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जैसे कोई वस्तुएं हो और बँटवारा कर लिया मुर्खों ने .... frown emoticon
दो बच्चे हैं और दोनों लड़के .....
आगे कुछ सोच पाना ही मुश्किल है .....
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इन १७ सालों मे बहुत कडुए अनुभव हुए जिनमें मिठास भरते -भरते जीने की उम्मीद बनी रही ....
अभी दो दिन पहले ही एक बच्चे का एडमिशन हुआ के. जी. वन में .... बेटे को पिताजी छोड़ने आए थे वो लगातार रोए जा रहा था .....बड़ी आँखें बाहर को निकली सी .... दाँत बेतरतीब और सामान्य से बड़े आकार के चेहरे से ही पहचाना जा सकने वाला - मेंटली चेलेन्ज्ड ....
..स्कूल का पहला दिन था उसका ..मैंने धीरे से उसे गोदी से उतारा और रोते हुए ही उसे उसकी क्लास तक ले जाकर छोड़ दिया ....२ मिनट बाद ही वो चुप हो गया था अपने साथी बच्चों को देखकर .....
१५ मिनट बाद उसकी टीचर ने आकर बताया -मैडम ! आईए देखिए तो सही ....इसे तो पेन्सिल पकड़ना भी नहीं आ रही .... क्लास में 4 चल रहा है ,इससे पूछा कि बेटा आपको आता है ? तो जबाब दे रहा है -नही आता यार!
टीचर परेशान हो गई थी !
मैंने पेंसिल को हाथ में लेकर पकड़ना बताया और उसे समझाया कि बड़ों को ऐसे नहीं बोलते ....
बच्चे ने तुरन्त कहा-सॉरी ! .... अब नहीं बोलूंगा !
आज के माहौल में बच्चे जैसा सुनते हैं वैसा ही बोलते हैं ,तब जबकि माता-पिता ध्यान न दे रहे हों ...वरना तो पढ़े-लिखे माता-पिता के बच्चे बोलचाल में इस तरह कम ही बोलते हैं .....
मुझे लगा समझ गया है ,धीरे-धीरे सीख जाएगा ..
मुझे फिर बुलाया गया अबकि शिकायत थी-
करीब एक घंटे के बाद से बच्चे ने सू-सू जाने के लिए कहा ....एक बार अनुमति मिलने पर ...हर २-३ मिनट में जाने को कहने लगा ....
एक- दो बार जाने दिया गया फिर थोड़ी देर के लिए मना किया ....
लेकिन अबकि तो हैरान होने वाली बात थी वो ये कि ---
-बच्चा अपनी नेकर क्लास में ही उतार दे रहा था .... और कहता सू-सू आ रही है ....करीब हर ५ मिनट में .... टीचर भी परेशान हो गई... बच्चा क्लास के बाकि बच्चों से बड़ा लग रहा था और उसकी इस हरकत पर सारे बच्चे उसे देखने लगते ....
मैंने उसे मना किया ...नेकर पहनवाई , कहा बच्चे चिढ़ाएंगे ...आपको शेम-शेम कहेंगे ...
ओह! कहते हुए बच्चे ने फिर कान पकड़ते हुए सॉरी कहा ....
लेकिन मेरे क्लास से बाहर आते ही फिर वही हरकत की ........मैंने उसे अबकि डाँटा .... थोड़ा डरा ...अबकि रूक गया .... इसी तरह पूरा स्कूल टाईम खतम होने आया ....पढ़ाई तो हुई ही नहीं .....छुट्टी हो गई.....
... जब प्रिंसिपल मेम को उस बच्चे के बारे में बताया तो पता चला कि ये वही अलग हुए माता-पिता का छोटा बेटा है, जो पिता के पास है ......
. इस तरह गुजरे उस बच्चे के स्कूल के पहले दिन के बारे में सोच -सोच मन व्यथित हो गया ....
आज दूसरा दिन था ----
आज मन में उस बच्चे के बारे में सोच ही रही थी कि उसकी टीचर ने आकर बताया कि उसकी आँख में खुद से ही पेन्सिल लग गई जो वो बेग से निकाल ही रहा था .....
दीदी ने पानी से साफ़ भी कर दिया ...रूमाल से फ़ूँक से सेक भी दिया पर आँख नहीं खोल रहा था .... मैंने उसे देखा ....तब तक रोने लगा .... मैंने सवाल किया -ऐसे कैसे लग गई बेटा धीरे से निकालनी चाहिए न! ... जबाब मिला-
क्या बताउँ ! अर्चना मेम..... ! ....
मेरी कोशिश उसे बातॊं मे लगाकर आँख खुलवाकर देखने की थी ....जबाब सुनकर अनायास हँसी आ गई .... कहा- अरे वाह! आपको मेरा नाम मालूम है ?
-हाँ
-किसने बताया ?
-क्लास टीचर का नाम लेकर बोला ---बहुत जल रहा है मेम...
- अच्छा! ठीक हो जाएगा अभी ,,,आप तो आज नई ड्रेस पहने हो ,नए जूते भी ....किसने तैयार किया ?
- हँसी आ गई उसके चेहरे पर ....बताया -दादू और पापा ने.....
-और दादी
-मेरी दादी फोटो में है ....दादू पूजा करते हैं रोज .....
(मन भर आया मेरा उसकी मासूमियत पर )....
चोट ज्यादा नहीं थी पर पलक खोल नहीं रहा था ,लगातार हाथ से आँंख ढँके रहा ....
...उसका रोना बढ़ता गया ....कल की घटना भी उसके पिता को बतानी थी ... जानना था कि बच्चे ने ऐसा क्यों किया होगा ......
उन्हें भी समझाना था कि उसे घर पर समझाए ....ये सोचकर पिता को बुलवा लिया ....डायरी देते हुए टीचर ने जन्मतिथि दिखाते हुए बताया- छ: साल का है मेम....
यानि उम्र में बड़ा
पिता के आने तक देखभाल का जिम्मा मेरा था ...उसे लिटाकर धीरे से पीठ पर हाथ फ़ेरा .... बोला- मेम मेरी मम्मी को भी एक मिसकॉल दे दो ..... अवाक थी! ...क्या कहती ..उसे समझाने को कहा -बेटा आपके पापा रास्ते में ही हैं ...आ ही रहे हैं ,मेरे पास आपकी मम्मी का नम्बर नहीं है ..क्यों करना है मम्मी को फोन ?
- मम्मी भोपाल गई है ....
-मेरा मन भर आया ....कहा- पापा से लेकर लगा दूँगी फोन ....आपकी मम्मी को....
जबकि जानती थी उसकी मम्मी यहीं है और उसका भाई इसी स्कूल में पढ़ रहा है ..... :-( ...
दुखी कर दिया ऐसे माता-पिता ने उसको .....
थोड़ी देर में ही पिता आ गए ....उनसे सब बताया .... पता चला कि बच्चा स्कूल ही नहीं गया ...कारण पूछने पर बताया माँ ने भेजा ही नहीं ..... ध्यान ही नहीं दिया आपसी ....... आगे रोकते हुए मैंने कहा
खैर ये आपकी निजी परेशानी है ...जो भी कारण रहा हो ....
बच्चा अपनी उम्र से बढ़ रहा है...बातचीत जैसे बड़ों की सुनता है ,करने लगा है , ...किसी से भी हाथ बढ़ाकर हैलो कहना ...अपना नाम बताना .....अपनी गलती पर सॉरी कहना ..सब जानता है ..... सब कुछ जल्दी सीखने की ललक भी है उसमें.....
पर जिस बात ने मुझे पोस्ट लिखने पर मजबूर किया वो ये कि- जब पिता घर लेकर जाने लगे तो ....रास्ते में बोला सॉरी पापा ! ....
जब मैंने उसे कहा -पापा को क्यों सॉरी कह रहे हो ? ...बोला - मेरे लिए उन्हें आना पड़ा न ! ....
और मेरे रोंगटे खड़े हो गए ..... आँसू रूके नहीं मेरे ......
बच्चा कभी स्कूल गया ही नहीं ...इसी वजह से पेन्सिल ठीक पकड़ नहीं पाया और लिखने की कोशिश में चोट लगा बैठा ......
.घरेलू परेशानी का असर उसकी शक्ल -सूरत पर..दिमाग पर बुरी तरह पड़ा है उम्र में बढ़ा ....समझ में नहीं ..... लेकिन माता-पिता शायद उससे भी कम समझ वाले हैं ....
पंद्रह दिन बाद स्कूल से छुट्टी लेने वाली हूँ .... तब तक जितना प्यार दे सकूँ देने की कोशिश करूँगी.... ईश्वर उसकी मदद करे इसी प्रार्थना के साथ ....