Wednesday, October 30, 2013

हिसाब अब भी बाकी है ....


मुझे आज भी याद है
वो शाम
जब लिखा था तुमने मेरा नाम
अपनी डायरी में
तुम्हारे नाम के पीछे
और मैं लड़ी थी तुमसे
आगे लिखने के लिए
तुमने कहा था-
मैं सूरज  हूं
जिन्दगी में राह बनाता चलूंगा
इसलिए आगे मैं रहूंगा
तुम हो चाँदनी
जिसमें रहती हैं आँखे नीचे
तो तुम रहोगी हमेशा पीछे....


मुझे आज भी याद है
वो शाम
जब लिखा था तुमने मेरा नाम
अपनी डायरी में
तुम्हारे नाम के पीछे
और मैं लड़ी थी तुमसे
आगे लिखने के लिए
तुम न माने थे
आगे रहे
और आगे निकल गए 
मैं अब लिखती हूँ
तुम्हारा नाम
मेरे नाम के पीछे
क्यों, कोई मुझसे ये न पूछे
हिसाब अब भी बाकी है
पूरा करूगी
अगले जनम ......

चल मेरे साथ ही चल ....

अतीत के अँधेरे से बाहर निकल
एक नया सबेरा नजर आयेगा
खुशबुओं से महकेगी फ़ुलवारी
हर पत्ता ओस को सहलायेगा
उजली किरण से रोशन होगा आशियां
और हर तरफ तू ही तू नजर आएगा
जमाना करेगा तुझे याद हमेशा
और ज़माने में तेरा नूर जगमगाएगा.......

Tuesday, October 29, 2013

चोट्टी लड़की ....


  
चित्र में जस्टिस पी. डी. मुल्ये जी से पुरस्कार प्राप्त करते हुए पल्लवी

गुलाबी जाड़े  के आते ही याद आ जाता है ये गुलाबी स्वेटर ....
होस्टल में रहते हुए बहुत मेहनत से बनाया था बेटी पल्लवी के लिए मैने ...एक तो समय बहुत कम मिलता था होस्टल में बच्चों की दखरेख के बीच ...काम भी नया था ..... स्कूल इन्दौर के बाहरी भाग में था तो ठंड भी बहुत ज्यादा लगती थी , बुनाई का शौक तो पहले से ही था , सुनील ने पहले जन्मदिन पर तीन किताबें भेंट में दी थी उसमें से एक स्वेटर की डिज़ाईन की भी थी ....
इस बीच वक्त कुछ ऐसा बीता कि बहुत दिनों तक हाथ ही नहीं आया ...फ़िर आया भी तो खुद को बच्चों के बीच होस्टल में पाया था मैंने ....
जब स्वेटर बनाने का खयाल मन में आया तो वही आदत कुछ अलग हटकर करने की ...और दो किताबों की डिज़ाईन से देखकर फ़्रिल वाला ये कार्डिगन बनाया था ....पल्लवी खिलाड़ी रही तो इस स्वेटर के कंधे पर दो स्केट्स लेस से बंधे लटकते हुए बनाए थे ,वो भी बुनकर ...किसी किसी लाईन में हर फ़ंदा अलग-अलग रंग का भी बुनना पड़ा था .......
बहुत तारीफ़ बटोरी थी इस स्वेटर ने .....
बात तब की है जब पल्लवी ने बी. बी. ए. की पढा़ई के लिए पूना के एम. आई. टी . कॉलेज में प्रवेश लिया था , मैं उसे पहली बार छोड़ने ले लिए साथ गई थी ,हमने उसके रहने के लिए कई होस्टल और कमरे देखे लेकिन पहली बार उसे अकेले रहने के लिए छोड़ना मुझे चिंतित कर रहा था ....कुछ बड़ी लड़कियों के साथ रहने से उसे पढ़ाई में मदद मिलेगी और अकेले रहने का डर भी दूर होगा ये सोच कर अन्त में एक लड़कियों का होस्टल तय किया जहां सारी लड़कियां जो एम .बी. ए. कर रही थी रहती थी ...ये अकेली बी. बी. ए की और उम्र में छोटी थी ...छह: महिने सब कुछ अच्छा रहा ..... प्रथम सेमिस्टर खतम हुआ ...आखरी पेपर के दूसरे दिन उसे इन्दौर वापस आना था ...उन्हीं दिनों उसका जन्मदिन भी आकर चला गया था ....
उसकी कुछ दोस्तों ने आखरी दिन पार्टी रखी ...उसमें जाने के लिए यही स्वेटर उसने पहना ..... लेकिन ये याद आते ही कि केक काटने के बाद सब  चुपडे़गे भी और कहीं स्वेटर गन्दा हो  गया तो .... उस मासूम ने तुरत -फ़ुरत निकाल कर वहीं छोड़ दिया पलंग पर .....और ....जब लौटी तो कोई उसका स्वेटर तो स्वेटर ...वो पूरी ड्रेस ही चुरा कर ले गया था ....जो उसने पलंग पर छोड़ दी थी ... :-(

फोन पर उसकी दर्द भरे भारी मन से स्वेटर चोरी की दासतां सुनाने की आवाज आज भी गूंजती है- मेरे कानों में....
और हर साल इस गुलाबी जाड़े में याद आता है उसे गुलाबी स्वेटर माँ का बुना , जिसके हर फ़ंदे में दुआ बुनी थी मैंने .........
 खैर दुआ किसी के तो काम आ रही होगी ....  वो लड़की भी कभी हमें नहीं भूलेगी इस स्वेटर को पहनते हुए ...बस यही खयाल जाडे़ मे गरम अहसास दे जाता है हमें ..... चोट्टी लड़की नाम रखा है मैंने उस स्वेटर सहेजने वाली का .... जो एम. बी. ए. पास कर चुकी होगी कब की ....... 
शायद मुझे पूना में कहीं किसी मोड़ पर मिले ..... तो दौड़ कर माथा चूम लूंगी उसका ...... :-)


Sunday, October 20, 2013

बेचैनी


नींद कहाँ इन आँखों में
अब खौफ है इनमें सपनों का
क्या दोष लगाएँ दुश्मन पे
अब खौफ है उनमें अपनों का
रिश्ते - नाते सब झूठे हैं
रहा साथ सदा बेगानों का
मीठी बातों में जहर भरा
जाने कितने अफ़सानों का......

Thursday, October 17, 2013

"चाँद मेरे साथ चल रहा है"........

                                                     ( चित्र टैब से लिया है ज़ूम करके )                                       
वो मुझे नागपूर में मिली थी , पडोस के मकान में रहती है ,जब भी सासुमां से मिलने जाती हूं उससे भी मुलाकात हो जाती है , दो प्यारे -प्यारे बेटे हैं उसके ...
इस बार वो बहुत दिनों तक दिखी नहीं , मेरी वापसी का दिन पास आ गया ... एक दिन पहले आई वो .... मैंने पूछा - कहाँ चले गए थे आप लोग ?
बताया कि इनमे भाई का देहान्त हो गया तो घर गए थे ...
मुझसे पूछा कि अभी तो रहेंगी न आप ?
मैंने कहा - नहीं कल वापस जाना है .....
बोलकर गई कि जाने से पहले घर आना थोड़ी सी देर के लिए ही सही ,
और जब मुझे निकलना था तो मैं उससे मिलने गई ... दस मिनट में ही दस साल की कहानी सुना दी उसने ...
ये दो भाई थे , इनके पिताजी,हमारे ससुर और सास ने बहुत परेशान किया हमें, जब बड़ा बेटा छोटे के जितना बड़ा था |
हर काम के लिए , खाने के लिए कहीं आने-जाने के लिए सबके लिए बस टोकते रहते थे ... (- ये तूने झाडू़ लगाई है ? देख कितना कचरा बाकि है,चाय पीने का मन हो और अपने लिए चाय बनाओ तो - ननद कहती ऐ भैया शक्कर के दाम बढ़ गए हैं...) मतलब अपन ने समझ जाना कि अपने को चाय नहीं बनानी है.......

 ...आखिर हमें घर से अलग कर दिया ...बड़े भाई ,भाभी उनकी दो बेटियां और ननदें सब एक ओर हो गए ... जब घर से निकले तो कुछ नहीं था,हमारे पास सिर्फ़ ३-४ बर्तन ... दूध भी कढाही में गरम करना पड़ता था । एक चीज बनाओ उसे दूसरे बर्तन में निकालो तब दूसरी ..... ससुर ने मकान बेचकर पैसा भी दूसरे भाई को दे दिया, हमें कुछ नहीं दिया ... और उन्होंने सब इधर-उधर कर दिया ....
१५ दिन पहले खबर आई कि इनके भाई का निधन हो गया ... तब क्या करते ... गए हम ... सब भूल कर ...
लेकिन बहुत बुरा लगा कल तो आने से पहले बहुत रोई मैं ......ऐसा भी किसी के साथ नहीं होना  चाहिए ...
मैंने पूछा क्या बिमार थे वे ?
नहीं हार्ट अटैक से  .....
ओह! .... दुख जताया मैंने ...पूछा अब ?....
आगे बताने लगी उन लोगों ने भाभी को उनके मायके भेज दिया, उनके तो मां बाप भी नहीं है अब, और वे पढी़ लिखी भी नहीं हैं ..... दोनों लड़कियों को अपने पास रखा है , लड़कियां इतनी छोटी भी नहीं है,मगर जाने क्या सिखाया है ननदों ने कि माँ को तो कुछ समझती ही नहीं ...
मैंने पूछा भाभी अब किसके पास हैं ? उनके भाई के .... मेरी बात काटते हुए बोली -- नहीं उनका कोई भाई नहीं है ,चार बहनें ही हैं वे ,सबसे छोटी बहन से कहा कि जब तक उनकी बेटी को पिता की जगह नौकरी नहीं मिलती तब तक उन्हें वहीं रख ले यहाँ खर्चा चलना मुश्किल होगा .....

हम भी कुछ कर नहीं सकते थे ,इतना छोटा सा घर, दोनों बच्चों की पढ़ाई और इनकी कम सेलरी ...वैसे ही बहुत मुश्किल होता है ,अभी मैं एम. ए. की परीक्षा भी दे रही हूं परसों पेपर है मेरा ....यहां भी तो नहीं ला सकती थी , एक पलंग डला है उन्हें लाकर नीचे सुलाते ......अच्छा भी तो नहीं लगता ....
अपनी बहन के साथ जाते हुए वो बहुत रो रही थीं ........

...पर देखो हमारे साथ इतना सब करने के बाद भी काम कौन आया ? ... हमने ही किया न सब .....

और मैं उठ कर चली आई .....मेरी बस का समय हो रहा था ....सोचती रही रात भर सफ़र में ..... 

घर तो मेरा भी छूट रहा था .....

ये आंगन हमेशा ,अपलक ताकेगा
"मन" हर बार मन से कोसों दूर भागेगा ...

रात का पहर दूसरा हो या तीसरा
सोने का बहाना कर मन तो बस यूं ही जागेगा...



बस की खिड़की से नज़रें ऊपर ताक रही थी ,तभी फ़ेसबुक पर लिखा था ---

"चाँद मेरे साथ चल रहा है"........


Wednesday, October 16, 2013

तुम क्या जानो कैसे .....

घड़ी का अलार्म,उगता सूरज, और भोर की लाली
बिस्किट की प्लेट के साथ एक चाय की प्याली
टेबल पर अखबार और तुम्हारी कुर्सी खाली

तुम क्या जानो, इनकी कैसे आदत डाली.......


फ़टाफ़ट नाश्ता, स्कूल और बच्चों की तैयारी
बस छूटी तो स्कूटर की ट्रिपल सवारी
दिन भर की थकान और काम भारी...

तुम क्या जानो, इनकी कैसे आदत डाली.......

एक ब्लॉग की लिंक दे दे बाबा तेरे बच्चे जुग-जुग जियें......

डुंग डुंग डुंग डुंग डुंग डुंग....

साहिबान,मेहरबान,कदरदान
हिम्मत रखकर इस खेल को देखिएगा...
जान को हथेली पर रखियेगा
ये रोज रोज का तमाशा ख़तम करने का वास्ते आगे आईयेगा
बड़ा-छोटा,पतला-मोटा,नया-पुराना सब के वास्ते है
बेटा जमूरे ,हम किसके वास्ते है?

पब्लिक के वास्ते
पब्लिक हमको जानती है?
जानती है उस्ताद
कैसे?
ये आपसे रिश्ता जोडती है
कैसे?
कोई माँ,कोई माताजी ,कोई मासी,कोई बुआ
कोई दी तो कोई जिज्जी,दीदी कहता है
कोई बेटी भी मानता है....
तो कोई दोस्त बना लेता है...
कोई तो यार.....
जमूरे!!!!!!!!!!!!!!!!
माफ़ी उस्ताद....
माफी क्यों?
जुबान फिसल गयी उस्ताद, जानता हूँ ,


बोल बेटा जमूरे पब्लिक को हँसाएगा?
हँसाएगा उस्ताद!
बच्चा लोग को मना लेगा?
मना लेगा उस्ताद!
बड़े साब लोगों को मना सकेगा?
मनायेगा उस्ताद
मेमसाब लोगों को मना सकेगा?
कोशिश करेगा उस्ताद....
कोशिश करने से क्या होता है?
कोशिश करने वाले क़ी हार नहीं होती
अरे!वाह ,और क्या सीखा?
यही की कोशिश करने वाले की कार बी नहीं होती
तो लेकर क्या कर लेगा? जमूरे! पीटेगा?
नई सरकार...
वो जुबान फिसल गयी उस्ताद
ह्म्म्म ! तो चलो पब्लिक को सलाम ठोंक दो
ठोंक दिया उस्ताद
कैसे ?
ये पब्लिक है , सब जानती है उस्ताद

तो बोलो मुख्पुस्तक की जय ...
जानते हो क्या करना है?
जानता हूँ उस्ताद...
सब ब्लोगर्स (स्त्री-पुरुष)
के आगे हाथ फैला कर एक चक्कर लगाना है
तो शुरू हो जाओ----

साहिबान,मेहरबान,कदरदान
हिम्मत रखकर इस खेल को देखिएगा...
जान को हथेली पर रखियेगा
ये रोज रोज का तमाशा ख़तम करने का वास्ते आगे आईयेगा
बड़ा-छोटा,पतला-मोटा,नया-पुराना सब के वास्ते है
अमीर-गरीब,जात-पात छुआ-छूत भुलाकर मदद करियेगा
आप लोग को सिर्फ अपने ब्लॉग की लिंक कमेन्ट में देनी है,बदले में उस्ताद के परिवार का हिस्सा बन जाएँगे आप...
बना लेंगे मिलकर "अपना घर"
तो लाईक के बदले अपने ब्लॉग की लिंक दे दो बाबा ...... कमेन्ट में......
और देखो आज तक सबसे बड़ा जान लगा देने वाला खेल.........
....
सलाम साब......सलाम मेमसाब....... जियो बेटा ......खुश रहो.....

Tuesday, October 1, 2013

बधशाला भाग दो

आशीष राय जी की कलम खूब चलती है ...युगदॄष्टि पर .....

तनि हम भी पूछ लें - नीक बा ?