श्रावण माह के इस सोमवार पर दर्शन किजिये भगवान महांकालेश्वर-------उज्जैन (मध्यप्रदेश)--के----(चित्रगुगल से साभार )................
.........और सुनिये मेरी आवाज में गोस्वामी तुलसीदासजी द्वारा रचित श्री रामचरितमानस ग्रन्थ के उत्तरकांडके दोहा नम्बर १०७ की ये प्रार्थना........
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इस प्रार्थना के साथ मेरी , बल्कि हम सब भाई-बहनो की बहुत ही मधुर यादे जुडी है----बात तब की है जब मै ८-९ साल की रही हूँगी--- हर साल श्रावण माह में , हमारे यहाँ खरगोन में , हमारे समाज की धर्मशाला मे गोस्वामी तुलसीदासजी द्वारा रचित श्रीरामचरितमानस का नवान्ह्पारायण का पाठ होता था । हमारे पिताजी हमें वहाँ रोज नियम से ले जाते थे ,परिवार के सभी सदस्यों का वहाँ जाना अनिवार्य था , हम सुबह ४ बजे से उठकर , नहाकर चाँदनी के फ़ूल तोडकर खूब सजाकर लम्बी-लम्बी माला बनाते थे और पिताजी के साथ ही मोटरसाईकिल पर जाने को तैयार हो जाते थे , ६ बजे तक पहुँच जाना होता था , ( भाई -बहनों मे से जो जल्दी तैयार होते वही पिताजी के साथ जा पाते ) , माँ भी आधा खाना पकाकर बाद मे आती थी---जो जल्दी पहुँचता था उनकी माला मुख्य-फ़ोटो पर चढाई जाती थी ---इसलिये हर घर के बच्चों में होड लगी रहती थी-----और माला चढाई जाने पर जो खुशी मिलती थी उसे शब्दों मे बयान नही किया जा सकता---- हमें बहुत सारी प्रार्थनांए वही से मुखाग्र है----अध्यात्म शब्द से हमारा दूर-दूर तक का कोई रिश्ता नही था बस आनन्द आता था , पाठ के बीच में एक इन्टरवल होता था जिसमें सबको मसाले वाली चाय पीने को मिलती थी जिसका स्वाद आज तक याद है ---- वह भी एक बहुत बडा आकर्षण होता था..........रामायण पढने वालो के लिए (बहुत लोग तो शायद उसी बहाने आते थे) ------१०--साढे १० बजे तक रोज का पाठ समाप्त होने के बाद वापस आकर भी रोज स्कूल जाते थे बिना नागा ! ! ! आखरी दिन समाप्ति के दिन महाप्रसाद होता था ।
अब समय बहुत बदल गया है वो दिन तो अब वापस नही आ सकते मगर आज भी हमारी कोशिश है कि हमारे बच्चो को घर में वही माहौल मिले इसलिये जब भी हम इकठ्ठे होते हैं प्रार्थनाएं जरूर करते हैं.........
3 comments:
आभार हमारे साथ बांटने के लिए. अच्छा लगा.
यादें.... बचपन की यादें,
जब याद आती है
बस याद ही आती है...
सुन्दर प्रार्थना, सुनना सुखद लगा।
धन्यवाद!
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