आजकल मैंने अखबार पढ़ना बंद कर दिया है |बहुत से कारण है अखबार न पढ़ने के मसलन---
१. पढ़ने लायक पेज एक या आधा ही होता है |
२.मरने या मारने की ख़बर पहले प्रष्ठ पर पढ़ कर मन व्यथित हो जाता है|
३.दुर्घटनाओ के फोटो दिन भर आखों के सामने से हटते नही |
४.एक पेज पढ़ने के लिए ४-५ पेज कम से कम १ महीने (रद्दी बेचने तक)संभालकर रखने पड़ते है|
५.जिस ख़बर की पूरी-पूरी जानकारी चाहिए होती है वो ठंडे बस्ते में चली जाती है |
६.विज्ञापनों के भी हाल ऐसे होते है की अगर बच्चो के सामने पढ़े तो उनके पूछे कुछ सवालो के जबाब नही दे पाते|
(शीर्षक लिखने वाली थी मगर लिखने में भी अच्छा नही लग रहा है ,ख़ुद ही पढ़ लीजियेगा )
७.कोई नेता या पार्टी वादा कर रही होती है, तो कोई दूसरो को उनके किए वादों की याद दिलाती है|
८.सुबह पेपर चाय के साथ पढने का टाइम नही रहता,और शाम तक ख़बर बासी हो जाती है|
९.खेलप्रष्ठ का मजा दूरदर्शन ने कम कर दिया है| (लाइव टेलीकास्ट के कारण)
१०.यहाँ लिखने में मजा आने लगा है |
3 comments:
सब बंद कर दो...बस, हमारा ब्लॉग पढ़ा करो.. :)
अच्छा किया अखबार पढना छोड दिया। अखबार पढने के बारे मे अब यह तर्क अया है कि इसे पढकर आदमी में निगेटिव सोच पैदा हौता है।
जी, समीर जी,वैसे आपको बता दूं कि आपका ब्लॊग पदने के बाद ही अखबार वाले को बन्द किया है।
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