मुझे पता है- मैं कौन हूँ?
मैं हर समय रहने वाली आत्मा हूँ,
जो न कभी मरूँगी,न मिटूंगी,
बस---रहूँगी और डटूंगी,
हर उस जगह पर
जो मेरे लिए बनाई गई है।
मुझे पता है-मेरी जगह निश्चित नहीं है,
इसलिए मैं घूमती हूँ यहाँ-वहाँ,
अन्य लोगों से मिलने के लिए,
जिनसे मेरा मिलना जरूरी है,
हर उस जगह पर,
जहाँ वे मेरा इंतजार कर रहे हैं।
मुझे पता है- मुझे हर वो काम करने हैं,
जो मुझे दिए गए हैं,
मै सिखती हूँ उन्हें ,मेहनत से,
करती हूँ उन्हें, मनोयोग से,
पर हो जाते हैं कुछ गलत,
और इसी कारण से शायद,
मै आत्मा हूँ,मेरी जगह निश्चित नहीं है,
और मेरे काम बाकी रह जाते है हमेशा ...
और यहाँ सुनिए फ़िरदौस की गज़ल
16 comments:
bilkul sahi kaha aapne
insan ka shareer nasht ho jaata hai
rah jaati hai sirf "aatma"
सच कहा है..आत्मा तो अजर-अमर हैं कुछ कार्य निर्धारित हैं जो हमें करने ही हैं और नष्ट होने वाला शरीर हैं। शरीर रूपी चोला बदलता ही रहता है
बहुत अच्छी कविता है...
आत्मा होने का एगो अऊर फायदा है कि न इसको कोई सस्त्र छेद सकता है, न आग जला सकता है, जल भिगा सकता है, न हवा सुखा सकता है..इसलिए ना कोई निस्चित स्थान है न कोई कार्य... लेकिन काम अधूरा कहाँ रहता है.. जब एक सरीर साथ छोड़ देता है तो दूसरा सरीर के मार्फत काम पूरा करना पड़ता है..बहुत गहरा भाव लिए सार्थक रचना!!
आत्मिक सच्चाई बयां करती रचना. ग़ज़ल तो मस्त रही.
मैं बस मैं हूँ।
आत्मा का परिचय
और पता-ठिकाना देने के लिए आभार!
हमे पता है यह वह आत्मा नही है ।
हाँ आत्मा ही है वो.. बस निरंतर एक शरीर से दूसरे में जाती रहती है सदआत्मा, महात्मा बनने की कोशिश में.. सुन्दर दर्शन..
बहुत ही खूबसूरत रचना है ...
बहुत अच्छी भावाभिव्यक्ति ...
जब पता है कि आप कौन हैं तो चलते ही रहना पड़ेगा, यही जीवन है।
बहुत अच्छे उद़गार प्रकट किये हैं।
शुभकामनायें।
जिस दिन ये जान लिया " मै कौन हूँ" बस उसके बाद कुछ जानने की चाह नही रहती।
सच है .. आत्मा न पैदा हिती है न मारती है ....
aatm roop hi to hain sab!
sundar abhivyakti...
सुन्दर व्याख्या
कविता के भाव बहुत अच्छे हैं।
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