मै नही चाहती कि कुछ ऐसा लिखू ,
जिससे अरुंधती ,तसनिमा ,रशदी या चेतन भगत की कतार में दिखू ,
चाहती हु मै लिखना मेरी अपनी कहानी ,
वक्त -बेवक्त घटी हुई अनहोनी ,
जिसमे मेरे बच्चो का बचपन कही खो गया ,
और मेरा ईश्वर हमेशा के लिए सो गया ,
मैंने नही सोचा था कभी यहाँ आउगी ,
अपनी जिंदगी में कभी ख़ुद कमाकर खाउगी ,
जब भी कदम बढाया - तूने हमेशा ही टोका है ,
मुझे शिकायत है तुझसे --
क्योकि तूने मुझे सावित्री बनने से रोका है ,
माँ से मैंने सुना था और अब मुझे भी पता है ,
कि जो तू चाहे वही होता है ,
फ़िर भी मुझे अपना समझ -और बता ,
तूने क्या खोया जो तू यूं रोता है ..........
7 comments:
umda baat..........
anupam baat
badhaai !
सुन्दर भावाभिव्यक्ति
बहुत बढिया लिखा है !!
maa.. apse he seekhi ek baat yaad gayi....
jo ho gaya uspar rone se koi fayda nahi.. kyuki hum use badal nahi sakte, bas jo ho raha hai use ache se nibhayein taki bhavishya ko sudhar sakein...
sorry bolna bhul gayi...
bahut acha likha hai...
बहुत बढिया!!!!
शास्वत संस्कारों की छाया ने रोका
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