Saturday, December 28, 2013

नया साल ...

भटकता है मन
छिटकती हूं मैं
देखो-
फ़िर चला आया है 
एक और नया साल...

तुम्हारे बिना
अकेले चलना 
कठिन है बहुत
साल दर साल....
देखो-
फ़िर चला आया है 
एक और नया साल...

उम्र का एक और पड़ाव
नन्हा सा  एक जुड़ाव,
और बदल देगा फ़िर से 
विधाता मेरी चाल 
देखो-
फ़िर चला आया है 
एक और नया साल...

जितने करीब आना चाहूँ
रिश्तों को झुठलाना चाहूं
बन्धन उतना ही कसता जाता
खतम न होता मेरा काल 
देखो- 
फ़िर चला आया है 
एक और नया साल...

कुछ काम अभी और हैं बाकी
तुम बिन अकेले करना साथी
न जाने कब होगा खतम ये 
जीवन के नाटक का अन्तराल....
देखो-
फ़िर चला आया है 
एक और नया साल...

भटकता है मन
छिटकती हूं मैं
देखो-
फ़िर चला आया है 
एक और नया साल...


 


Friday, December 20, 2013

ठंड...

१)
ये सरसराहट
और
ठंड़ी हवा की
छुअन
बीते पल
याद दिलाती है...
क्योंकि
रजाई में दुबके ही
सुबह-सुबह
कहते थे तुम-
तू बड़ी अच्छी
चाय बनाती है........
-अर्चना

२)
कड़ाके की ठंड
और ठंड में ठिठुरते बच्चे
सड़कों पर ....
काश कि कभी
सूरज ले लेता
किराए का कमरा
इन दिनों
फ़ुटपाथ पर
धूप की रजाई
ओढ़ा देती माँ
काम पर जाने से पहले .....
-अर्चना


३)
फ़िर ठंड का मौसम आया है
बचपन की गलियों में घुमा गया है
सुबह देर से उठना
अपनी हथेलियों को रगड़ना
माँ के हाथ का बना स्वेटर
और पापा वाला मफ़लर
सुबह गरम जलेबी और पोहा
शाम को उबला दूध और मेवा
दादी की गरम रजाई में घुस जाना
और फ़िर उनसे राजा-रानी की कहानी सुनना
उफ़्फ़ कितना कुछ याद दिला गया है
फ़िर ठंड का मौसम आया है ...
-अर्चना

४)

ठंड के मौसम में
माँ का पकड़कर नहलाना
ना ना करते मेरा नहाना
और लपेट कर फ़र वाला तौलिया
भाग कर हल्की धूप में जाना
फ़िर मुँह और कान बन्द कर
बिना बदन पौंछे
घुटनों पर सर को दबाना
और दाँतों का किटकिटाना
याद आता है हर बार

ठंड के मौसम में ....
-अर्चना

Tuesday, December 17, 2013

एक हल्का-फ़ुल्का वार्तालाप बज़्ज़ के जमाने का .....

archana chaoji –कॄपया ध्यान दें-----मेरे मास्टरजी को अपने नाम के आगे "आचार्य" लगाना है. कोई उपाय
ताकि वे अपनी ईच्छा पूरी कर सकें...शीघ्र बताएं...समय कम है ......
 vardhman gupte – kya pata.
archana chaoji – तो पता करके बताओ कही से
Sameer Lal – अपने आप से लगाने लगें आचार्य...कोई पूछने थोड़ी न आयेगा.
Girish Billore – उपाय काले घोड़े के बाएं पैर की नाल मंगाएं  
Girish Billore – फ़िर बताता हूं   
Sameer Lal – सो तो अंगूठी धारण किए हैं उसकी   
Smart Indian – आप कुछ लोग मिलकर एक सर्टिफिकेट प्रिंट कराकर अपने प्रधानाचार्य द्वारा उन्हें घर जाकर फूलमाला सहित प्रदान कर दीजिये कि आपके मंडल ने शिक्षा के प्रति उनकी सेवाओं को मान्यता दी है। 
ajay jha – आलरेडी बन चुके किसी आचार्य को उनके आगे खडा करके ..कस के बांध दें ..और एक बोर्ड भी लिख दें ..हम साथ साथ हैं ....   
archana chaoji – @Sameer Lal-भला कैसे---............... आचार्य समीर लाल ---ऐसे..???   
archana chaoji – @ Girish Billore-कहाँ से..?  
archana chaoji – @Smart Indian - सर्टिफ़िकेट मे कुछ छपवाना भी होगा क्या?   
archana chaoji – @ajai jha-ये आलरेडी बन चुके आचार्य कहाँ से मिलेंगे?   
Smart Indian – वह सब आपकी श्रद्धा और भावी आचार्यजी की बैकग्राउंड पर। उदाहरण के लिये अंतर्राष्ट्रीय हिन्दी प्रचार प्रसार संघ पिट्सबर्ग के तत्त्वावधान में शिक्षा ऐवम साहित्य के क्षेत्र में श्रीमान .... द्वारा प्रदत्त सेवाओं को .... की ... आचार्य की उपाधि से सम्मानित किया जाता है। ... आदि जैसा कुछ.
archana chaoji – @Smart Indian-अब जैसे समीर लाल जी के लिए बनवाना हो तो कैसे होगा ?  
Smart Indian – तो ये सब मज़ाक था? हम तो समझे कोई गुरू जी शर-शय्या पर पडे हैं आचार्य पदवी के उत्तरायण के इंतज़ार में और आप सीरियसली उनकी अंतिम इच्छा पूरी करना चाहती हैं। ऐनीवे, अपनी एक पंक्ति सुनिये अब सज़ा के तौर पर ...
प्रवृत्ति है अनुहार ढूंढने की, जभी तो ठगा जाता हूँ मैं  
Smart Indian – समीर जी के लिये है तो प्रमाणपत्र में से पिट्सबर्ग हटाकर इन्दौर या जबलपुर कर दीजिये।  
archana chaoji – माफ़ी चाहूँगी अनुराग जी ...आप जो भी सजा दे कबूल है ..   
archana chaoji – द्वारा प्रदत्त सेवाओं को .... की ... आचार्य की उपाधि-------और यहाँ -?   
archana chaoji – समीर जी का नाम उदाहरण के तौर पर लिया था...दर असल जानकारी ये चाहिये थी कि क्या आचार्य लिखने के लिये कोई कोर्स किया जाता है क्या? 
Surya Mani Pandey – Haa aachary ki upadhi Sanskrit vishvvidyalay dvara pradan ki jaane vali post graduation degree hai .  
Dr. Mahesh Sinha – अपना सरनेम आचार्य रख लें   
Surya Mani Pandey – Aise to sir name kyo ...
Naam hi rakh le to kabhi kabhi aachary.ji bi sunne ko milega .. 
archana chaoji – नही ......नाम के आगे आचार्य लगाना है ..  
Surya Mani Pandey – http://ssvv.up.nic.in/

Pe logon karen ... 
Surya Mani Pandey – Aur aachary ki degree ke baad hi sambhav hoga ..  
Surya Mani Pandey – Prathama
10
Class V
Purva – Madhyama
13
Class VIII With Sanskrit; Prathama or equivalent examination recognized by Sansthan.
Uttara – Madhyama 
15
Purvamadhyama, Matric with Sanskrit or equivalent examination.
Prak – Shastri
15
Class X (Of Board examination) subject to passing the entrance test in Sanskrit.
Shastri
17
+2 with Sanskrit Uttara Madhyama, Prak Shastri or equivalent.
Bridge Course (Setu)
19
Shastri or equivalent
Acharya
20
B.A. with Sanskrit, Shastri or equivalent.
Shiksha – Shastri
20
Shastri or Acharya or equivalent exam in Sanskrit with at least 45% marks and subject to passing PSST exam.
Vidyavaridhi 
22
Acharya or equivalent exam in Sanskrit with at least 55% or 60% marks  
archana chaoji – शुक्रिया............*Surya*...  
Sameer Lal – मोटों की बात चले तो उदाहरण समीर लाल, कालों की बात चले तो उदाहरण समीर लाल, ब्लॉगरों की बात चले तो उदाहरण समीर लाल, अब आचार्य में भी हम ही धिसटा रहे हैं...मानो समीर लाल, समीर लाल न होकर बस उदाहरण हो गये हो....

इत्ता कोर्स करने से बेहतर बिना आचार्य लिखे जी लेंगे किसी तरह. :)   
archana chaoji – हा हा हा ...मै अपना उदाहरण वापस लेती हूँ...   
Surya Mani Pandey – Teen cheejen vaapas nahi hoti ...

1.Baat jubaan se
2.Teer kamaan se
3.Aur samay   
archana chaoji – ओह्ह.. प्लीज इस बार माफ़ कर दो ..आगे से ध्यान रखूंगी 
Surya Mani Pandey – Sameer sir
Aap hi kuchh upaay sujhaayen ...  
Sameer Lal – अपने नाम के आगे आचार्य की जगह उद. लगा लेता हूँ...याने उदाहरण के लिए पढ़ा जाये....

उद. समीर लाल

ex. sameer lal  
Surya Mani Pandey – Achchhi baat hai ...
Aaye the hari bhajan ko otan lage kapaas .. 
Sameer Lal – कपास तो हाथ लगी..यहाँ तो बेवजह पिसे... :)   
Surya Mani Pandey – Aap hi kuchh maarg darshan kare nahi to Sanskrit vishvvidyalay ki raah dekhnee padegi ...  
Surya Mani Pandey – Vahi haal hai gavaah chust
muddai sust ..
Aise thode aacharya ki degree miltee hai ...  
Sameer Lal – अरे, मगर हम कहाँ मांगे आचार्य की उपाधि..हमें तो उदाहरण में लपेट लिया गया....   
Surya Mani Pandey – Ab mai kya kahoo...

Jaan bachi to laakhon paaye ..
Ghar ko budhdhoo laut ke aaye ...  
archana chaoji – हा हा हा बहुत सही फ़रमाया Suryaa..... 
Sameer Lal – समीर लाल ’समीर’ ही ठीक है...बस्स!!!   
Surya Mani Pandey – Sameer sir
Chhaa gaye hai chaaro taraf ...   
Sameer Lal – size hi aisa hai...ki jahan khade ho jayen, chaye se hi lagte hain..kai bachche to dhoop se bachne ke liye humari panah le lete hain. :)  
Surya Mani Pandey – Bahut achchhi baat baat hai sir Aap mahan hai ...
Aap khud dhoop me khade rahte hai aur ...log aapki chhaya me mastee karte
hai ...
Aap apnee chhaya aise hi pradan karte rahen ..
Aapko Dandvat ... 
Sameer Lal – तथास्तु!!!! खुश रहिये!! :)   
Surya Mani Pandey – Shukriya .... 
Raj Bhatia – अगर हमे दक्षिणा दे तो हम लगा देते हे आचार्य नाम के आगे, सार्टीफ़िकेट भी मिल जायेगा नकली या असली इस से क्या लाभ, बस सार्टिफ़िकेट मिल जायेगा  

Thursday, December 12, 2013

एक नरम दिल फ़ौजी...गौतम राजरिशी

कल परसों ही मैंने बताया था न कि  मन एक गीत पर जाकर फ़ँस गया था तो  ऐसे ही एक दिन नज़र जाकर अटक गई थी गौतम राजरिशी जी की गज़ल पर -- अब तो सबको पता है कि मुझे गाना आता नहीं .. वो तो ईश्वर मेहरबान हो जाता है कि ऐसी सिचुएशन बनाते रहता है ...जैसे इस गज़ल की एक लाईन --
"ऊँगली छुई थी चाय का कप थामते हुए".....(और चाय तो अपनी कमजोरी है )
तो इसको जब गाने का मन हुआ तो बहुत रात हो चुकी थी , और भतीजा बगल के कमरे में पढ़ाई कर रहा था तो आवाज ज्यादा जोर से नहीं निकाल सकती थी...दबी सी आवाज में ट्राय किया कि इसे अभी ही रिकार्ड करूं , मन गया तो फ़िर गया ही समझो ...सो ये हुआ रिकार्ड-



 अब गा लिया तो सुनाना भी जरूरी हो जाता है, सो भेज दिया गौतम जी को ...और उनकी प्रतिक्रिया थी -

"ओ माय गॉड.... ओ माsssssय गॉड !!!!! अर्चना मैम ...कितनी सूदिंग आवाज़ है आपकी ! शुक्रिया मैम ! वैसे अचानक से शुक्रिया शब्द छोटा प्रतीत हो रहा है | फिर भी...शुक्रिया ! शुक्रिया !! शुक्रिया !!!! नेट की स्पीड इतनी मद्दम है यहाँ इन पहाड़ों पर कि बड़ी मुश्किल से तो डाउन्लोड हुआ है ये और तब से लगातार यही बज रहा है मेरे लैपटॉप पर रिपीट मोड में |"

और गौतम जी ने अपने ब्लॉग पर इसे जो सम्मान दिया... मेरी आँखें नम हो गई पता नहीं क्यूँ.....

Tuesday, December 10, 2013

मन है कि मानता नहीं ....

 कभी-कभी मन किसी जगह/ बात/ रचना पर जाकर ऐसे फ़ँस जाता है कि बार -बार कोशिश करने पर भी लौट नहीं पाता वहाँ से, ऐसी की एक रचना रवि शंकर जी के इस ब्लॉग पर देखी ...तबियत कुछ ठीक नहीं चल रही कुछ दिनों से गाना तो वैसे भी नहीं आता पर इस शौक ने जान निकाल रखी है , फ़िलहाल साँस भी फ़ूल रही है , पर मन है कि मानता नहीं ...
वैसे भी कौन हम गायिका हैं जो झेंपे ऐसा-वैसा गाने से .... हम तो बस "रमती जोगिन" हैं सो ले आई हूं इस गीत को  आपके लिए ......
अब सुनिये .....



इनके  ब्लॉग का नाम है -  वो मुझमें तेरा हिस्सा सा.... 




Saturday, December 7, 2013

चार पंक्तियाँ ...

वक्त ने फ़िर नया मोड़ लिया
उफ़नती लहरों के बीच हमें छोड़ दिया
हैं हम पानी से भी तरल और सरल
बस! हमने भी चट पट बूँदों से रिश्ता जोड़ लिया ....


इन्सान बनाने की प्रयोगशाला  में
ईश्वर ने हमको दुखों का कोढ़ दिया
भूल गया था शायद जल्दबाजी में वो भी
सहनशक्ति की आलमारी का ताला खुला छोड़ गया .... 


Saturday, November 30, 2013

सुबह ...


1
नई सुबह के नए सपने
उग आते है सूरज के साथ
दिन भर देकर अपनी खुशबू
फिर झड जाते शाम के साथ
रात की काली चादर बिछा
सितारे उनको फिर सहलाते
चाँद की प्यारी पप्पी पाकर
सूरज संग वो उग आते ....
-अर्चना


2
सुबह होने को है ,
एक सपना टूटा
एक अपना
पीछे छूटा
आता ही होगा सूरज
लेकर धूप
और ज्यादा झुलसाने को
लेकिन उजाले की किरण
भर देगी लगन
उम्मीद के आँगन में
हम जुट जायेंगे
नए सपने को तलाशने
दिन के उजाले में
रात के चैन के लिए
भूलकर टूटे सपने का गम
उठें कि
सुबह होने को है...
-अर्चना

Monday, November 25, 2013

शादी की सालगिरह ......



प्रिय सनी,
 "..........."
बहुत दिनों बाद आज तय किया कि आपको पत्र लिखूँ , मुझे पता है, आपको भी याद होगा कि आज हमारी शादी की उन्तीसवीं सालगिरह है , और ये भी पता है, कि अगर आप होते तो क्या गिफ़्ट देते .....

अपनी मुलाकात की एक लम्बी सी कहानी याद आ रही है, जिसकी शुरूआत उस दिन से होती है, जब मेरे घर एक पोस्टकार्ड आया था नागपूर से ... जिसमें लिखा था कि हमें आपकी लड़की पसन्द है, और हमलोग अगले हफ़्ते आकर बात पक्की करना चाहते हैं । पिताजी पत्र पढ़ते ही ऑफ़िस से उठकर अन्दर आ गए थे और पढ़कर सुनाया था दादी और माँ को ,सबके चेहरे पर खुशी  की लहर दौड़ गई थी ,और सब खुश होते भी क्यों नहीं लगभग साल भर बाद ये जबाब आया था और इस बीच कई जगह रिश्ते के लिए लड़के देखने -दिखाने का अनिवार्य काम,  माँ -पिताजी कर रहे थे, पर कहीं भी बात जमीं नहीं थी, मुझे भी माँ ने बताया था कि चलो अच्छा हुआ , उन्होंने हाँ कह दी , मुझे समझ ही नहीं आ रहा था किस लड़के के यहाँ से हाँ हुई है ... खूब याद कर रही थी, साल भर पहले की बात कि वो चेहरा सामने आए .... आया भी धुंधला सा ,लेकिन चेहरे से ज्यादा तो उस वक्त का घटनाक्रम याद आया जब पहली बार ट्रेन में इतनी दूर घर से बाहर माँ-पिताजी मुझे लेकर गए थे. वो भी इसलिये कि उनकी लड़की जो कुछ ज्यादा ही पढ़ ली थी और खेल-कूद में ज्यादा रूचि रखती थी...मोटरसाईकल चलाती थी, जिसे उस समय घरेलू लड़की नहीं कहा जा सकता था ....के लिए एक अच्छा सा वर तलाश पाएं।
खैर! याद आया कि किस तरह कहीं से जान-पहचान निकाल कर  आपकी  बुआ जी के यहाँ रूकना तय हुआ था ,और जब हम वहाँ पहुँचे तो पता चला कि उनकी तबियत ठीक नहीं है .... उनकी समझदार बेटी ने पहली बार दूर से आए अनजान मेहमानों का बहुत खयाल रखा और माँ का भी , उनसे ज्यादा बात नहीं हो पाई ,हम लोग जल्दी ही तैयार हो गए वहाँ से आपके घर जाने को ताकि उन्हें तकलीफ़ न हो , और जब आपके घर पहुँचे तो आपके पिताजी  ने बड़े संकोच से बताया था कि आपकी छुट्टीयाँ मंजूर न हो पाने के कारण आप आए ही नहीं थे , एक संतोष की सांस ली थी मैंने, कि चलो देखने-दिखाने की रस्म से छुट्टी मिली .... आपकी मम्मी जी ने हम सबके लिए स्वादिष्ट खाना बनाया,जिसके लिए  वे जानी जाती थी .... तो नया घर, नये लोग होने के बावजूद भी  बिना हिचकिचाहट के उनकी रसोई में मदद कर दी थी ....(.बल्कि एक गुजराती लड़की ने महाराष्ट्रीयन खाना बनाने का आनन्द लिया था )क्योंकि आप नहीं थे पता चल गया था , बढ़िया खाना खिलाकर हमसे  माफ़ी मांगते हुए आपके माताजी-पिताजी ने भारी मन से हमें विदा किया ... मेरे माता-पिता भी निराश ही थे ,मगर मुझे खुशी हो रही थी कि उस रस्म जिसमें लगता था, कि लड़की सब्जी-भाजी हो , से सामना नहीं हुआ था मेरा ....
..हम लोग बस स्टैन्ड पहुँचकर बुआ के गाँव जाने वाली बस में सवार होने ही वाले थे कि आपके पिताजी हाँफ़ते-हाँफ़ते वहाँ पहुँचे थे,पसीने से तरबतर, करीब ८-१० किलोमीटर साईकल दौडा कर आए थे वे, हम तीनों किसी आशंका से घिर गए थे, लेकिन वे खुश होते हुए बोले थे कि लड़का आ गया .... बिना बताए वो चला आया है छुट्टी न मिलने पर ...आप लोग कॄपया वापस चलिए, और मेरा चेहरा देखने लायक था ...... उन्हें देखकर पहली बात याद आई कि ये जेलर थे ...... कहीं हम लौट न जाएं उनके पहुँचने के पहले इसलिये साईकिल बहुत तेज चलाकर आए थे (बाद में आपके इस सरप्राइज़ की वजह से आप पर गुस्सा तो जरूर उतारा होगा कि आपने बताया नहीं था उन्हें कि आ रहे हैं )...................... खैर हम वापस लौटे .......
लेकिन बहुत मजा आया  , कोई तैयार-वैयार नही होना पड़ा और जैसे थे दिन भर के वैसे ही हम घर पहुँच गए थे , उस समय जब पहली बार हमने एक-दूसरे को देखा था, तो बस एक मुस्कान आई थी हम दोनों के चेहरे पर उस घटना के इस तरह घटने से ...आप तैयार होकर बैठे थे ,मेरे मन में चल रहा था कि मैं अपना चयन करने आई हूँ ....हम चुपचाप बैठे रहे कोई बात भी नही की और लौटते में सिर्फ़ एक बार हमारी नज़रे मिली थी बस ...बाय कहने को ...
...और उसके बाद  ये पत्र.....करीब सालभर बाद हाँ के लिए आया था ............. .....
खैर ! आपके मम्मी-पापा आए और हमारी बात पक्की करके चले गए , आप नहीं आ पाए थे ...
मैं मन में वही साल भर पहले की छबि को खोजती और सोचती कि आपका भी वही हाल होगा .... फ़िर ४-६ माह बाद की ही शादी की तारीख तय हो गई - यही 25/11/84 ....
और फ़िर शुरू हुआ एक और यादगार आदान-प्रदान ...... आपका पहला पत्र  आया .... पिताजी ने मेरा नाम देखा तो खुद आवाज लगाकर बुलाया और मेरी ओर पत्र  बढ़ा दिया था , उससे पहले मेरे नाम से किसी का  कोई पत्र तो आया नहीं था सो पिताजी से ही पूछा क्या है? .... वे हँस दिए थे ...:-) .....पत्र  लेकर एक एकान्त कोना देखकर डरते-डरते खोला था , और आँखे खुली कि खुली रह गई जब हिन्दी के बदले अंग्रेजी में लिखावट को देखा .... होश उड़ गए थे ...... बहुत खौफ़ था मुझे अंग्रेजी का .....पढ़कर समझ तो लेती थी पर लिखना नहीं आता था ..... दिन-रात ,कई बार वो पत्र पढ़ती रही थी ... उसका जबाब नहीं दिया था .... जानती थी कि पंद्रह दिन में दूसरा पत्र आने वाला है ,जिसके बारे में आपने पहले पत्र में ही लिख दिया था ।........ वही हुआ दूसरा पत्र आया इस बार पिताजी से पहले पोस्टमेन से ही ले लिया ..... अब भी वही अंग्रेजी में ..... अब अगर जबाब न दूं तो क्या होगा और दूं तो कैसे दूं ? अंग्रेजी में दिया और गलत हुआ तो क्या होगा और हिन्दी में देने से आप मूर्ख तो नहीं समझेंगे /नाराज तो नहीं हो जाएंगे .......विचार उथल-पुथल मचाने लगे थे क्योंकि आपने बहुत से प्रश्न पूछे थे जिनका जबाब आप शादी से पहले जानना चाहते थे । ...... बड़ी मुश्किल से तय किया कि हिन्दी में ही लिखूँगी ....  जो हो सो एक ही बार में हो ...... अगर अंग्रेजी में लिखा तो हमेशा अंग्रेजी में लिखना पडेगा .... :-) और आपके हर सवाल का जबाब आपको मिल गया था..... ... ... अलग भाषा ,अलग रीति-रिवाज,अलग खान-पान,अलग रहन-सहन और रूचियाँ भी बिलकुल अलग होते हुए भी सिर्फ़ मर्यादा,संस्कार और अपने बड़ों का सम्मान वाले समान गुणों के कारण हम आपसी समझदारी से अपने बीच होने वाली बहुत सी बहसों को सुलझाते हुए चल पडे़ थे ......और इस तरह शुरू हुआ था हमारा ये सफ़र ..... जीवन सफ़र .....



बच्चों के नाम तुमने ही चुन रखे थे - वत्सल और पल्लवी....
...................
....................
 .................
और सब-कुछ ठीक और व्यवस्थित चलते-चलते अचानक हुए हादसे ने सबकुछ तहस-नहस कर दिया .... ...........
खैर ! इस बीच बहुत वक्त बीत गया , हर साल इस दिन की आमद पर ये मुलाकात याद आती और साथ आते आप भी ,हम साथ रहते और आने वाले साल की प्लानिंग करते फ़िर मुझे हौसला मिलता और फ़िर मैं अपनी जिम्मेदारी संभाल लेती कुछ उदासी के साथ ............................................................... लेकिन खुशी है कि सब कुछ हमारे बीच हुए वादे के अनुसार ही हो पाया /मैंने पूरा करने की कोशिश की ............
और आज यहाँ इस ब्लॉग पर ये पत्र भी आपसे किए वादे के कारण ही संभव हो पाया है, जानती हूँ , आप मुझे किस जगह देखना चाहते थे ..... तो इस बार आप जरूर खुश हो रहे होंगे कि मैंने डर को भगा दिया है , अपने से दूर ,बहुत दूर ............................
एक बात और बता दूँ - ये बच्चे हैं न पूरे आपके जैसे ही हैं, जब पता चल जाता है कि मम्मी को इस काम से डर लगता है तो करवा के ही दम लेते हैं ... और ये हिम्मत आज कर पाई कि आपको पत्र लिखूँ... खुला पत्र ...


दोनों बच्चे अब समझदार हो गए हैं, और जिम्मेदारी से सारे काम करने लगे हैं.....बहू नेहा और दामाद निलेश भी बिलकुल वैसे ही हैं, जैसे हमने सोचा था।.........

.
.......आज आपकी बहुत याद आ रही है ...आपके आने से पहले पत्र लिख कर रख लिया .... जानती हूँ ...आप जहाँ भी होंगे देखकर खुश हो रहे होंगे और अपने बच्चों पर गर्व भी हो रहा होगा .... बाकि बातें आपके साथ .... .......
लेकिन एक तोहफ़ा जो इस ब्लॉग जगत के भैया (सलिल भैया) ने मुझे दिया था ,पिछली सालगिरह पर जब मैंने उन्हें ये तारीख बताई थी .......

आज आपको याद दिला रही हूँ-----


याद है तुमको!
तुमको कैसे याद रहेगा
याद दिलाना काम है मेरा
बच्चों की और हम दोनों की सालगिरह
और बढकर उससे
सालगिरह शादी की अपनी
याद दिलाना काम है मेरा.

ऑफिस जाने के पहले
हज्जार दफा तो कहती थी मैं
आ जाना तुम शाम को जल्दी
लोग आयेंगे
माना तुमको काम बड़े हैं अफसर हो
पर याद दिलाना काम है मेरा

आज पचीस नवंबर है
कम-से-कम आज तो याद रखो
कुछ फ़र्ज़ तुम्हारा मेरे साथ भी है
मैं सबकुछ छोडके पीछे आज के दिन ही
आई थी आँगन में तुम्हारे
बरसों पहले याद नहीं
पर याद दिलाना काम है मेरा.

जब से मुझको छोड़ गए तुम
मैं रहती हूँ व्यस्त भूलकर सारी बातें
तुमको याद दिलाना
और लोगों का आना
बिजली गुल – कैंडल ही जला दो
भूल गए सब लगता है
पर याद दिलाना काम है मेरा.

कैंडल के जलते ही
एक हवा का झोंका
फूंक मारकर बुझा गया वो जलता कैंडल
कानों में धीरे से मेरे बोल गया वो
भूल गयी २५ नवंबर
हैप्पी एनिवर्सरी मनाओ मेरे संग तुम
याद दिलाना काम है मेरा!

शादी की सालगिरह मुबारक हो !!!

आपकी
आर्ची.....

याद होगा सनी और आर्ची......कैसे नाम रख लिये थे एक-दूसरे के .... हा हा हा !!!
बन्द करती हूँ .... बाकि फ़िर ......






Friday, November 22, 2013

हिन्द-युग्म ----------------बहुत कुछ है यहाँ..सुनने को

  हिन्द-युग्म ----------------बहुत कुछ है यहाँ----सुनो कहानी ---आवाज पर -----


....................-"पत्नी का पत्र"  ............. ------रविन्द्रनाथ ठाकुर...

....................- अठन्नी का चोर........------सुदर्शन...

....................-साईकिल की सवारी.......... --सुदर्शन...

...................- तीर्थयात्रा ................... ------ सुदर्शन ...

...................- निर्वासन....................---- प्रेमचंद... 

..................  - मंत्र........................---- --प्रेमचंद ...

..................- गुलेलबाज लड़का .......--- भीष्म साहनी 

................. - बेमेल विवाह ...............----- अनुराग शर्मा

.................- जाके कभी न परी बिवाई .....--- अनुराग शर्मा 

..................- बदचलन .....................--- हरिशंकर परसाई

.................- पुरस्कार .....................----- जयशंकर प्रसाद



Tuesday, November 19, 2013

सगा-सौतेला ... कविता वर्मा जी की कहानी ...

कविता जी इन्दौर में ही रहती हैं ,पर कभी मुलाकात नहीं हुई उनसे मेरी .... आज एक कहानी कविता जी की उनके ब्लॉग - कहानी Kahani से ....शीर्षक है --"सगा-सौतेला" ......कहानी का अन्त पढ़ते-पढ़ते गला रूंध गया ..... इसके पात्र गोपाल भैया के मन में क्या हो रहा होगा ,यही विचार मन में आ गए थे .... आप सुनिए ...

Sunday, November 17, 2013

ब्लॉग और फ़ेसबुकिया साथी ...एक स्मरण

ये टैब पर नौसीखिया हूँ ,रचना और परिवार के सब सदस्य WhataApp पर मिलने लगे हैं ....
 टैब पर लिखने में मजा नहीं आता तो मौका मिलते हीं डेस्क्टॉप पर ब्लॉग  लिखती हूँ :-) .....फ़ेसबुक पर जब कभी लिखने में गलती करती हूँ तो अली भाई के इन्डायरेक्टली समझाने से समझ में आ जाता है ....राहुल सिंग जी चुपचाप लिखते-पढ़ते हैं, पता है ...
(मुझसे भी कुछ कहते नहीं बनता उनका लिखा चुपचाप ही पढ़ लेना पड़ता है , बहुत संजीदा लेखन है उनका)
इन दिनों फ़ेसबुक बहुत हुआ वहाँ मेरी हॉबी पढने,लिखने गाने के बाद अब कवर फोटो बदलना हो गई है वत्सल ने बताया .... (वत्सल-पल्लवी दोनों को बड़ा कर दिया है, अब वे मुझे संभालते हैं.....)
वहाँ का नजारा पिछले दिनों कुछ ऐसा रहा-

 निवेदिता टैगिंग से परेशान हुई ,वन्दना फ़ेसबुक पर सच्ची वाली विदा बोल कर गई है .... लगता है दीवाली पर जो पुस्तकों की रैक की सफ़ाई की थी ...कई बिना पढ़ी पुस्तकें मिली होंगी उसे ...उसके पीछे निवेदिता भी ... पर पता नहीं क्यों ? .... :-( ...वाणी को टिपण्णी करने में उलझन लगी रही ,ब्लॉगिंग बहुत बढ़िया करती है .ज्ञानवर्धक....पहले  सुबह की चाय पर मिल जाया करती थी अब वो भी नहीं आती...:-(.
पीडी,और शेखर ब्लॉक करके टैग करने वालों को लॉक लगाते रहे हैं , बीच-बीच में अभिषेक की  खिंचाई भी चलती रहती है .....   शिखा ने नया मोबाईल लिया फोटोग्राफी अच्छी है उसकी भी ,अमित जी ने रसोई में ज्ञान प्राप्त किया निवेदिता को डेंगू होने पर , काजल जी को बारिश ने बहुत  तंग किया ,  विवेक और महफूज दोनों मोटे-पतले होने में अब तक लगे हैं,शायद हो नहीं पा रहे ..... :-)
वीर जी और ललित जी ने वाट लगा रखी है,महफ़ूज़ बाबा की ...२७ फोटो की बात कहकर ब्लैकमेल करते हैं बच्चे को ...

सनातन जी वेदाध्ययन करवा रहे हैं, पहले कोणार्क घुमाया अब गॄह-नक्षत्र-तारे दिखाकर हम जैसे अनपढ़ों का ज्ञान बढ़ा रहे हैं .सभी की ओर से आभार कहना चाहती हूँ उनका ....

...अनु (अनुलता)को थोड़ी फुरसत मिल जाती है कभी-कभी उसमें भी या तो मुझे चिढ़ाती है या टांग खींचती है मेरी ...क्योंकि  मेरी वॉल पर आकर लेखिका/कवियित्री वाली इमेज चौपट हो जाती है उसकी ....
  तो समीर जी ,अरविन्द मिश्रा जी और भैया(अब नाम लिखने की जरूरत नहीं पड़ती इनका)  भयंकर रूप से व्यस्त और त्रस्त  हैं, अनूप जी च्यवनप्राश की फैक्ट्री कहाँ डालेंगे? फुर्सत में ...पता नहीं सुबह से ही कट्टा दिखाने लगते हैं चाय के साथ और अभी तो मार्निंग ब्लॉगर ज्ञान जी का जन्मदिन मनाने में व्यस्त थे ....
मुकेश ने गिटार उठा ली थी ,ऑफ़िस में भी बजाते रहते हैं , और अजय ,पदम् ,दिलीप और शिवम् अपने-अपने मोर्चों पर तैनात है,.....दूर गौतम की गज़ल महकती है कभी तो कभी आशीष की गीता सुगंध बिखेरती है.......
....और मैं चिंता करती हूँ  और बिट्टो कैसी है? गुड्डू रात को समय पर खाना खाती होगी या नही....दीपक के क्या हाल होंगे ..कब घर आयेगा ..अविनाश जी ने मुनिया का क्या नाम चुना होगा.....
गिरीश जी की बेटी का इस साल ग्रेजुएशन पूरा हो जाएगा उससे दुबारा कब मिल पाउंगी ,
सागर जी अगला गीत कौनसा सुनाएंगे ,नितीश उत्तराखंड में अब किस प्रोजेक्ट पर काम कर रहा होगा ....सब........बैचैन आत्मा चित्रों का आनन्द लेने कहाँ भटक रही होगी ......!

सिद्धार्थ जी कहते हैं मैं  मुखपुस्‍तक चर्चा... (चिठ्ठा चर्चा की तर्ज पर) करती हूँ.....जबकि वे राशिफ़ल बताते रहते हैं हर हफ़्ते ...
हर हफ़्ते की बात से याद आया मैं कभी नियमित नहीं हो पाती .....कि कभी गाना,कभी फोटो, कभी पॉडकास्ट कुछ भी चलता है मेरा तो पर रवि रतलामी जी  सूज्ञ जी, शिल्पा जीअनुराग जी और बंगलौर वाले छोटे भाई
कितने नियमित रह्ते हैं हमेशा सीखना चाहिए उनसे सबको.......
और हाँ वो कुटिल कामी पता नहीं किसकी कुटिलता में फ़ंसे हुए हैं नमस्ते भी नही हो पाती अब तो  ..एक समय था जब हफ़्ते में दो-तीन बार तो हाल-चाल मालूम हो जाते थे उनके .....
रश्मि , सोनल और शिखा कहानियाँ और अखबारों वगैरह के लिए लिखती हैं तो बताती रहती है ....वरना कहाँ क्या कर रही हैं पता ही नहीं चलता ... ताऊ के हाल राज जी से ज्यादा कौन बता पाएगा ,वे सब पर नजर रखते हैं जर्मनी से ही ....
और कविता जी और शोभना दीदी भी इन्दौर में ही रहती हैं ....वैसे मॄदुला दीदी और रश्मिप्रभा दी का आशिर्वाद बना रहता है- समय-समय पर ...

और ये लिखते-लिखते मेरी लिखी ये लाईने मिल गई , वो पढ़ रही हूँ ---

एक पल कोई साथ चले तो,बनता एक अफसाना है,
कल फिर लौट के जाना है ,अपना जहाँ ठिकाना है।...

पथ के कांटे चुनते - बीनते हमको मंजिल पाना है,
मिल जाए जो दीन -दुखी तो अपना हाथ बढ़ाना है।...

चलते-चलते मिल जाते साथी,बस बतियाते जाना है,
मंजिल की तुम राह न ताको मिलकर चलते जाना है।...

"बूँद"-"बूँद" से भरेगी गागर,बस हमको छलकाना है,
हर एक जगह पर कुंभ लगेगा,अमॄत बूँद गिराना है ........

-अर्चना
 अब ये लाईने लिखते हुए  पता लगा कि पोस्ट लम्बी हो रही है ... और भी बहुत लोग हैं, जो याद आते हैं, आते रहेंगे लेकिन ये भी जानती हूँ कि कमेंट में मुझे ताने भी मारेंगे .... कि .... पर ......
किसी को याद करते-करते , कुछ बात कम ज्यादा कह दी हो तो दादी कहती थी माफ़ी मांगने से कोई छोटा नहीं हो जाता ..... और न माफ़ करने से ही ..... :-) 

    Thursday, November 14, 2013

    Wednesday, November 13, 2013

    मेरी पसन्द के गीत के लिए .... दिल है कि मानता नहीं...

    फूलों के रंग से दिल की कलम से...
     

    तेरी आँखों के सिवा दुनिया में रखा क्या है.....


     कांटो से खींच के ये आँचल...




    ये जीवन है इस जीवन का ...

    Monday, November 11, 2013

    एक शर्मीले गायक का सुरीला गायन .....

    बहुत कम लोग ऐसे होते हैं -जैसे सागर नाहर जी हैं ... मैंने जब से इन्हें जाना है ,मेरे घर के सदस्य ही लगते हैं मुझे ये ... मेरा मझले भाई राजेन्द्र  जैसा स्वभाव लगता है मुझे बातचीत में ...
    विनम्र, शान्त स्वभाव वाले अद्भुत प्रतिभा के धनी .... और गीतों के शौकीन ....
    कई दिनों से किया वादा आज पूरा किया है उन्होंने .... मेरा दीपावली गिफ़्ट है ये ...जो मैं आप सबसे बाँट रही हूँ ...
     खुद को बेसुरा कह रहे थे ,मुझसे बेसुरे तो हो ही नहीं सकते , जरा आप फ़ैसला करें ...
    मुझे ये भी जानना है कि मेरा ब्लॉग छोड़कर भागने वाले कौन-कौन हैं ?....जो भविष्य में हमारी जुगलबन्दी सुनने से वन्चित होना चाहता है ... :-)
    पहली बार साउंड क्लाउड की लिंक पर भी सुन सकते हैं आप --(ये भी उन्होंने ही सिखाया है )
    तो इस बार दो- दो प्लेअर जैसा कि यूनुस भाई कहते हैं -"ताकि सनद रहे "






    Thursday, November 7, 2013

    शान्ति दूत ...

                          (ये फोटो मैसूर के कारंजी लेक की है - वत्सल नें ली थी,मेरे साथ घूमते हुए पिछले वर्ष ) ...

    इसे देखकर मन में बहुत से विचार आते हैं ------पर शब्द नहीं उनके लिए .....

     कि सफ़ेद पर लिखूँ या काले पर
    उजले पर लिखूँ या मैले पर
    लिखूँ क्रंदन पर 
    या दोनों के बन्धन पर
    बुरके में ढँके हुए तन पर
    या कपोत के स्वच्छंद मन पर
    लिख दूँ दोनों की आँखों के भावों पर
    या इनके अनदेखे घावों पर
    क्यों दोनों को बन्धन में जकड़ लिया
    क्यों इनको अपनों ने पकड़ लिया
    क्यों मौन रहे ये कुछ न कहे
    और क्यों मेरी आँखों से नीर बहे .....

    Wednesday, October 30, 2013

    हिसाब अब भी बाकी है ....


    मुझे आज भी याद है
    वो शाम
    जब लिखा था तुमने मेरा नाम
    अपनी डायरी में
    तुम्हारे नाम के पीछे
    और मैं लड़ी थी तुमसे
    आगे लिखने के लिए
    तुमने कहा था-
    मैं सूरज  हूं
    जिन्दगी में राह बनाता चलूंगा
    इसलिए आगे मैं रहूंगा
    तुम हो चाँदनी
    जिसमें रहती हैं आँखे नीचे
    तो तुम रहोगी हमेशा पीछे....


    मुझे आज भी याद है
    वो शाम
    जब लिखा था तुमने मेरा नाम
    अपनी डायरी में
    तुम्हारे नाम के पीछे
    और मैं लड़ी थी तुमसे
    आगे लिखने के लिए
    तुम न माने थे
    आगे रहे
    और आगे निकल गए 
    मैं अब लिखती हूँ
    तुम्हारा नाम
    मेरे नाम के पीछे
    क्यों, कोई मुझसे ये न पूछे
    हिसाब अब भी बाकी है
    पूरा करूगी
    अगले जनम ......

    चल मेरे साथ ही चल ....

    अतीत के अँधेरे से बाहर निकल
    एक नया सबेरा नजर आयेगा
    खुशबुओं से महकेगी फ़ुलवारी
    हर पत्ता ओस को सहलायेगा
    उजली किरण से रोशन होगा आशियां
    और हर तरफ तू ही तू नजर आएगा
    जमाना करेगा तुझे याद हमेशा
    और ज़माने में तेरा नूर जगमगाएगा.......

    Tuesday, October 29, 2013

    चोट्टी लड़की ....


      
    चित्र में जस्टिस पी. डी. मुल्ये जी से पुरस्कार प्राप्त करते हुए पल्लवी

    गुलाबी जाड़े  के आते ही याद आ जाता है ये गुलाबी स्वेटर ....
    होस्टल में रहते हुए बहुत मेहनत से बनाया था बेटी पल्लवी के लिए मैने ...एक तो समय बहुत कम मिलता था होस्टल में बच्चों की दखरेख के बीच ...काम भी नया था ..... स्कूल इन्दौर के बाहरी भाग में था तो ठंड भी बहुत ज्यादा लगती थी , बुनाई का शौक तो पहले से ही था , सुनील ने पहले जन्मदिन पर तीन किताबें भेंट में दी थी उसमें से एक स्वेटर की डिज़ाईन की भी थी ....
    इस बीच वक्त कुछ ऐसा बीता कि बहुत दिनों तक हाथ ही नहीं आया ...फ़िर आया भी तो खुद को बच्चों के बीच होस्टल में पाया था मैंने ....
    जब स्वेटर बनाने का खयाल मन में आया तो वही आदत कुछ अलग हटकर करने की ...और दो किताबों की डिज़ाईन से देखकर फ़्रिल वाला ये कार्डिगन बनाया था ....पल्लवी खिलाड़ी रही तो इस स्वेटर के कंधे पर दो स्केट्स लेस से बंधे लटकते हुए बनाए थे ,वो भी बुनकर ...किसी किसी लाईन में हर फ़ंदा अलग-अलग रंग का भी बुनना पड़ा था .......
    बहुत तारीफ़ बटोरी थी इस स्वेटर ने .....
    बात तब की है जब पल्लवी ने बी. बी. ए. की पढा़ई के लिए पूना के एम. आई. टी . कॉलेज में प्रवेश लिया था , मैं उसे पहली बार छोड़ने ले लिए साथ गई थी ,हमने उसके रहने के लिए कई होस्टल और कमरे देखे लेकिन पहली बार उसे अकेले रहने के लिए छोड़ना मुझे चिंतित कर रहा था ....कुछ बड़ी लड़कियों के साथ रहने से उसे पढ़ाई में मदद मिलेगी और अकेले रहने का डर भी दूर होगा ये सोच कर अन्त में एक लड़कियों का होस्टल तय किया जहां सारी लड़कियां जो एम .बी. ए. कर रही थी रहती थी ...ये अकेली बी. बी. ए की और उम्र में छोटी थी ...छह: महिने सब कुछ अच्छा रहा ..... प्रथम सेमिस्टर खतम हुआ ...आखरी पेपर के दूसरे दिन उसे इन्दौर वापस आना था ...उन्हीं दिनों उसका जन्मदिन भी आकर चला गया था ....
    उसकी कुछ दोस्तों ने आखरी दिन पार्टी रखी ...उसमें जाने के लिए यही स्वेटर उसने पहना ..... लेकिन ये याद आते ही कि केक काटने के बाद सब  चुपडे़गे भी और कहीं स्वेटर गन्दा हो  गया तो .... उस मासूम ने तुरत -फ़ुरत निकाल कर वहीं छोड़ दिया पलंग पर .....और ....जब लौटी तो कोई उसका स्वेटर तो स्वेटर ...वो पूरी ड्रेस ही चुरा कर ले गया था ....जो उसने पलंग पर छोड़ दी थी ... :-(

    फोन पर उसकी दर्द भरे भारी मन से स्वेटर चोरी की दासतां सुनाने की आवाज आज भी गूंजती है- मेरे कानों में....
    और हर साल इस गुलाबी जाड़े में याद आता है उसे गुलाबी स्वेटर माँ का बुना , जिसके हर फ़ंदे में दुआ बुनी थी मैंने .........
     खैर दुआ किसी के तो काम आ रही होगी ....  वो लड़की भी कभी हमें नहीं भूलेगी इस स्वेटर को पहनते हुए ...बस यही खयाल जाडे़ मे गरम अहसास दे जाता है हमें ..... चोट्टी लड़की नाम रखा है मैंने उस स्वेटर सहेजने वाली का .... जो एम. बी. ए. पास कर चुकी होगी कब की ....... 
    शायद मुझे पूना में कहीं किसी मोड़ पर मिले ..... तो दौड़ कर माथा चूम लूंगी उसका ...... :-)