Tuesday, September 21, 2010

मै कौन हूँ ?

मुझे पता है- मैं कौन हूँ?
मैं हर समय रहने वाली आत्मा हूँ,
जो न कभी मरूँगी,न मिटूंगी,
बस---रहूँगी और डटूंगी,
हर उस जगह पर
जो मेरे लिए बनाई गई है।
मुझे पता है-मेरी जगह निश्चित नहीं है,
इसलिए मैं घूमती हूँ यहाँ-वहाँ,
अन्य लोगों से मिलने के लिए,
जिनसे मेरा मिलना जरूरी है,
हर उस जगह पर,
जहाँ वे मेरा इंतजार कर रहे हैं।
मुझे पता है- मुझे हर वो काम करने हैं,
जो मुझे दिए गए हैं,
मै सिखती हूँ उन्हें ,मेहनत से,
करती हूँ उन्हें, मनोयोग से,
पर हो जाते हैं कुछ गलत,
और इसी कारण से शायद,
मै आत्मा हूँ,मेरी जगह निश्चित नहीं है,
और मेरे काम बाकी रह जाते है हमेशा ...

और यहाँ सुनिए फ़िरदौस की गज़ल

16 comments:

संजय कुमार चौरसिया said...

bilkul sahi kaha aapne
insan ka shareer nasht ho jaata hai
rah jaati hai sirf "aatma"

वीना श्रीवास्तव said...

सच कहा है..आत्मा तो अजर-अमर हैं कुछ कार्य निर्धारित हैं जो हमें करने ही हैं और नष्ट होने वाला शरीर हैं। शरीर रूपी चोला बदलता ही रहता है
बहुत अच्छी कविता है...

चला बिहारी ब्लॉगर बनने said...

आत्मा होने का एगो अऊर फायदा है कि न इसको कोई सस्त्र छेद सकता है, न आग जला सकता है, जल भिगा सकता है, न हवा सुखा सकता है..इसलिए ना कोई निस्चित स्थान है न कोई कार्य... लेकिन काम अधूरा कहाँ रहता है.. जब एक सरीर साथ छोड़ देता है तो दूसरा सरीर के मार्फत काम पूरा करना पड़ता है..बहुत गहरा भाव लिए सार्थक रचना!!

PN Subramanian said...

आत्मिक सच्चाई बयां करती रचना. ग़ज़ल तो मस्त रही.

प्रवीण पाण्डेय said...

मैं बस मैं हूँ।

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

आत्मा का परिचय
और पता-ठिकाना देने के लिए आभार!

शरद कोकास said...

हमे पता है यह वह आत्मा नही है ।

दीपक 'मशाल' said...

हाँ आत्मा ही है वो.. बस निरंतर एक शरीर से दूसरे में जाती रहती है सदआत्मा, महात्मा बनने की कोशिश में.. सुन्दर दर्शन..

अजय कुमार झा said...

बहुत ही खूबसूरत रचना है ...

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

बहुत अच्छी भावाभिव्यक्ति ...

संजय @ मो सम कौन... said...

जब पता है कि आप कौन हैं तो चलते ही रहना पड़ेगा, यही जीवन है।
बहुत अच्छे उद़गार प्रकट किये हैं।
शुभकामनायें।

vandana gupta said...

जिस दिन ये जान लिया " मै कौन हूँ" बस उसके बाद कुछ जानने की चाह नही रहती।

दिगम्बर नासवा said...

सच है .. आत्मा न पैदा हिती है न मारती है ....

अनुपमा पाठक said...

aatm roop hi to hain sab!
sundar abhivyakti...

राजीव तनेजा said...

सुन्दर व्याख्या

अजित गुप्ता का कोना said...

कविता के भाव बहुत अच्‍छे हैं।