Thursday, November 26, 2015

गुड़िया, नानी और बाजार

कल स्कूल के लिए कुछ सामान खरीदने गई, वहाँ पिता बैठे थे कहा दस मिनट रूकना होगा बेटा आ रहा है ,वही फाईनल करेगा , वहीं एक गुडिया दिखी ,हाथ में माइक पकड़े..... गाने वाली और उसने बताया कि चलती भी है ... सुन्दर लगी, मायरा के लिए लेने का मन हुआ .दाम लिखा था ४८५ रूपए .मैंने दाम पूछा ,उन्होंने बताया १५० रूपये की ..
वहाँ दो छोटे बच्चे भी थे जो शायद उनके बेटे के बेटे थे ...बातचीत में पता चला कि वे स्कूल छोड़ चुके हैं चौथी पढ़ने के बाद .
कुछ देर में बेटा आ गया ...
भावताव करने के बाद स्कूल का सामान  ले लिया  , उससे कहा -बच्चे स्कूल नहीं जाते वो बोला -..उनका मन पढ़ाई में नहीं लगता .......मगर उसी समय बच्चों ने हँसते हुए बोले ---ओ.ओ.ओ.ओ.ओ... आप ही बोलते हो क्या करेगा स्कूल जाके ..काम सीख
मैने गुड़िया दिखाने का कहा, बोला १८० रूपये की ... मैंने कहा अभी तो पिताजी ने १५० बताया ...बेटा उन पर खूब नाराज हुआ हमारे सामने ही उन्हें जोर से डाँटा ,बोला मालूम नहीं हो तो बोला मत करो ... हमने कहा भैया कोई बात नहीं हो गई होगी गलती ..मगर वो बोलते गया - जितने में ली उससे भी कम बताएंगे तो कमाएंगे क्या?
खैर ..हमने उसे चुप करा एक दूसरी गुड़िया ले ली .... फिर भी मन उस पर अटका था ...कहा यही दोगे १५० में ..बोला नहीं ..... जब हम चलने को हुए तो बोला १६० में लेना हो तो ले लीजिए ,इस बार मैंने मना किया कहा- एक तो ले चुकी अब रहने ही दो .... फिर १५० पर राजी हुआ मैंने कहा -चलाकर दिखाएंगे क्या?
वो बोला लेने का पक्का हो तो चालू करके दिखाएगा .... मेरे हाँ कहने पर दो नए पेकेट से चाईना सेल डाले और चलाकर दिखाई ,चली नहीं पर गा  रही थी -धूम मचा ले धूम मचा ले ! ... उसने वो पीस बदला दूसरी लाया ,इस बार गा भी रही थी ,चल भी रही थी .... मैंंने कहा- दे दो ...
उसने सेल निकाले... मैंने पूछा सेल ?
बोला ये तो चाईना सेल है ,नकली आप एवरेडी के डालियेगा ,तब इसकी स्पीड देखियेगा ... सेल इसके साथ नहीं देते हम .....खैर ! पिता वहीं चुपचाप बैठे थे ...
मुझे मायरा दिख रही थी ...मैंने गुडिया खरीद ली ...कल मायरा घर आने वाली थी तो बाज़ार से नोविनो के दो सेल भी लेकर आई ...
खुशी-खुशी मायरा के सामने पेकेट से सेल निकालकर उसमें लगाए और नीचे रखी ..
गुड़िया नही चली ...पर गा रही थी -धूम मचा ल्के ,धूम मचा ले धूम धूम धूम....

मैंने पेकेट पर दाम देखा लिखा था ८२ रूपए ....
कितना बदलाव आया है बाजार और व्यवहार में ..मैं सोच रही थी ..बेटे ने पिता से सीखा होगा ...

मायरा ५० वाली से ही बहुत खुश थी ..... :-)

Wednesday, November 25, 2015

टू, भगवान जी

कुछ लिखते नही बन  रहा ...
..ये चिट्ठी हाथ में आई एक पुराने पर्स को फेंकने के लिए खाली करते समय....सुनिल के एक्सीडेन्ट के बाद की चिट्ठी है बेटि ने लिखी है ..........तब मेरे बच्चों के मन में क्या चल रहा था ....इस चिट्ठी ने सब कुछ सहेज लिया......तब पल्लवी पहली और वत्सल चौथी कक्षा में होगा.....
सुनिल अन्कॉन्शस रहे करीब साढे तीन साल ... उस समय मेरे पास समय नहीं रहता था बच्चों के साथ बिताने के लिए ...
भगवान जी पर भरोसा !...
अब भी है ,मुझे भी ...










आज शादी की ३१ वीं सालगिरह पर ये उपहार आपके लिए .....

Thursday, November 19, 2015

हमारा पहला सेल्फ़ी .

बात है 1986 अक्तूबर की ....
वत्सल था 11 महीने का .... घूमने का बहुत शौक था तुम्हें ...वो भी परिवार के साथ .... पूरे 17 तीन का टूर प्लान किया था ,साउथ घूमने का ...बंगलौर,मैसूर,कन्याकुमारी,मद्रास,ऊटी,पक्षीतीर्थ,त्रिवेन्द्रम, ... बहुत से नाम तो अब याद भी नही आ रहे .... निकले थे आसनसोल से .... और अंत मे "जगन्नाथ पुरी होते हुए वापस आना था .....
पब्लिक ट्रांसपोर्ट से घूमना ..... आहा ! कितना आनंद दायक था ....
हर शहर पहुँच कर वहाँ रूकने के लिए होटल में सस्ता कमरा तलाशने के लिए तुम बाहर होकर आते मुझे सामान के साथ प्रतीक्षालय मे बैठाकर ....... जब तक वापस आते मैं वत्सल को गोद में लेकर इधर-उधर बोर्ड पढ़ने की कोशिश करती .... समझ तो कुछ आता नहीं था .... फिर आकर कहते चलो ..मिल गया कमरा ...मैं वत्सल और छोटा बेग लेती ..तुम बड़े बेग उठाते ...तुम आगे मैं पीछे .....कमरे पर पहुँच कर सबसे पहला काम तुम्हारा होता छोटा बत्ती वाला स्टोव  खोल बाथरूम  में ले जाकर घासलेट(केरोसिन) डालना और जलाकर देना ....तब तक मैं वत्सल को खेलने में लगा छोटा स्टील का पतीला निकाल पानी तैयार रखती फिर गरम करने को स्टोव पर चढ़ा पहले वत्सल  के लिए गिलास के मिल्क पाऊडर में गुनगुना पानी मिला दूध तैयार करके बचे पानी में के  शक्कर -चायपत्ती  मिला देती और दो-कप में मिल्क पाउडर निकाल तैयार रखती .... अपनी चाय छान कर वही पतीला धोकर नहाने का पानी वत्सल के लिए गरम करती ...उसे नहलाकर आपको दे देती टॉवेल में लपेट कर ... आप उसका बदन पोंछ पाऊडर -क्रीम लगाकर कपड़े पहनाते तब तक मेरा नहाना निपट जाता ..साथ ही वत्सल के कपड़े भी ....धुल जाते .... फटाफट वही पतीला फिर पानी गरम करता और इस बार उसमें घर से तैयार मिक्स बनाकर लाई उपमा डालने के लिए ....
आपकी बारी नहाने की .... तब तक नाश्ता तैयार...वत्सल के लिए टिफ़िन रखती .... हम वहीं खा लेते ....
मैं बेग बन्द करने की तैयारी करती और आप स्टोव को वापस फोल्ड करने की ....
मजा तब आता जब स्टोव बन्द करते तो केरोसिन की गन्ध फ़ैलती ... हम परफ़्यूम खोलकर उसे उडाते  ..... और होटल का कर्मचारी पूछने आता ....

खैर ... रास्ते में कई साथी मिल गए थे .... खास कर तीन परिवार
एक केरल का नव विवाहित जोड़ा ..दूसरे बंगाल से ,जिनका कोई बच्चा शादी के कई दिन बाद भी नहीं था ...तीसरे उडीसा से, जो अपने डेढ़ साल के बच्चे को नानी के पास छोड़ आए थे .... वत्सल को पूरे समय संभालते रहते ..... हम कई शहर साथ घूमें .....लेकिन तरीका ये होता कि एक शहर से दूसरे शहर साथ एक ही बस से रात के सफ़र का टिकट लेते कोई एक ही जाकर ...फिर रूकते भी एक ही रूम लेकर ..सबका सामान उसमें रख देते बारी-बारी नहाकर तैयार होते ,नाश्ता साथ करते ...और अपनी -अपनी पसन्द के अनुसार घूमते दिन भर ...शाम को इकठ्ठे होने का समय और स्थान तय करके फिर एक जगह मिलते ...सामान उठाते और अगली जगह निकल पड़ते ...
ऊटी में सब अलग जगह रूके थे ...  .... सब तिरूपति में मिले थे शायद ....
ये ऊटी के किसी होटल की खिड़की में लिया फोटो है ...., पुराने केमरे से ..अपना पहला सेल्फ़ी .... १९८६ ,अक्टूबर माह में

Saturday, November 7, 2015

स्याह साये




                                                           कितना अजीब सा बंधन है इनसे मेरा 

इन स्याह सायों ने बहुत रूलाया मुझको 


उजाले के आते ही मेरे साथ चले ये सदा 

घटते -बढ़ते हुए सदा ही झुलाया मुझको 


सदा साथ देने का वादा किया था मुझसे 

तो अंधेरे में अपने संग सुलाया मुझको 
-अर्चना

रिश्ते बनते हैं निभाने से

आज मन हुआ है उन मुलाकातों को अंकित करने का जो हुई अंतर्जाल की दोस्ती के बाद ...
जब ब्लॉग लिखना शुरू हुआ तो लोगों से परिचय बढ़ने लगा.....बातचीत होने लगी ...बहुत ब्लॉगरों से चैट पर समस्याएँ साझा की और हल निकाले .....पर मुलाक़ात शुरू हुई संजय कुमार चौरसिया जी से जिनकी एक ब्लॉगपोस्ट का पॉडकास्ट बनाया था ....और वे ग्वालियर से इंदौर किसी काम के सिलसिले में आए थे....
कुछ ही दिन बाद स्कूल की ओर से ग्वालियर जाना हुआ,वहाँ वे अपने घर ले गए....पत्नी गार्गी और बच्चों से मिलवाया ...गार्गी ने खूब खिलाया नाश्ता ....ये गार्गी दीपक मशाल की बहन है...

फिर एक दिन ब्लॉगर ताऊ जी के  बेटे ने शाम को दरवाजे पर दस्तक दी.....खुलने पर हाथों में फूलों का गुच्छा और मिठाई लिए संदेसा सुनाया - आपके मित्र समीर लाल जी ने भिजवाया है ....जन्मदिन था उस दिन मेरा......सालों बाद किसी ने फूल भिजवाकर बधाई पहुंचाई थी.....रचना के मार्फ़त जानता है पूरा परिवार मेरा समीर जी को 

ये भी पता चला की ताऊ जी ने इंदौरी स्वाद की खातिर केक न भिजवाकर काजू कतली भेजी थी.....हाँ तो मुलाकात तो भरत से हुई....




फिर एक दिन गिरीश बिल्लोरे जी सपरिवार पधारे.....और साथ आई थी उनकी बुआ जी (मासी जी,भूल रही हूँ) .. बड़ी खुश थी ये जानकर की कम्प्यूटर पर ऐसी दोस्ती भी होती है..उन्हें विश्वास नहीं हो रहा था कि पहली बार मिल रहे हैं .


फिर रायपुर यात्रा हुई ....ललित शर्मा जी  के सौंजन्य से ......यहाँ मुलाकात हुई वीर जी ,संजीव जी,अवधिया जी,अशोक जी, स्वराज करूण जी,अनुज और राहुल सिंग जी से राहुल जी के घर बैठकी में......
.

रीवा जाना हुआ तो मिली सादी सी -सीमा सदा 

फिर पटना यात्रा में मिला अनुभवप्रिय 








 फिर आया दीपक मशाल...मेरे घर ....एक पूरा दिन



फिर लखनऊ ट्रिप पर मिले सपत्नीक रवि रतलामी जी....संजय भास्कर से बहुत पहले से बात होती रही थी यहां वो मिलने आया था.....



                                     

गिरिज पंकज जी और रूपचन्द्र शास्त्री जी ने देखते ही पहचान लिया था ... 

यहीं इस्मत जी सबसे घूम घूम मुलाक़ात कर रही थी वे मिली...

..शेफाली पांडे बगल में ही बैठी थी..... बाकि लोग बाद में दोस्त बने ...और फेसबुक पर दोस्ती हुई 
शिखा वार्श्णेय रूस की स्मृतियों में ले गई साथ .... 
वीर जी के साथ शिवम भी आकार मिले ... 

लेकिन उदयवीर जी ने पॉडकास्ट का जिक्र किया और उनकी आवाज में गीत भी सुनाया था ...

और रमा द्विवेदी जी भी मिली -

रविन्द्र प्रभात जी ने तो आयोजन ही रखा था.....गेस्ट हाउस में मिली थी सुनीता शानू जी खाने पर...अविनाश वाचस्पति और फोटोग्राफर की भूमिका में संतोष  त्रिवेदी जी ...

छोटा सा फुर्तीला गोरा चिट्टा लड़का नीरज जाट भी यहीं मिला और सपत्नीक मुकेश सिन्हा भी .... 








 गिरिश पंकज जी और शैलेन्द्र भारतवासी के साथ बाद में फोटो लिया ...

फिर अचानक से मुलाक़ात हुई शिक्षक दिवस के एक संगीत प्रोग्राम में कविता वर्मा जी से ...

                                 

और फ्रेंडशिप डे के दिन उनके घर हो आई ... 



फिर वत्सल के यहां मैसूर गई थी .वहाँ से जाना था राँची.. अकेले.......
प्रवीण पाण्डेय जी और श्रद्धा जी ने जो आवभगत की बंगलौर में हमेशा याद रहेगी मुलाकात .रात रुकना था तो कराओके पर गाने भी गाए..... खूब हँसे.......पृथु और देवला के साथ ....





फिर शैलेश  भारतवासी और उनके दोस्तों क़े साथ रात  सराफा घूमना  ..वही मुहर्रम के दिन वे भी भूल न पाएंगे......और मैं भी.....
अगले ही दिन मुकेश तिवारी जी से मुलाकात हुई...जो इंदौर में ही रहते हैं पता  चला ,लखनऊ में वे भी थे...
फिर अनूप शुक्ल जी से मुलाक़ात हुई अचानक .......
और फिर एक मुलाक़ात हुई भिलाई में वीर जी से वे साथ लाए थे शरद कोकास जी को और संजीव तिवारी जी से भी दूसरी बार मिल रही थी ...और वीर जी से तीसरी बार 
फिर आई बंगलौर..... बॉटनिकल गार्डन में बुलाया शेखर सुमन को...वत्सल लेकर गया मुझे....दो चश्मिशों  के साथ खूब अच्छा लगा 
गिरिजा जी का फोन आया ....उनके घर जाकर मिली....मगर मन न भरा तो फिर एक दिन पूरा उनके साथ बिताया ....आलू की कचोरी खूब स्वादिष्ट बनाती हैं वे

                            

यहाँ से उड़कर गाँधीनगर में  सलिल भैया भाभी से मिल आई हूँ.....

                                       

 और आनन्द  गुणेश्वर से भी गांधीनगर में ही 


अब फिर बंगलौर में हूँ...
.आशीष श्रीवास्तव जी खाना बहुत अच्छा बनाते हैं प्रमाणित कर चुके हैं
रश्मि दी मुलाक़ात का सारांश बता ही चुकी हैं



विवेक रस्तोगी जी को हरी मिर्च की चटनी मैं खिला चुकी हूँ...
एक बात बताना भी जरूरी है यहां ....दिलीप तिवारी मैसूर में था ....तब मैंने उसके ब्लॉग से पॉडकास्ट बनाए थे ....उससे बातचीत में मैंने बताया था कि मेरी भतीजी वैदेही  का जन्मदिन है
और मेरा छोटा  भाई वहीं है.....भाई को नम्बर दिया,उन दोनों ने बात की,और अगले दिन दिलीप जन्मदिन की पार्टी  में परिवार से मिला......मैं नहीं मिली अभी ....
और कोई छूटा तो नहीं ...याद करके एडिट कर लूँगी....और हाँ सबकी लिंक भी तो लगानी  है

देखिए कहा था न किसी को भूली तो नहीं  ..और संध्या जी को ही भूल गई ...जबकि इनसे तो बात से भी पहले मुलाक़ात हुई थी.......और इन्होंने अपने घर ले जाकर खाना भी खिलाया था ......खुद बनाकर .......मेरे पोस्ट लिखने का उद्देश्य भी यही था कि मैं किसी को भूल न जाऊँ....संध्या जी से माफ़ी के साथ उनकी आभारी भी हूँ की उन्होंने याद दिलाया ...मैं बहुत शर्मिंदा भी हूँ....क्यों याद नहीं रहा......खाना खाकर भी भूल गई .....




तो  मान गए न ! अच्छे दिन आ गए मेरे........