पिता की दृष्टि से दुनिया-
कठोर पर भुरभुरी
टिकी जिस पर धुरी
गीली पर बस नम
दलदल, पर बस भरम
भिन्न भिन्न फुलवारी
जैसे रंगों भरी क्यारी
कड़क और गरम
पर मखमल सी नरम
निर्भीक,निडर ,दुस्साहसी
पर कोमल,नाजुक और कसी
दबी हुई मुस्कुराहट और खिलखिलाहट चरम
पर साथ हीआँखों में झुकी शरम
नन्ही सी जान
स्व की पहचान
मन में निर्मलता और ईमान
मेहनत ही पूजा, कर्म ही धरम
सुख जैसे प्याज की दो फाँक
और ज्वार ,बाजरे की रोटी
दुःख बहती नदिया का पानी
और अपना करम..
-अर्चना