Tuesday, September 20, 2011

मन की उड़ान....


मन के उन कटे पंखों से
जिन्हें कतर दिया था मैने कभी
मैं उड़ना चाहती हूँ आज,
उँचे आकाश में,दूर तक 
जुड़ना चाहती हूँ,मेरे अपनों से 
इस धरा को छोड़... 
तुम साथ दो मेरा 
ठीक वैसे -जैसे
लटका दे कोई रत्नावली अपनी चुटिया

तुलसी के लिए
और खींच ले अपनी ओर 

ताकि मुक्त हो जाऊँ 
पृथ्वी के बंधन से
खुल जाये जकड़न 

मर्यादाओं की जंग लगी जंजीरों की

 न जाने क्यूँ??

आज मैं तुलसी हो जाना चाहती हूँ...!!!

Friday, September 16, 2011

Wednesday, September 14, 2011

यही है जिंदगी..


गम को पीना हमको भाया
अब यही हमारा काम
आओ मिलकर इसे बाँट लें
जीना इसी का नाम ..

Saturday, September 10, 2011

इंस्पीरेशन..यानि प्रेरणा...


मुझे ऐसा लगता है कि हम अपनी हर बात किसी से प्रेरित होकर ही कहते हैं,या तो वो कोई घटना होती है, या अनुभव ।
अब मुझे ही लीजिए- मैनें पिछली पोस्ट लिखी एक ब्लॉग पर आई टिप्पणी से प्रेरित होकर ..पर सिर्फ़ उस ब्लॉग के लिए नहीं --सबके लिए और जिस ब्लॉगपोस्ट से प्रेरणा मिली,वो कहीं और से प्रेरित होकर लिखी गई थी ।
यही नहीं मेरी बोरियत से प्रेरित होकर बेटे वत्सल ने अपना ब्लॉग मुझे दिखाया था ,और मेरा ब्लॉग बना दिया था ,मैने छोटी बहन रचना जो बहुत पहले से लिखती थी, से प्रेरित होकर चार -छ:लाईन लिखकर शुरुआत की लिखने की.. 

इस तरह सीखते-पढ़ते आज एक पोस्ट का  पॉडकास्ट बनाया है ..अब ये नया इसलिए है कि मैं आमतौर पर ऐसे पॉडकास्ट नहीं बनाती ....( नशे/वशे  या नेता/वेता के नाम वाले)......पर ये सामयिक लगा और फ़िर ...कहीं पढ़ी  एक लाईन - "देखी जाएगी" से प्रेरणा लेकर पोस्ट कर ही दिया है आज ....सुनिए दीपक बाबा की बकबक नामक ब्लॉग से एक पोस्ट ---

नशा बुरी बात .......नहीं तो सब कुछ उल्टा-पुल्टा .



Wednesday, September 7, 2011

अनोखा अनुभव

कल एक अनोखा अनुभव हुआ,(अब ब्लॉग की खबर हो तो अनोखी तो होगी ही),मुझे भूत चढ़ा है पॉडकास्ट बनाने और फ़िर उसे लोगों को सुनवाने का....इस सिलसिले में मुझे कई लोगों के ब्लॉग पर चक्कर लगाते रहना पड़ता है, क्योंकि ये भूत रोज़ कुछ नया और बढ़िया लिखा पसन्द करता है ...

अब होता ये है कि इस चक्कर में जहाँ पहुँचती हूँ वहाँ एक पोस्ट नहीं, सारी देखनी पड़ती है आगे-पीछे...क्योंकि जब पहुँच ही गए हों अच्छी जगह तो लगता है कि दो-चार दिनों का कोटा मिले तो ये भूत बैठे वरना फ़िर सिर चढ़कर नाचने लगेगा....(अब तो परिवार वाले भी तंग आ गए हैं इस भूत से ..पता नहीं किसी दिन मुझे मेरे भूत के साथ जंगल में ही छोड़ आएं)...

हाँ तो जब मैं ऐसे ही खोजते-खोजेते एक ब्लॉग पर पहूँची तो एक मजेदार पोस्ट मिली ...आगे -पीछे भी कुछ चल जाने जैसा ही था..(अब शक हो गया है )...   

फ़िर अपनी आदत से लाचार होकर उस पोस्ट पर एक संकेत छोड़ दिया - जिससे वो समझ सकें कि अब भूत कभी भी आ सकता है और मेरे लिये ये सम्मन भेजने जैसा हो जाता है- कि कम से कम बिना बताये तो नहीं लिया पोस्ट को ...


कई बार होता ये हैं कि मैं पहले पोस्ट खोजकर उसका पॉडकास्ट बना लेती हूँ फ़िर लोगों को सुनवाने से पहले उसके मालिक को सुनवा देती हूँ ताकि भूत भी खुश और पोस्ट का मालिक भी खुश (हाँ कहे तभी औरों को सुनवाती हूँ वरना आप तो जानते ही हैं कि ये ब्लॉगजगत है मेरी तो शामत ही आ जाये एक ओर से ये भूत दूसरी तरफ़ वो पोस्ट का मालिक )जीना मुश्किल (हराम नहीं)....



हाँ तो आगे --हुआ ये कि- पोस्ट तय करने के बाद जब रिकार्ड करने के लिए दुबारा वहाँ पहुँची तो चौंक गई ...एक अन्य सज्जन चुपके से उस पोस्ट मालिक को याद दिला गए थे कि ये पोस्ट उन्होंने कहीं और पढ़ी है ऐसा महसूस हो रहा है ...पोस्ट मालिक भी जल्दी से समझ गया था (चुपचाप)..ये जानकर मैं तो बाल-बाल बची कि ये पोस्ट का मालिक असली नहीं है वो तो कोई और हैं और तब पता चला कि भूत सिर्फ़ मेरे सिर पर ही नहीं चढ़ा है ऐसे और भी लोग हैं जिनके सिर पर इस भूत के परिवार वाले सवार है ...


अब मुझे इस भूत का ख्याल रखने में विशेष सावधानी रखनी होगी (पॉडकास्ट बनाने से पहले भी अनुमति लेना होगी) वर्ना मरने के बाद भी सिर चढ़कर बोलता रहेगा और मैं भूत और मालिक की लड़ाई में बेवजह पिसी जाउंगी और बेकार में ही पाप सिर चढ़ जाएगा..क्या पता अगले जन्म में उसका फ़ल मिलने लगे ...... 


अब खास बात ये कि अगर मुझे सही मालिक का पता न हो और गलती से नकली मालिक से अनुमति ले लूँ तो माफ़ी माँगकर पल्ला झाड़ सकती हूँ न ...

आपकी क्या राय है ???अच्छी पोस्ट जहाँ से पहले मिले वहाँ से चुन लूँ या नहीं ???


Saturday, September 3, 2011

माँ को नहीं आता मोबाइल चलाना......

 अरूण चन्द्र रॉय जी की कविताएं ...उनके ब्लॉग सरोकार से ...