न गज़ल के बारे में कुछ पता है मुझे, न ही किसी कविता के, और न किसी कहानी या लेख को मै जानती, बस जब भी और जो भी दिल मे आता है, लिख देती हूँ "मेरे मन की"
Tuesday, July 26, 2016
फिर मिलेंगे ...
एक पुराने फोटो के सामने आने पर गौर किया -
बेटे का ध्यान माँ पर है और बेटी का पापा पर ....
बेटे का ध्यान माँ पर है और बेटी का पापा पर ....
1992 में |
और ये टी शर्ट अब तक है मेरे आलमारी में -
26 जुलाई 2016 में |
बिछुड़ने के पल
होते हैं उदासी भरे
और शुरू होता है
यादों का कारवाँ यहीं से
एक आस टूटती है
एक साँस छूटती है
और हो जाता है सफर
शुरू अनन्त का
न ओर है ,न छोर है
बस! तुम्हारे प्रेम की डोर है
आउँगा वापस
सिर्फ़ तुम्हारे लिए
तुम न रोना
न उदास ही होना
उम्मीद का दामन
थामें रखना
इसी जगह
इसी तरह
हम किसी भी पल
फिर मिलेंगे ...
-अर्चना
Sunday, July 24, 2016
क्या लिखूँ क्या छोड़ूँ
आज के दिन हुई थी वो खतरनाक दुर्घटना ...सिर्फ लोगों से सुना जिसके बारे में ......कल्पना से परे कोई बात घटती है तो मन पर गहरा असर करती है.... लाख समझाऊँ खुद को पर सच तो ये है की हूबहू वही सब फिर याद आता है,आँखों के सामने घटता है .......नहीं भुलाए जा सकते कुछ लोग ,कुछ रिश्ते ........
हादसे होना मनुष्य जीवन की समान्य घटना है...
चाहे जितने दे ले गम
बड़े प्यार से झेलें हम
दिया है तूने इतना दम
हिम्मत होगी कभी न कम
उजली राहें ढ़क दे तम
पग पग चलते निकलेंगे हम
गिरती बूंदें गई हैं थम
भले ही पलकें अब भी नम
मिलने आए हमसे "यम"
मिलकर हममे गये हैं रम
चाहे जितने दे ले गम
बड़े प्यार से झेलें हम
----
चाय का शौक और हँसी अब भी बरकरार है ...... नो शिकायत ...
हादसे होना मनुष्य जीवन की समान्य घटना है...
चाहे जितने दे ले गम
बड़े प्यार से झेलें हम
दिया है तूने इतना दम
हिम्मत होगी कभी न कम
उजली राहें ढ़क दे तम
पग पग चलते निकलेंगे हम
गिरती बूंदें गई हैं थम
भले ही पलकें अब भी नम
मिलने आए हमसे "यम"
मिलकर हममे गये हैं रम
चाहे जितने दे ले गम
बड़े प्यार से झेलें हम
----
चाय का शौक और हँसी अब भी बरकरार है ...... नो शिकायत ...
Saturday, July 23, 2016
आदत -सी पड़ गई है ..
शाख किसी दरख़्त की
यदि झुक जाए थोड़ी भी
दम भर सुस्ता लूँ
------------------
शाम होते ही
यादें हो जाती है हाज़िर
दस्तक देने को
----------------------
शाम आती ही क्यूँ है
यदि तुम्हें साथ नहीं लाती तो
दवा या दुआ ... आदत -सी पड़ गई है ...
-------------------------------------
शामिल कर लो मुझे भी
यदि अपनी दुआओं में तुम
दम निकले,और जी लूँ मर कर ...
---------------------------------
-अर्चना
यदि झुक जाए थोड़ी भी
दम भर सुस्ता लूँ
------------------
शाम होते ही
यादें हो जाती है हाज़िर
दस्तक देने को
----------------------
शाम आती ही क्यूँ है
यदि तुम्हें साथ नहीं लाती तो
दवा या दुआ ... आदत -सी पड़ गई है ...
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शामिल कर लो मुझे भी
यदि अपनी दुआओं में तुम
दम निकले,और जी लूँ मर कर ...
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-अर्चना
Wednesday, July 20, 2016
एक चिठ्ठी बेटी के नाम। ..
प्रिय रानू ,
स्नेह। .. ....
कहाँ से शुरू करूँ समझ में नहीं आ रहा... कुछ ख़ास बातें बताना है तुम्हें ... तुम्हारा जन्म हुआ नानी के घर
और रानू नाम दिया इन आंटीजी ने ,जो रांची में हमारी मकान मालकिन थी
.... अपने पापा की लाडली बेटी हो तुम ,वैसे तो सब लड़कियां अपने पापा की लाडली होती है मगर तुम ख़ास इसलिए कि --
५ साल की उम्र बहुत कम होती है पापा के हाथ से खाई दाल में चूरी रोटी के स्वाद को याद रखने की।
.. हां पांचवां जन्मदिन मनाने के एक दिन पहले ही उन्हें चले जाना पड़ा था ... लेकिन जिस बहादुरी से तुमने भैया के साथ मिलकर आगे कदम बढाए उसकी प्रशंसा पाने की हकदार हो ...
"भैया के साथ मिलकर आगे कदम बढाए" लिखने पर तुम दोनौं की सारी कारस्तानियां आँखों के सामने से गुजर रही है ....
के. जी. टू में थी तब हमें नागपुर आ जाना पड़ा था। पापा को पलंग पर लेटे देखकर पूछा करती थी -पापा कब ठीक होंगें? और उत्तर जानते हुए भी मैं कह देती -- हो जाएंगे। ..
फिर जब हम नाना के घर वापस लौटे तो तुम तीसरी कक्षा में आ गयी थी अब तक टाटपट्टी बिछाकर उसपर बैठकर पढ़ाई करने वाला स्कूल तुम दोनों ने पहली बार देखा था। . ..
...... पूरे ननिहाल के गाँव को तुम दोनौं का बचपन अब भी भुलाए नहीं भूलता। ..
पांचवी में थी तब हम इंदौर (हॉस्टल) में आ चुके थे .... .. १९९८ में तुम्हारा दसवां जन्मदिन मनाया था हॉस्टल की मेस में। .... पूरे पांच साल बाद .......
छठी कक्षा की क्लास टीचर "नाग मेडम" को मैं भी नहीं भूली हूँ। . :-)
सातवीं में तुम स्काऊट -गाईड के केम्प में नेपाल गई थी। ....
आठवीं में जब तुम आई तो सरला सरवटे मेडम के प्रोत्साहन से गोताखोरी सीखनी शुरू की। ... और राष्ट्रीय गोताखोरी प्रतियोगिओं में भागीदारी की ...नौंवी। .दसवीं और ग्यारहवीं तक। ...
यहीं से अपना खिलाड़ियों वाला रिश्ता मजबूत हो गया। ...... याद होगा जब ४०० मीटर रिले-रेस की हिस्सा थी और १०० मीटर में भी दौड़वा दिया था नवीन सर ने .....
बारहवीं में तीन महीने तक हम सबके बहलावे में आकर साइंस विषय लिया .....लेकिन तुम्हारा मन नहीं माना ..... और मन की जीत हुई .... कॉमर्स विषय लेकर गोताखोरी को भी अलविदा कर दिया तुमने .....
इन तीन सालों में मैं और तुम दो सदस्य रह गए थे घर में। ..भैया जा चुका था अपना आसमान तलाशने। ... और इन्हीं दिनों हमने खूब मस्ती की। ... इंदौर सराफा से लेकर छप्पन तक ..कुछ नहीं खाने का बचा जिसका स्वाद न लिया हो। ... :-)
इन्हीं दिनों तुमने स्कूटर सीखा और बाजार से सामान-लाने का काम तुम्हारे जिम्मे हो गया ..... भैया के कॉम्पिटेटिव एक्ज़ाम के फ़ार्म भरना कैसे भूल सकते हैं हम। ....
फिर सफर शुरू हुआ तुम्हारा घर से बाहर का जब स्नातक की पढ़ाई के लिए पूना गई तुम ..... तुम्हारा ये कहना कि -अगर मैं बारहवीं पास कर लुंगी तो भैया जैसे मुझे भी भेज दोगी न बाहर पढ़ने रोकोगे तो नहीं। .... मुझे भी मजबूत बनाता गया। .....
और ... तुम्हारे जीवनसाथी चुनना और सबकी सहमती लेने के फैसले का पूरे परिवार ने सम्मान किया ....
वैवाहिक जीवन में भी तुमने बहुत ही जल्दी सबको सम्भाल लिया ....
नए रीति -रिवाज ,खान-पान और परिवार को समझने का मौका ही नहीं दिया ईश्वर ने ... केदारनाथ हादसे में तुमने ही नहीं हम सबने भी असमय ही अपने परिजनों की खो दिया। .......
लेकिन जिस दृढ़ता से उस घड़ी में तुमने अपने आप को संयत रखा जीवन भर तुम्हारा हौसला और साहस वैसा ही बना रहे ये मेरा आशीष है .....
और हाँ तुम्हारे रसोई प्रेम का उल्लेख करे बिना ये चिठ्ठी अधूरी है ..... मैंने तुम्हैं कुछ नहीं सिखाया लेकिन तुम्हारे खाना-पसंद मामाओं और बढ़िया खाना बनाने वाली मामियों की मदद से तुम बहुत अच्छे कुक बन गयी हो। ...
जिसमें अगर मैं ---सुमुख-निशी-चिंकी का नाम न लूँ तो वे बुरा मान सकते हैं। ... :-) वत्सल भैया इन सबसे वंचित रह गया लेकिन अब तुम उससे टक्कर ले सकती हो ,बहुत टेस्टी खाना बना कर मुझे खिलाता है। .. :-)
.... नीलेश और दिप्ती ने भी तुम्हारी रसोई में स्वाद बढ़ायें हैं ... अब आती हूँ कान्हा पर उसने तुममें वात्सल्य की पहचान कराई तुम अपनी मामियों की तरह ही उसकी चहेती मामी हो ....
और अब हमारी "मायरा" रानी तुम एक तो वो सवा है ,तुम उन्नीस तो वो बीस ,
....... अभी से मुझे "आंटी " कहकर चिढ़ाती है :-)
जन्मदिन मनाना कोई तुमसे सीखे। ....
एक महीने पहले से एक महीने बाद तक बधाई मिलती रहे हमेशा की तरह। .... और गिफ्ट मिले तो सोने पे सुहागा। ... :-)
...... वैसे ये तुम्हारा कौनसा जन्मदिन है। .. :-) :-) पूछ रहे हैं वत्सल -नेहा और दे रहे हैं जन्मदिन की बधाई और स्नेहाशीष ! ...
गिफ्ट भी मिल जाएगा। . "सेरा"से मिलना न भूलियो !!!
Monday, July 18, 2016
सही उत्तर - टेस्ट पेपर -1
1- यूनुस खान
हम तो आवाज़ हैं दीवारों से छन जाते हैं।
2- उन्मुक्त
मुक्त विचारों का संगम, कभी खुशी कभी ग़म
3- काजल कुमार
मुझे कार्टूनिंग के अलावा कुछ नहीं आता...
4- डॉ. अनुराग आर्य
घुस जाऊ...लिहाफ़ उठा कर जिस्म का
ओर झन्झोड डालूं इस मुई रूह को..
5- अजित वडनेरकर
कोस कोस पर बदले पानी, चार कोस पर बानी
हम तो आवाज़ हैं दीवारों से छन जाते हैं।
2- उन्मुक्त
मुक्त विचारों का संगम, कभी खुशी कभी ग़म
3- काजल कुमार
मुझे कार्टूनिंग के अलावा कुछ नहीं आता...
4- डॉ. अनुराग आर्य
घुस जाऊ...लिहाफ़ उठा कर जिस्म का
ओर झन्झोड डालूं इस मुई रूह को..
...
खोया हुआ जमीर बड़ी मुश्किल से मिलता है !
खोया हुआ जमीर बड़ी मुश्किल से मिलता है !
5- अजित वडनेरकर
कोस कोस पर बदले पानी, चार कोस पर बानी
Saturday, July 16, 2016
टेस्ट पेपर -1
आज एक टेस्ट पेपर आपके लिए--- बताईये ये लाइने किन लोगों की या उनके ब्लॉग की पहचान बताती है?
(सही उत्तर कल की पोस्ट में चेक कीजिएगा )
1- हम तो आवाज़ हैं दीवारों से छन जाते हैं।
2- मुक्त विचारों का संगम, कभी खुशी कभी ग़म
3-मुझे कार्टूनिंग के अलावा कुछ नहीं आता...
4-घुस जाऊ...लिहाफ़ उठा कर जिस्म का
ओर झन्झोड डालूं इस मुई रूह को..
(सही उत्तर कल की पोस्ट में चेक कीजिएगा )
1- हम तो आवाज़ हैं दीवारों से छन जाते हैं।
2- मुक्त विचारों का संगम, कभी खुशी कभी ग़म
3-मुझे कार्टूनिंग के अलावा कुछ नहीं आता...
4-घुस जाऊ...लिहाफ़ उठा कर जिस्म का
ओर झन्झोड डालूं इस मुई रूह को..
...
खोया हुआ जमीर बड़ी मुश्किल से मिलता है !
5- कोस कोस पर बदले पानी, चार कोस पर बानी
खोया हुआ जमीर बड़ी मुश्किल से मिलता है !
5- कोस कोस पर बदले पानी, चार कोस पर बानी
Wednesday, July 13, 2016
ये बारिशों के दिन। ..
ये बारिशों के दिन। ..
चुपचाप रहने के दिन ....
मुझे और तुम्हें चुप रहकर
साँसों की धुन पर
सुनना है प्रकृति को ....
. उसके संगीत को ...
झींगुर के गान को ..
मेंढक की टर्र -टर्र को...
कोयल की कूक को...
और अपने दिल में उठती हूक को। ....
....
बोलेंगी सिर्फ बुँदे
और झरते-झूमते पेड़
हवा बहते हुए इतराएगी...
और
अल्हड़ सी चाल होगी नदिया की
चुप रहकर भी
सरसराहट होगी
मौन में भी एक आहट होगी
...
उफ़! ये बारिशों के दिन ..
चुपचाप रहने के दिन।
चुपचाप रहने के दिन ....
मुझे और तुम्हें चुप रहकर
साँसों की धुन पर
सुनना है प्रकृति को ....
. उसके संगीत को ...
झींगुर के गान को ..
मेंढक की टर्र -टर्र को...
कोयल की कूक को...
और अपने दिल में उठती हूक को। ....
....
बोलेंगी सिर्फ बुँदे
और झरते-झूमते पेड़
हवा बहते हुए इतराएगी...
और
अल्हड़ सी चाल होगी नदिया की
चुप रहकर भी
सरसराहट होगी
मौन में भी एक आहट होगी
...
उफ़! ये बारिशों के दिन ..
चुपचाप रहने के दिन।
झंक्रॄत मन....
नन्हीं सी बूँदो
तुम जो बरसोगी
धरा खिलेगी..
तुम जो बरसोगी
धरा खिलेगी..
सावन आया
पिया कहीं न जाना
झूला झूलेंगे..
ओ री बरखा
जो भिगोई चुनरी
फ़िर तपूंगी....
घोर गर्जन
घबराए से पंछी
रूको बदलों...
मैं हूँ उदास
बरसेंगी अँखियाँ
पूरे सावन..
निकली धूप
फ़िर छुपे बादल
फ़िर से चिंता...
छाते के नीचे
फ़ुहारों के बीच में
मैं और तुम...
जलतरंग
टिप टिप टिपिर
झंक्रॄत मन....
-अर्चना
पिया कहीं न जाना
झूला झूलेंगे..
ओ री बरखा
जो भिगोई चुनरी
फ़िर तपूंगी....
घोर गर्जन
घबराए से पंछी
रूको बदलों...
मैं हूँ उदास
बरसेंगी अँखियाँ
पूरे सावन..
निकली धूप
फ़िर छुपे बादल
फ़िर से चिंता...
छाते के नीचे
फ़ुहारों के बीच में
मैं और तुम...
जलतरंग
टिप टिप टिपिर
झंक्रॄत मन....
-अर्चना
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