ऐ! छुटकी बंजारन
रूहानी मौलिमणी!
या कहूँ-मौली दी
धड़कन रोक देती है
तेरी वात्सल्य भरी
अक्षरों में पगी पोटली
प्रेम,प्यार,दुलार
और तेरा मनुहार
सदा शरारत को
छुपा लेता है तेरी
सच! कोई धैर्य रखे
तो कितना?
और विश्वास भी करे
तो कैसे?
तेरा मंतव्य तो
मंज़िल पाने का होता है
और हम भ्रम में
"दीदी" का सहारा
बनने की ख्वाहिश में
हिमालय की चोटी से
धरा पर आ गिरते हैं ....
जरूर तुझमें
ॐ का तत्व छुपा है
माँ की दुआएं तेरे साथ है...
ग़म और विरह
में जकड़ी मैंं ठूँठ -सी
संदेश समझ न पाई तेरा
आह!...
मनुष्यता की सफ़ल सलाया
तेरी जिजीविषा से
खिल उठा मेरा भी
संतोषी गुलमोहर
अनुपम..
आप कहूँ या आत्मन!
मेरी दी ... छुटकी स्वच्छंद बंजारन ....
जीयो जीयो .....खूब जीयो ...
(निशी के जन्मदिन पर उसे समर्पित )