बचपन से घर में सब काम किए तो कभी कोई काम करने से परहेज नहीं रहा।
चाहे गाय - भैंस दुहना हो या उनका गोबर हटाना हो,उपले थापना हो या संजा बनाना हो।
राजदूत चलाकर पिता के साथ खेत जाना हो या भाई के साथ गाड़ी रिपेयरिंग के लिए झुकानी हो।
पापड़ के गोले के लिए घन चलाना हो या छत पर दौड़ दौड़ कर आलू चिप्स फैलाना हो।
खेलने के लिए सुबह जल्दी उठकर मैदान जाना हो या गुनगुनी दोपहर सिलाई बुनाई करनी हो गप्पे लगाते हुए।
शायद इसलिए मुसीबत आने पर हर पल डटी रही।
ये घमंड वाली बात नहीं, पर मैने समय आने पर हॉस्टल में झाड़ू पोछा भी किया और बच्चों के कपड़े भी धोए,उनके लिए रोटियां भी बेली और उनको नहलाकर तैयार भी किया,उनके साथ खेली भी और उनके हाथपैर दर्द होने और चोट लगने पर पट्टी पानी भी की।
जब मैंने वार्डन का जॉब छोड़ा तो प्रिंसिपल मैडम ने कहा था कि तुम्हारे जैसी कोई और लाकर दे दो ,
मैं यही कह पाई थी कि मेरे जैसी तो कोई न मिलेगी।