सुर इस गाँव में नई-नई आई थी। यहाँ आने से पहले उसने संगीत के बारे में सुन रखा था, पर जान-पहचान नहीं थी। एक दिन अचानक एक परेशानी में पडने पर संगीत ने सुर की मदद कर दी, और बस तभी से संगीत और सुर की दोस्ती बढने लगी। धीरे-धीरे वे आपस की बातें करते,हँसी मजाक करते-करते घुल-मिल गए। इसी बीच जब-जब सुर को कोई परेशानी होती संगीत चुटकियों मे उसका हल निकाल देता, और सुर खुश होकर उसका धन्यवाद अदा कर देती।
कुछ दिनों बाद अचानक एक दिन सुर को पता चला-- गीत के बारे में...............कहीं गीत ने सुर की तारीफ़ की थी, और ये बात सुर के कानों में पडते ही उसे आश्चर्य हुआ...........खुशी भी हुई कि बिना जान-पहचान के ही गीत उसके बारे में इतना कुछ कह गया। अब शुरुआत हुई गीत और सुर की दोस्ती की। पहले वे सिर्फ़ नमस्ते तक सीमित रहते थे ,पर गीत कुछ और ही चाहता था,वो चाहता था कि सुर अपने तक ही सीमित न रहे,सारे संसार के लोगों को उसकी खूबियों का पता चले। दोस्ती बढने लगी,दोनों एक-दूसरे से सुख-दुख की बातें बाँटने लगे । सुर को अब दो मित्र मिल गए थे । संगीत और गीत दोनों से मिलकर सुर बहुत खुश थी, पर ये खुशी थोडे समय की थी। एक दिन सुर को पता चला कि संगीत और गीत की आपस में कोई अनबन है वे दोनों एक-दूसरे से मिल नहीं सकते हैं।
सुर अब उदास रहने लगी,हरदम सोचती रहती कैसे उन दोनों की दोस्ती कराए?, कैसे दोनों को मिलाए?उसे ये जानकारी भी नहीं थी कि उन दोनों की अनबन का कारण क्या था, पर बस वो चाहती थी कि वे तीनों मित्र बने रहें।
एक दिन सुर ने बहुत हिम्मत करके उन दोनों को मिलवाने की कोशिश में दोनों को एक-दूसरे से अनजान रखते हुए,एक-दूसरे के सामने ला खडा किया। अचानक हुई इस घटना ने दोनों को चौंका दिया,दोनों को सुर से ये उम्मीद नहीं थी दोनों सुर को दोषी समझने लगे ,सुर ने अपना पक्ष रखने की बहुतेरी कोशीश की , वह सिर्फ़ दोनों को बताना चाहती थी कि आपसी मतभेद भुलाकर आने वाली पीढी के लिए एक मिसाल कायम की जा सकती है पर दोनों ने नहीं सुनी और दोनों ने सुर को ही दोषी माना।
अब सुर फ़िर अकेली है पर उसे अपनी दोस्ती पर अब भी विश्वास है वह इंतजार कर रही है ........जब संगीत और गीत वापस लौटेंगे ....सच्चाई जानेंगे कि सुर के दिल में क्या था?...........
"आपसी मतभेद और वैमनस्य भुलाकर ही (भले ही उसके लिए कडवे घूंट ही क्यों न पीना पडे)इस दुनियां में भाईचारे व सद्भाव की मिसाल कायम की जा सकती है " जिसकी कि हम आने वाली पीढी से अपेक्षा रखते हैं ----
पर डर है कहीं बहुत देर न हो जाए ....................कहीं सुर फ़िर अपनी एकाकी दुनियां मे न खो जाए..............
18 comments:
बहुत सही !!
इस बहाने उम्दा सीख! आभार.
सुन्दर सीख देती रचना... सुन्दर सन्देश
सीख देती अच्छी लघुकथा..
गीत अनमना था बार बार कह रहा था कि संगीत से उसे कोई बैर नहीं ........ बस फ़िर भी सुर तो सुर सुकोमल सहज सम्वेदित बस उदास है जाने क्यों
प्रेरक और उपयोगी पोस्ट!
वाह वाह जी बहुत ही सुंदर
बहुतसुंदर कहानी पढ़ कर मजा आ गया |बधाई
चर्चा मंच के माध्यम से इसे पढ़ने का अवसर मिला
आशा
काफी काम की कहानी है यह तो
अच्छा लगा.
bahut kuchh seekhne ko milta hai
रोचक कहानी के माध्यम से आशावाद की तरफ़ प्रेरित करती पोस्ट।
वो सुबह कभी तो आयेगी।
आभार।
सुर बेवज़ह दुनिया के झंझावातों से प्रभावित न हो बस निकल पड़ा सुदूर सुर के साथ बातें करते करते उसे सुर ने उसे गुनगुनाया और यंत्र जन्य संगीत से हटकर नैसर्गिक संगीत उभरा बहती नदी से, सागर की लहरों से मिला और गीत सफ़ल हुआ सुर के सहारे
सीख देती सुन्दर लघुकथा ...
प्रेरक कथा
बहुतसुंदर कहानी पढ़ कर मजा आ गया
sorry for late......
kam shabdon me bahut kuchh kaha gaya hai va sarthak pryaas bhi huaa hai. meri shubhkamnaaye....
visit site-www.rajeevmatwala.wordpress.com
गीत पहले अपनी पोथियों में दर्ज गलतियों को एक बार देख लेता, फिर कहता कि उसका का कोई दोष नहीं। छोटी सी बात पर बवाल करने से पहले थोड़ा सोच लेता कि उसकी इस बात से संगीत के दिल को कितनी ठेस लगी होगी?
संगीत की गलती क्या थी? उसने यही तो कह था कि भई हमें इस तरह की चिट्ठियां ना भेजा करो, हमें आपकी चिट्ठियां अखबार में भी पढ़ने को मिल जाती है।
सुर की गलती नहीं पर बस बात रहिमन धागा प्रेम का वाली है। सुर और संगीत तो शायद कभी मिल भी जाये लेकिन गीत!
कभी नहीं।
संगीत, वह तो बेहूदा शब्दों के बिना भी अपनी बात कह ही देगा।
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