दिल्ली की घटना से स्तब्ध मैं और मेरे सहयोगी आपस में बात कर रहे
थे| बात करते -करते ही अचानक मैंने कहा कि महिलाओं की भी क्या जिंदगी
है, जितनी महिलाएं उतनी ही कहानियाँ ...और याद आई मुझे अपने यहाँ काम करने
वाली दीदी की .....बोल पड़ी, "वो काँची ही थी अपने यहाँ..."
"वो मर गई..."बीच में ही बोल पड़े मेरे मित्र....
और मैं भौंचक्की सी देखती रह गई, "अरे!! कैसे ? कब ? मुझे तो पता भी नहीं चला?" प्रश्नों की झड़ी लगा दी मैंने...
"हाँ ,पिछले महिने ही २७-२८ तारीख को" बताया मेरे मित्र ने.."आपको नहीं पता?" पूछते हुए..
"नहीं
तो ...किसी ने बताया भी नहीं" कहते हुए मेरी आवाज दब सी गई ...शायद ऐसी
खबरों से मैं व्यथित हो जाती हूँ इसीलिए मित्रों ने मेरे सामने जिक्र नहीं
किया था पहले...
याद आई काँची और उसके साथ ही उसकी कहानी...
दुबली पतली .सुन्दर नाकनक्श वाली गोरी सी लड़की ....दो बच्चे थे उसके ...उम्र भी कम लगती थी| यहाँ
काम की तलाश करते-करते पहुँच गई थी स्कूल में मेरी ..क्लास की सफ़ाई करती
थी और नर्सरी के बच्चों की देखभाल के लिये मदद करती थी ...
एक
दिन खेल के मैदान में मिल गई जब फ़्री थी , एक कमरा मिला हुआ था उसे ,उस दिन
शायद बच्चा बीमार था उसका तो उसे लेकर खड़ी थी गोद में ..
मैंने तभी पूछा
था, "तुम्हारा बच्चा है?"
"हाँ" कहते हुए बताया था, 'दो हैं मेरे बच्चे एक लड़का एक
लड़की" ...बताते बताते वो स्कूल के बच्चों को खेलते हुए देख रही थी ..उसका
दूसरा बच्चा एक बेटी थी जो बड़ी थी पास के ही स्कूल में जाती थी ... तभी आर
टी ई के बारे में सुना था उसने कहीं से ,मुझसे पूछने लगी, "मेडम क्या मेरे
बच्चे को भी स्कूल में भरती सकती हूं? कहाँ से मिलेगा फ़ार्म ? कौनसे -कौनसे कागज लगेंगे?"
"एक
के तो ३०० रूपये लगते हैं मुझे अगर इसका इसमें हो जाएगा तो मेरे दोनों
बच्चों को स्कूल भेज दूंगी।" ये कहते हुए उसकी आँखों मे चमक देखी थी मैंने...
मैंने कहा कि जन्म प्रमाण पत्र ,राशन कार्ड,माता -पिता का परिचय पत्र....
उसने कहा, "ये नहीं हुए तो ?"मैंने कहा, "फ़िर तो मुश्किल होगा ,तुम्हें ये कागज बनवाने पड़ेंगे"
"राशन कार्ड तो है मेरा पर ...."कहते हुए रुक गई वो ...
मैंने पूछा, "पर क्या? घर पर है,तो ले आओ या मंगवा लो" ...फ़िर पूछा, "इनके पापा क्या करते हैं?"
वो अनसुना कर आगे बोलने लगी "ला तो नहीं सकती मैं ...अब दूबारा घर नहीं जा सकती"
मेरी जिज्ञासा बढ़ी, "पूछा क्यों नहीं जा सकती ?"
और फ़िर उसने बताया, "मैंने
और इनके पापा ने भाग कर शादी कर ली थी "लव मेरिज" ...मंदिर में ...फ़िर मैं
माँ के घर नहीं गई..कुछ दिन उसने बहुत अच्छे से रखा फ़िर दारू पीने लगा और
मुझ पर शक करने लगा ,घर में बन्द करके जाता था किसी से बात नहीं करने देता
था|मेडम जी बहुत सहा, मैंने सोचा बच्चे हो जाएंगे तो इसका शक चला जाएगा
..बच्चे हुए तो रखता तो अच्छा ही था ,मगर पैसे की कमी रहने लगी फ़िर गुस्से
में बहुत मारता था ...बाकि तो कुछ नहीं पर शक इतना कि आजू-बाजू भी कोई मदद
नहीं करता था|" मैं परेशान हो जाती थी| एक दिन कह दिया, "मैं चली जाउंगी
बच्चों को लेकर|" तो बोला, "चली जा". बस यही बात बहुत बुरी लगी मेडम जी
...मैं उसके साथ अपना घर बार माँ-बाप सब छोड़ कर आई थी ...मार खाते हुए भी
रहती थी क्यों कि उसे प्यार करती थी ..पर उसने कैसे कह दिया चली जा ....मैं
एक दिन निकल आई घर से उसे बिना बताए ...बच्चों को लेकर ..
कुछ दिन एक आश्रम में रही पर वहाँ एक साल से ज्यादा नहीं रखते .. वहाँ की मेडम ने यहाँ काम दिलवा दिया ...
मैं सोच रही थी कितनी हिम्मत वाली है ...
फ़िर छुट्टीयों के बाद पता चला वो किसी के साथ चली गई है .......बच्चों सहित ...शायद शादी भी कर ले ...
लेकिन
फ़िर एक बार स्कूल में नज़र आने लगी शायद उसके बच्चों को साथ नहीं रख रहा था
जो उससे शादी करने वाला था....लेकिन फ़िर ५-६ माह बाद चली गई शायद उसे काम
से निकाल दिया गया था...उसके साथ ही एक और परिवार को भी निकाला गया सुना
इसे लेकर दोनों पति-पत्नि झगड़ते थे ...
फ़िर अचानक मुझे ये पता चला कि
उसकी मौत हो गई ....कैसे ? का जबाब मिला बीमार हो गई थी ,हिमोग्लोबिन कम हो
गया था बहुत, शायद कोई इन्फ़ेक्शन भी .....
"और उसके बच्चे? वे कहाँ गए?".
"शायद बाद मे उसके भाई के पास चली गई थी ...वो ही ले गया बच्चों को"
और खतम हो गई काँची की कहानी ...जब भी याद आती है तो मन में एक बात हमेशा आती है- कि नाम भी पाया तो "काँची"
लेकिन क्या मालूम कि उसकी बेटी जब बड़ी होगी तो उसकी कहानी क्या होगी........
पर मन कहता है कि -काश! तुम्हारी बेटी की कहानी सुखांत हो काँची.........