Tuesday, February 17, 2009

ये नेता

आजकल इंदौर में .बी .रोड की चौडाई बढ़ाने काम काम चल रहा है ,सड़क के एक छोटे से हिस्से को जिसतरह घुमा -फिरा कर बनाया गया है ,उसकी पीड़ा से उभरी है ये कविता -------
समझ में नही आता जो लोग जोर से चिल्लाते है,
वो नेता क्यों बन जाते है?,
या फ़िर जो सब कुछ खा कर पचा लेते है,
वो, नेता बन जाते है?,
विरोध के स्वर हमेशा क्यों दबा दिए जाते है?,
ये नेता लोग अपनी करनी पर क्यों नही पछताते है?,
इन्हे अपनी गलती पर शर्म क्यों नही आती है?,
क्या हया इनके घर कभी नही जाती है?,
क्या ये अपने बच्चों के सवालो के जबाब दे पाते है?--
कि पापा जब सीधा रास्ता कम दूरी का होता है तो,
आप लोग सड़के टेड़ी-मेढ़ी क्यों बनवाते है?,
जिस पर आप तो अपने लाव-लश्कर के साथ सरपट निकल जाते है ,
और बेचारे सीधे-सादे लोग जाम में फंस जाते है,
मोडो पर उलझ कर ही रह जाते है |
मेरे हिसाब से हर नेता को एक मजदूर के परिवार कि देख-रेख का जिम्मा सौप देना चाहिए ,
और उसने मजदूर के बच्चों को लायक डॉक्टर ,या इंजिनियर नही बनाया तो ------
नेता को मजदूर बना देना चाहिए |


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3 comments:

परमजीत सिहँ बाली said...

आपका नेताओं के प्रति अक्रोश साफ झलकता है।हमारे नेता गूँगें बहरे हैं।

नीरज गोस्वामी said...

आप के इस गुस्से में हम सब आपके साथ हैं...आप ने सच्चे और अच्छे सवाल पूछे हैं...

नीरज

दीपक 'मशाल' said...

:) gussa dikhta hai..