंचाता ......

एक ही सिगड़ी पर 5-6घर का शाम का खाना बारी बारी सब बना लेते .....सभी वर्ग के घर थे .....साहब-मजदूर..... अमीर-गरीब,          शाकाहारी -मांसाहारी .......

हाँ लेकिन पहले शाकाहारियों के घर सिगड़ी जाती,फिर मांसाहारियों के घर......

और इसके बदले वो किसी एक घर में खाना खाता............

मुझे पत्थर कोयला जलाना नहीं आता सुनकर बहुत हँसा था......

अनवरत कहानी का एक टुकड़ा ....

Wednesday, October 30, 2019

सुबह 6 बजे की चाय

सुबह ....जब घड़ी पर नज़र पड़ी 6 बज रहे थे .....


5 बजे निकल जाते थे घूमने कांके डेम के किनारे-किनारे ...बेटा छोटा था तो जाने का मन होते हुए भी न जा सकती थी या फिर ऐसे कहूँ कि बेटा सुबह उठ जाता तो आपकी नींद खुल जाती दुबारा सोना मुश्किल होता तो आप घूमने निकल जाते ....कांके डेम के किनारे-किनारे ...
कभी-कभी तो वो जागते रहता कभी फिर सो जाता और मैं भी सो जाती फिर कई बार आपकी वापसी की कॉलबेल से आँख खुलती और आपके चेहरे पर मुस्कान तैर जाती .....तब मैं चाय बनाती ,हम साथ चाय पीते 6 बजे ...
बाद में मैंने भी जल्दी उठना सीख  लिया हम साथ दोनों बच्चों को लेकर घूमते फिर आकर चाय साथ पीते....कभी कभी नहीं जाती तो आपके लौटने तक चाय तैयार मिलती साथ -साथ  पीते ... हमेशा दिनभर के काम की प्लानिंग वहीं होती ...
......
आपके हॉस्पिटल इन रहते सुबह की चाय 6 बजे बाहर गुमटी पर पी लेती क्यों कि फिर गुमटी वाले का दूध खत्म हो जाता वो लौट जाता ...दिन भर आईं सी यू के बाहर बैठकर आने जाने वालों को ताकते रहते ....रिसेप्शनिस्ट चाय पूछती पर बाद में पीने का मन ही नहीं रहता 2 महीने ऐसे ही बीत गए थे .....

अब हम घर में थे पर चाय भी समय पर बनती पर साथ पी नहीं सकते थे , आपको चम्मच चम्मच देने के बाद मैं पीती......
समय कहाँ और कैसे उड़ा पता नहीं ....
चाय उसी समय बनती रही....स्कूल बस पकड़ने और बच्चों को तैयार करने की भागमभाग में कई बार चाय ज्यादा गरम ज्यादा ठंडी होती...कभी गटकते कभी छोड़ते पीती.....
...
अब भी सुबह तलब लगती है ......उठने पर ....
कुछ आदतें चाहने पर भी डेरा नहीं छोड़ती ....
सोचती हूँ अब चाय ही छोड़ दूँ....लेकिन समय को कौन रोक सकता है .....सुबह के 6 तो बजेंगे ही...चिड़ियाएं चहकेंगी ही ...और सूरज उजाला लाते रहेगा ....दिनभर की कोई प्लानिंग भी नहीं करनी अब तो ....
आराम आराम से कट रही जिंदगी....दिन गिनते हुए ....
"वो सुबह कभी न आएगी"....
"वो सुबह कभी तो आएगी".......
(अनवरत लिखी जा रही कहानी का एक पन्ना )

Wednesday, October 23, 2019

एक बूंद अमृत की

"Mam aap humare. Liye fighter example haai"

1998 में वार्डन थी,2000 तक ...अगर इतने साल बाद भी कोई अच्छे काम याद करे तो जीवन का उद्देश्य सार्थक होता लगता है।

2 दिन पहले फेसबुक मैसेंजर पर अचानक पुराने विद्यार्थी ने याद करते हुए लिखा था ,बातचीत में आगे ये भी -
Mei kai baar apni wife ko bolta Be strong
Humari warden thi
Unke jaisa bano
Kal ko kuch ho jaaye mujhe to
Unka example. Leke badna
Harna nahi
- हाँ, कई बार हारते हारते बची ...  जैसे आज आपके इन शब्दों ने फिर ऊर्जा भर दी 👍👍👍

अच्छा लगता है, ईश्वर न जाने किस-किस रूप में हम पर नज़र  रखे हुए है,निराशा में आशा की किरण दिखाने के लिए मयूर की आभारी हूँ ।  
https://www.facebook.com/mayur.bhawsar.52

Monday, June 24, 2019

आईये मेहरबान ...

बहुत दिनों से ब्लॉग पर कुछ नहीं लिखा....
ऐसा नहीं है कि लिखने को कुछ नहीं बल्कि लिखने को  बहुत कुछ ऐसा है कि हाथ कलम तो उठाते हैं पर मन का नरम कोना जाने दो यार कहके रोक देता है ....कुछ कड़वी बातें बाहर न आये और लेखनी अपने सरल रास्ते से न भटके इसलिए ठहराव जरूरी लगता है मेरे लिए मुझे लेकिन आप सबको आज से फिर ब्लॉग बुलेटिन ब्लॉग लेखन की ओर ले जाने के लिए प्रयासरत हुआ है,तो सोचिए मत  आईए और लिखिए ब्लॉग पर अपने और अपनी आने वाली पीढ़ी के लिए ....