---माँ........माँ .....देखो न !! इस मोटे कालू को समझा लो .........मुझे कुछ भी कह कर बुलाते रहता है..उं..हूं....उं....
---अपनी माँ से कहा रोते-रोते मुनिया ने...
माँ ---अरे!! ऐसे कोई चिढ़ता है क्या ?? तू भी तो उसे मोटा,कालू कह रही है ....
---मगर माँ मै तो उसे वही कहती हूँ जो वो है ....और वो मुझे वो कहकर चिढ़ाता है जो मैं नहीं हूँ ..
ऐसा भला कैसे??? माँ का सवाल था ।
--माँ देखो !! वो मुझे मोटी कहता है, मैं मोटी नहीं हूँ न ?.....हँस दी थी माँ ...
--तो ये तो वो आज थोडे़ ही न कह रहा है पहले भी कहता रहा है ..दोस्त है तेरा, दोस्त की बात का बुरा नहीं मानते...
...समय के थपेड़ों से बच्ची बन चुकी अपनी पचास वर्षीया बेटी मुनिया का सर अपनी गोदी में रख बालों को सहलाते हुए तिहत्तर वर्षीय माँ समझा रही थी.....
मुनिया का कहना जारी रहा---- वो अब मुझे "देवी" कहता है ....क्या मैं देवी हूँ ? माँ तुम तो कहती हो सब कुछ देवी की ईच्छा से होता है ....क्या सब कुछ मेरी ईच्छा से हुआ है ? माँ अब चुप थी .....
..और मुनिया ..........फ़िर पीछे दौड़ पड़ी थी अपने दोस्त को कालूउउउउउउ मोटेऎऎऎऎऎ कहते हुए............
बचपन में जीना और बचपन को जीना सीख लिया था मुनिया ने ..........
---अपनी माँ से कहा रोते-रोते मुनिया ने...
माँ ---अरे!! ऐसे कोई चिढ़ता है क्या ?? तू भी तो उसे मोटा,कालू कह रही है ....
---मगर माँ मै तो उसे वही कहती हूँ जो वो है ....और वो मुझे वो कहकर चिढ़ाता है जो मैं नहीं हूँ ..
ऐसा भला कैसे??? माँ का सवाल था ।
--माँ देखो !! वो मुझे मोटी कहता है, मैं मोटी नहीं हूँ न ?.....हँस दी थी माँ ...
--तो ये तो वो आज थोडे़ ही न कह रहा है पहले भी कहता रहा है ..दोस्त है तेरा, दोस्त की बात का बुरा नहीं मानते...
...समय के थपेड़ों से बच्ची बन चुकी अपनी पचास वर्षीया बेटी मुनिया का सर अपनी गोदी में रख बालों को सहलाते हुए तिहत्तर वर्षीय माँ समझा रही थी.....
मुनिया का कहना जारी रहा---- वो अब मुझे "देवी" कहता है ....क्या मैं देवी हूँ ? माँ तुम तो कहती हो सब कुछ देवी की ईच्छा से होता है ....क्या सब कुछ मेरी ईच्छा से हुआ है ? माँ अब चुप थी .....
..और मुनिया ..........फ़िर पीछे दौड़ पड़ी थी अपने दोस्त को कालूउउउउउउ मोटेऎऎऎऎऎ कहते हुए............
बचपन में जीना और बचपन को जीना सीख लिया था मुनिया ने ..........
16 comments:
लाजवाब!
बालमन सलरतम
अरे मेरी छोटी मोती बहन तो दार्शनिक बन गयी!! जैनेन्द्र कुमार की एक कहानी थी "खेल" आज वही याद हो आई!
उम्र निष्प्रभ हो जाती है इस प्रसन्नता पर...
कुछ अनुभूतियाँ इतनी गहन होती है कि उनके लिए शब्द कम ही होते हैं !
पढ़ने वाले को उसकी अपनी कथा लगती है।
बहुत बढ़िया।
अनुपम भाव संयोजन ..
मोटे कल्लु को दौड़ाओ खूब दूर तक- सारी अकल ठिकाने लग जायेगी उसकी- बदमाश है बहुत. किसी को ऐसे परेशान करना चाहिये क्या? :)
निःशब्द ... भाव अंतर में उतर गए... आभार
नाजुक भावों की सहज अभिव्यक्ति.
बहुत गहरा संदेश
सच में लाजवाब..इतनी छोटी सी कहानी इतनी अच्छी हो सकती है!!वाह :)
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सुन्दर भावपूर्ण कहानी.
बहुत अच्छी लगी पढकर.
सरल और मासूम सी.
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