ब्लॉग जगत में आभासी रिश्तों के बारे में बहुत कुछ कहा गया ...मैने भी बनाए रिश्ते यहाँ...जो सहयोग मुझे मिला उसके लिए आभारी हूँ सभी की...मुझे लगता ही नहीं कि हम लोग मिले नहीं हैं..रिश्तों के बारे में बातें करते हुए .मैने लिखा कुछ इस तरह ----
चाचा,पिता,बेटे,बेटी और मित्र मिले है मुझको घर-घर
साहस मेरा और बढेगा नही रहूंगी अब मै डर-डर
सूख चुके है आंसू मेरे जो बह रहे थे अब तक झर-झर
उफ़न चुका गम सारा बाहर भर चुके सारे नदिया निर्झर
मर चुके कभी अरमान मेरे जो जी उठेंगे अब वो जी भर
फ़ूल उगेंगे हर डाली पर हो चुकी सब डाली अब तर
छिन चुका था मेरा सबकुछ भटक रहे थे अब तक दर-दर
सुर सरिता की सहज धार मे अब पाया है स्नेह भर-भर
परबत -समतल एक हो गए मै जा पहूंची अभी समन्दर
चाह मुझे सच्चे मोती की लेना चाहूँ सब कुछ धर-धर .... गिरीश बिल्लोरे"मुकुल" जी ने सुधार करके मेरी भावनाओं को गीत के रूप में शब्द दिये ......................और उसका नतीजा निकला ये गीत---
नित नाते संबल देते हैं
क्यों कर जियूं कहो मैं डर डर
सूख चुके है आंसू भी मेरे
जो बहते थे अब तक झर-झर
उफ़न चुका ग़म सारा बाहर
शुष्क नहीं नदिया या निर्झर
प्राण हीन अरमान मेरे प्रिय
जी लेंगे कल को अब जीभर
रिम झिम ऐसे बरसे बादल
हरियाये तुलसी वन हर घर
छिना हुआ सब मिला मुझे ही
दिया धैर्य ने खुद ही आकर
सुर सरिता की सहज धार ने
अब तो पाया है स्नेह मेह भर
परबत -समतल एक हो गए
जा पहुंचा मन तल के अंदर
चाह मुझे सच्चे मोती की
पाना चाहूं. सहज चीन्ह कर जिसे मैंने गाया कुछ इस तरह ----
शुक्रिया!!!
साथ ही देखिए "कदम"पर नई पोस्ट
चाचा,पिता,बेटे,बेटी और मित्र मिले है मुझको घर-घर
साहस मेरा और बढेगा नही रहूंगी अब मै डर-डर
सूख चुके है आंसू मेरे जो बह रहे थे अब तक झर-झर
उफ़न चुका गम सारा बाहर भर चुके सारे नदिया निर्झर
मर चुके कभी अरमान मेरे जो जी उठेंगे अब वो जी भर
फ़ूल उगेंगे हर डाली पर हो चुकी सब डाली अब तर
छिन चुका था मेरा सबकुछ भटक रहे थे अब तक दर-दर
सुर सरिता की सहज धार मे अब पाया है स्नेह भर-भर
परबत -समतल एक हो गए मै जा पहूंची अभी समन्दर
चाह मुझे सच्चे मोती की लेना चाहूँ सब कुछ धर-धर .... गिरीश बिल्लोरे"मुकुल" जी ने सुधार करके मेरी भावनाओं को गीत के रूप में शब्द दिये ......................और उसका नतीजा निकला ये गीत---
नित नाते संबल देते हैं
क्यों कर जियूं कहो मैं डर डर
सूख चुके है आंसू भी मेरे
जो बहते थे अब तक झर-झर
उफ़न चुका ग़म सारा बाहर
शुष्क नहीं नदिया या निर्झर
प्राण हीन अरमान मेरे प्रिय
जी लेंगे कल को अब जीभर
रिम झिम ऐसे बरसे बादल
हरियाये तुलसी वन हर घर
छिना हुआ सब मिला मुझे ही
दिया धैर्य ने खुद ही आकर
सुर सरिता की सहज धार ने
अब तो पाया है स्नेह मेह भर
परबत -समतल एक हो गए
जा पहुंचा मन तल के अंदर
चाह मुझे सच्चे मोती की
पाना चाहूं. सहज चीन्ह कर जिसे मैंने गाया कुछ इस तरह ----
शुक्रिया!!!
साथ ही देखिए "कदम"पर नई पोस्ट