Sunday, July 11, 2021

कुछ का कुछ ,जो मेरे साथ होना है

मैं करना चाहती हूं कुछ और हो जाता है कुछ,
ये आज की नहीं बरसों पुरानी बात है
चली आ रही है,
घटित हो रही है
बरसों से मेरे साथ
शायद मेरे ही साथ...

जैसे कि जब मैं खेलना चाहती थी
काम करती थी,
जब मैं पढ़ना चाहती थी, झाड़ू लगाती थी
जब मैं खाना चाहती थी
उपवास करती थी
जब कुछ कहना चाहती थी
चुप रहती थी
सिर्फ खुली आंखों से सपने देखती थी
जब मैं सोना चाहती थी।

आज भी कुछ बदला नहीं मेरे साथ

घूमना चाहती हूं पहिए की तरह 
पर लट्टू बन गई हूं
या कि बना दी गई हूं।

लिखना चाहती हूं
पर कलम घिसने की बजाय
उंगलियां ठोक रही हूं
जैसे कि सितार बजा रही हूं।

गाना चाहती हूं,नाचना चाहती हूं
पर उड़ने लगी हूं 
वो भी आंखें मूंदकर।

जवान रहना चाहती हूं
मगर बूढ़ी हो गई हूं,
या कि कर दी गई हूं।

कौन है? जो ये कर रहा है 
मेरे साथ ,
मुझसे मिलकर
या मुझमें मिलकर

लगता हैं हंसना चाहूंगी तो
अबकि रो पडूंगी
अट्टहास करना चाहूंगी तब
खिलखिलाऊंगी ,
और जब जीना चाहूंगी
मर जाऊंगी।
-
अर्चना 


13 comments:

  1. जीवन को बिना चप्पू की नाव की तरह चलने दो...

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  2. बहुत सुन्दर

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  3. यही नियति है, कभी आदमी के मन का नहीं होता।

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  4. न चाह कर भी बहुत कुछ किया जैसे बहता है बहने दो।

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  5. ले जाएं चाहे जहाँ हवाएँ ..यही मानकर शांत रहना पड़ता है कि हमें इसके लिए चुना गया ,बहती सी आप रुकियेगा नहीं दी 💐

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  6. जीवन यही है ....जो करना चाहते हैं वो अक्सर होता नहीं है.. जो मिलता है उससे ही भरपूर रस ले लेने की कोशिश कर लेनी चाहिए......

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  7. लगता हैं हंसना चाहूंगी तो
    अबकि रो पडूंगी
    अट्टहास करना चाहूंगी तब
    खिलखिलाऊंगी ,
    और जब जीना चाहूंगी
    मर जाऊंगी।===गहन लेखन।

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  8. आप सब कुछ उल्टा चाहने लगो बस बात बन जाएगी…नमन है आपके हौसले को, धैर्य और कर्तव्यपरायणता को🙏

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  9. वैसे ऐसा सभी के साथ होता है ज़्यादातर 👌👌

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  10. वर्जनाओं को भारतीय समाज का आदर्श बना दिया गया है , अभी कुछ नहीं बीता , नए सिरे से हंसना सीखें , हँसे सबके साथ और नए कार्य सीखें बचपन बापस आ जाएगा दुबारा !
    जीवंत करें अपने बालमन को !
    शुभकामनाएं !

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  11. कहीं पढ़े थे...मन का हो तो अच्छा...
    मन का न हो तो और भी अच्छा।
    फिर जो आसमान और सम्मान मिलता है वह ईश्वर की मर्जी से मिलता है।
    उन परमपिता विश्वास रखिये।

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  12. आज कल कोई कलम नहीं घिसता सब उँगलियाँ ही ठोक रहे । वैसे सच्ची होता सब उल्टा ही है । फिर भी इन निराश भला क्यों होना । बहने दीजिए जीवन को अपने आप ।

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