Thursday, June 29, 2017

मेल मुलाकात और गिरिजा कुलश्रेष्ठ जी का गीत

गिरिजा दी से इस बार फिर मुलाकात हुई बंगलौर में ,इस बार रश्मिप्रभा दी के घर हम मिले।ऋता शेखर भी साथ थी, गिरिजा दी और रश्मिप्रभा दी पहली बार एक -दूसरे से मिल रही थी, और फिर जो दिन भर बातों में बीता पता ही नहीं चला शाम के 6 बजे पहली बार घड़ी देखी और फिर देर हो गई,देर हो गई करते करते 7 बज गए ।बहुत आत्मीय रही मुलाकात सबकी,बहुत अच्छा लगा ,खास बात ये की चारों ब्लॉग लिखती हैं।
वहीं ऋता जी ने भी अपनी कुंडलियों का और गिरिजा दी ने अपना गीत संग्रह - "कुछ ठहर ले और मेरी जिंदगी"भेंट दिया , आज उसी संग्रह से एक गीत - "सर्वव्यापक" गाने  का प्रयास किया है आप सब भी सुनियेगा -
(प्लेयर को सक्रिय करें, एक बार में न हो तो पुनः करें)



Wednesday, June 28, 2017

रविशंकर श्रीवास्तव जी के व्यंग्य का पॉडकास्ट


व्यंग्य की जुगलबंदी के अंतर्गत "खेती" विषय पर लिखे गए रविशंकर श्रीवास्तव जी   




के ब्लॉग "छींटे और बौछारें " पर प्रकाशित व्यंग्य -


भारतीय खेती की असली, आखिरी कहानी

यहाँ  सुनिए -



  इसे आप यहां भी सुन सकते हैं -


हास्य-व्यंग्य पॉडकास्ट - जुगलबंदी - खेती


Sunday, June 25, 2017

योगा के योगी

सुबह उठते ही नाक लंबी लंबी साँसे  लेने को व्याकुल हो उठती है ,जीभ फडफडाकर सिंहासन करने को उग्र हो जाती है, गला दहाड़ कर शेर से टक्कर को उद्दत होने लगता है , बाकी शरीर मरता क्या न करता वाली हालत में शवासन से जाग्रत होने पर मजबूर हो जाता है बेचारा, योग की आदत के चलते ...
योग का मतलब प्राणायाम युक्त शारीरिक व्यायाम ज्यादा अच्छा है समझने को , अब समझें प्राणों का आयाम ...
सिर्फ सांसो का आना जाना जीवन नहीं , उसका उछलना,कूदना डूबना,उतराना,चढ़ना, उतरना ,भागना,रूकना जी-वन है, इस हर क्रिया में शरीर को चुस्त दुरुस्त बनाये रखना योग का एक भाग हो सकता है ।
योग का एक मतलब जोड़ भी होता है उस अर्थ में एकाग्रता को केंद्र में रखा जा सकता है कि प्राणवायु के साथ शरीर और मन जुड़कर रहे ,जुड़े रहकर सबको जोड़े रह सकें।
योग व्यंग्य का विषय तो नहीं होना चाहिए पर बना दिया गया ।
पहले योग में सब कुछ त्याज्य की भावना प्रबल थी अब ग्राह्य भावना का जोर है ,जोड़ने के नाम पर सबसे पहले योग में मात्रा जोड़ योग को योगा बना लिया गया, फिर नंगधडंग शरीर को ढँकने के यौगिक वस्त्र अपनाए जाने लगे , दरी की जगह मेट ने ली जिसके गोल गोल रोल ही उठाए जा सकते हैं जो दृष्टिगोचर होते रहें जिससे दूर से ही व्यक्ति यौगिक लगे।
बचपन में जबरन योग शिविर में जो कुछ सीखा वो भी इसलिए कि बाकी लोग वो आसन नहीं कर पा रहे थे पर मन पर असर कर गया।
मुझे याद है जब छठी कक्षा में थी एक योगी आया था स्कूल में अपने योग का प्रदर्शन करने ,हमारी कन्याशाला थी ,सब लड़कियों को एक हॉल में इकठ्ठे किया गया और करीब 2 घंटे तक उसने भिन्न भिन्न क्रियाएं और आसन करके दिखाए थे,जब उसने अपना पेट उघाड़ के आँतड़ियों को मथते हुए दिखाया सब मुँह दबाकर हंसने लगे थे लेकिन उसका तेजोमय चेहरा आज भी उसकी याद दिला देता है,जो आंतरिक तेज से जगमग था शायद....
आज लोग खा पीकर मोटापे से त्रस्त हो रहे हैं और योग बाबाओं की भरमार हो गई, योग भी वस्तु की तरह बाज़ार में आ गया ..और चेहरे को तेजोमय बनाने की यौगिक क्रीम ,तेल उपलब्ध हैं ...शरीर पर असर करने से ज्यादा जेब पर असरकारी हो गया योग और चेहरे का तेज आंतरिक न होकर बाह्य रह गया ....समय और सत्ता परिवर्तन के चलते कालांतर में राजनीति भी सीख लिए योगी...
परिणाम स्वरूप बन गया - यही व्यंग्य का विषय !!!

Thursday, June 22, 2017

देनेवाला श्री भगवान!


सोते हुए लगा
कल उठूंगी या नहीं
कौन जाने!

भोर में आँख खुली ...
खुद को जागा हुआ
यानि जीवित पाया ...
कल की सुबह,
सुबह का संगीत
याद आया,
घूमना और
दिन की पूजा
खाना,
सब याद आया,
याद आया-
अकेली बत्तख का
झील में तैरना ,
झील की बंधी किनारी के साथ बने
वॉकिंग ट्रेक पर कुत्तों का
आसमान की ओर ताकते
इधर-उधर दौड़ना,
जल कुकड़ों का तैरते -तैरते
पानी पर दौड़कर
अचानक उड़ जाना ,
फिर
पानी में डुबकी लगा
मछली पकड़ना
उस पकड़ी मछली को
चील का आकाश से
अचानक नीचे आ
झपट्टा मार उसके मुंह से छीन लेना
दूसरी चीलों का उसपर
झपटना,और
मछली का ट्रैक पर गिर जाना
और कुत्तों का भोजन बनना....
यानि
दाने-दाने पर खाने वाले का नाम है
और जीवित रखा तो ,
पालना- पालनहारे का काम है ....

Wednesday, June 21, 2017

गर्म फुल्का लघु कथा - शेफाली पाण्डे

आज एक लघु कथा सुनिए शेफाली पाण्डे जी के ब्लॉग कुमाउँनी चेली  से 


शीर्षक है- गर्म फुल्का 

Sunday, June 18, 2017

एक साधारण से गली क्रिकेट के प्लेयर की कहानी

रोज मॉर्निंग वॉक पर घूमने जाने पर वे एक फ्लैट की खिड़की से बाहर देखते हुए दिखते हैं शाम को भी वे उसी खिड़की पर बैठे सामने दिख रहे मैदान में क्रिकेट खेल रहे बच्चों को देखते रहते हैं ....
एक समय था जब वे बहुत अच्छे खिलाड़ी हुआ करते थे ,अपने शहर के ।अपने जवानी के दिनों में बहुत नाम कमाया इस खेल से उन्होंने, कहते हैं कि खूबसूरत तो बला के थे ही स्टाईलिश भी कम न थे, कभी लंबे बाल तो कभी छोटे बाल ,कभी हेट का स्टाईल तो कभी टोपी का स्टाईल बदलते ही लोग दीवाने हो जाते उनके ,खेल तो खैर जो था सो था,क्रिकेट के खेल में चल गए तो चल गए कभी बल्ला बोला तो कभी बॉल बोली लेकिन अगर दोनों न बोले तो लोगों की गालियां तो बोलती ही हैं ....सुनने को जरूर कुछ मिलता है अपने बारे में अच्छाई हो या बुराई अखबारों में जगह पक्की समझो।भले लोकल न्यूज ही क्यों न हो
गावसकर के बाद कपिल और सचिन से होता हुआ ये खेल हर भारतीय पुरुष का अपने गोत्र की तरह चिपका हुआ खेल बन गया ।खुद उसे पता ही नहीं चल पाता कि कब बॉल और बेट उसके हाथ में पकड़ा दिया जाएगा,कब गली के भैया की बॉल दौडदौड कर फेंक कर वापस देने के कारण उसे टीम का मेम्बर  बनने का चांस मिल जाएगा, और माँ -पिता के घिसे-पिटे संस्कारित प्रवचनों से छूटने का इतना आसान मौका मिलेगा हर दिन मैच खेलने के बहाने ....
ये सोचते सोचते कि बस इस बार जिले से आगे स्टेट टीम में चुने गए तो और आगे कभी न कभी  रणजी में तो चुन ही लिए जाएंगे पढ़ाई लिखाई ताक पर रखी रही ,सिलेक्शन न होना था न कभी हुआ ।
घरबार की जिम्मेदारी के चलते उसी मैदान में कोच बन गए ,समर केम्प चलाने लगे ,सोचते बस एक सचिन निकाल दें किसी तरह तो जिंदगी संवर जाए ...और कभी कोई दूसरा सचिन न निकला .....
अब बच्चों के भरोसे हैं, बैठे रहते हैं खिड़की से चिपके..

Monday, June 12, 2017

व्हाट्स एप मैत्री का अंत


व्हाट्स एप पर नए नंबर से Hiii  के बाद एक प्रश्न और आगे दो टेक्स्ट मेसेज तीन फ़ोटो मेसेज और अंत में फिर वही प्रश्न...

टेक्स्ट मेसेज में पहले का अंश -
परखो तो कोई अपना नहीं
समझो तो कोई पराया नहीं
Good morning

दूसरे का अंश -
सुख दुख तो अतिथि हैं
बारी बारी से आएंगे चले जाएंगे
यदि वो नहीं आएंगे तो
हम अनुभव कहां से लाएंगे
Good morning

फ़ोटो मेसेज में पहला -



दूसरे में -
सुबह की राम राम

तीसरे में-
Enjoy your sunday
(अंग्रेजी में ही, चाय के भरे हुए कप पर )
फिर दो बार वही प्रश्न और एक नया प्रश्न

(इतना लिखते लिखते 3 मेसेज और आ गए , चेक किया तो तीन फ़ोटो और थे पहला फिर एक चाय का कप पर इस बार हाथ में पकड़ा और उस पर दो चिड़ियाएँ बैठी थी good morning पकड़े
दूसरा -

 और तीसरे में लिखा हुआ है-
यकीन और दुआ
नज़र नहीं आते
नामुमकिन को
मुमकिन बना देते है
Good morning

इतने में एक और मेसेज
वाक्य टपक पड़ा -
Aap ko nhi karna he mat kar na.....

अब आप पहले प्रश्न जान लें -
पहले बार बार रिपीट होने वाला प्रश्न-
Aap kha se ho

और दूसरा -
Aap moje se friendship karo ge

...और मैनें इस मासूम सी बच्ची की प्रोफ़ाईल फ़ोटो वाले नंबर को ब्लॉक कर दिया... दिमाग का दही बना देने के एवज में .......
बादलों से ढँके एक खूबसूरत रविवार की सुबह - सुबह ...

कोई लौटा दे मेरे बीते हुए दिन

हमने लिखने की कोशिश की खेती पर तो वर्चुअल दुनिया में गुम हो गए ,लिख न पाए हाथ में कलम की जगह गन्ना महसूस होने लगा ...और किसी तरह की सुझाई गई खेती की ही न जा सकी इसके बाद ....

नहीं लिखना आया, नहीं लिख सकी, पिता ही आंखों के सामने आते रहे, सिर्फ खेती को लहलहाते देखा ,पिताजी रोज खेत पर जाते थे जो करीब 12 किलोमीटर दूर था याद नहीं एकड़ में कितनी खेती थी,और वापसी में ताज़ी सब्जियां ,भाजियां लाते उनमें से कई भाजियां तो अब मिलती ही नहीं जो दादी माँ से बनवाती थी ,जब छोटी थी तो जिद्द करती मोटरसाइकिल "राजदूत" पर आगे बैठने की मोटरसाईकिल पर पिताजी आगे बैठा लेते,और हेंडल पकड़ाते पकड़ाते कब चलाना सीखा दिया मुझे पता ही नहीं लगा, नदी में पानी बहुत कम होता तो जब मोटरसाईकिल तेजी से निकालनी पड़ती तो दोनों ओर उड़ते फव्वारें की बौछार में जो मजा आता, अब दुनिया के किसी वॉटरपार्क में नहीं महसूस किया या कराया जा सकता ,जब नदी में थोड़ा ज्यादा पानी होता  तो बैल जोतकर छकड़े पर जाते ,कई बार बैलगाड़ी से बनी हवाई पट्टी के बीच दौड़ लगाती ऊपर उड़ती चिड़िया से रेस लेकर ,रास्ते में बेर की झाड़ियां रोक लेती और चिड़िया से हार जाने का बहाना मिल जाता....
खेत में चारों ओर मेड़- मेड़ हम घूमते कभी उंगली पकड़ ,कभी ऊंची फसल के बीच लुकाछिपी खेलते ,
साथ -साथ कच्ची सब्जियां ककड़ी,भिंडी,गाजर,मूली उखाड़ खाते जाते पानी के लिए एक गन्ना या टमाटर....
आम के बोरे आते खेत से घर , सब मिल चौक में आम चूसते, आपस में कॉम्पिटिशन करते
जब कपास आता तो कमरे में स्टोर बना दिया जाता , छुपा छाई खेलते ,कपास पर कूदते जब दादी डंडा लाती तो कपास के अंदर छुप जाते
मूंगफली आती को दादी नापकर ढेर बनाकर उसको हाथ से फोड़कर उसमें से दाने निकलवाती, कहती इतना ढेर खत्म होने पर खेलने मिलेगा या कोई और लालच देती ...
... बड़ा सा कुआं खुदवाया तो उसमें नीचे उतर कर पूजा करना आज भी याद आता है ,भुटटे,चने गेंहू निकलते तो सारा परिवार दोस्तों के साथ पिकनिक मनाने गांव जाता
घर में गाय भैंस की साज संभाल भी तभी सीखी...
अब कुछ नहीं....
सब बंट गया न वो खेत रहा न घर का चौक...
अब सब कुछ मिसिंग....😢
अपने बच्चों तक को ये अनुभव नहीं करवा पाए तो अब उनके बच्चों को कहानियों में भी शायद ही समझा पाएं
मैं तो सिर्फ शौकिया किसान की बेटी रही ....

गांव में खेत पर जो काम करते थे वो अब तक हैं उनके बच्चे भी वही काम करते हैं अब जो बचा हिस्सा है उस पर काम करते है ......

आज के किसान के बारे में क्या लिखूं -

अखबार शायद ही कोई किसान पढ़े जिसमें उसकी आत्महत्या की खबरें छपती है ,धरने प्रदर्शन चक्का जाम करके न तो फसलें उगाई जा सकती है न पशुधन की साज संभाल ही हो पाती होगी
जिसका बचपन खेती करते हुए बीता हो, जवानी खेती देखते हुए, और बुढापे तक जिसके पास खेती सपने में आने जैसी बचे असल में वही  किसान का दर्द समझ सकता है ,  उपवास करके पेट की भूख को मारा ही जा सकता है,भरा नहीं जा सकता ....

Thursday, June 8, 2017

"लोहे का घर" श्रंखला का एक अंश


आज सुनिए ब्लॉगर देवेंद्र पांडेय जी के फेसबुक पर प्रकाशित स्टेटस "लोहे के घर" श्रंखला का एक अंश -





    

Sunday, June 4, 2017

हमको भी बनना है - टॉपर


टॉप कभी किया नहीं तो सोचना पड़ेगा , गुड -बेटर- बेस्ट पढ़ा था 9वीं क्लास में शायद , खूब रटा था रे बाबा, ये टॉपर भी बेटर का भाईबंदी होगा ,पर फिर टोपेस्ट कहाँ ,किस मेले में गुम हो गया होगा?खैर! हम हिंदी मीडियम वाले,अंग्रेजी शब्दों को समझने के लिए जात -पात के फंडे को अपनाते हैं ,जैसे बच्चों का चेहरा माँ-बाप से मिलता -जुलता लगता है वैसे अंग्रेजी भी एक फेमेली वाले मिल जाते हैं, और संधि-विच्छेद करके समझें तो टॉप पर ,अब टॉप पर तो एवरेस्ट की चोटी के बारे में पढ़ते समय ही जाना था कि सबसे ऊंचाई पर टॉप होता है जो उस पर चढ़ जाए उसी को टॉपर कहते होंगे , सोचो कोई एवरेस्ट की चोटी अगर नीचे कर लें तो ....भारतीय जुगाड़ियों का कोई भरोसा नहीं ,कुछ भी कर सकते हैं, व्यापम नहीं सुना क्या? 😊 आज तक पता न चल पाया कि टॉप पर था कौन जो इतनों को ऊपर से लटका के छोड़ दिया .... कई तो लटके लटके ऊपर चले गए पर टॉप पर न पहुंच पाए....
टॉप पर संजीवनी बूटी बहुतायत में मिलती होगी शायद तभी इतनी मेहनत से पहुंचने की जुगाड़ में लगे रहते हैं जुगाड़ी....
इन दिनों हमको भी चस्का हो आया है टॉपर बनने का,पकड़ लिए हैं जुगलबंदी की रस्सी ,अभी लटके हुए हैं,अनुभव के साथ  उम्र का लफड़ा न होता तो पहुँच चुके होते अब तक ....टॉप पर, कहलाते - टॉपर ......