Sunday, January 29, 2012

मुनिया का बचपन

---माँ........माँ .....देखो न !! इस मोटे कालू को समझा लो .........मुझे कुछ भी कह कर बुलाते रहता है..उं..हूं....उं....
---अपनी माँ से कहा रोते-रोते मुनिया ने...
माँ ---अरे!! ऐसे कोई चिढ़ता है क्या ?? तू भी तो उसे मोटा,कालू कह रही है ....
---मगर माँ मै तो उसे वही कहती हूँ जो वो है ....और वो मुझे वो कहकर चिढ़ाता है जो मैं नहीं हूँ ..
ऐसा भला कैसे??? माँ का सवाल था ।
--माँ देखो !! वो मुझे मोटी कहता है, मैं मोटी नहीं हूँ न ?.....हँस दी थी माँ ...

--तो ये तो वो आज थोडे़ ही न कह रहा है पहले भी कहता रहा है ..दोस्त है तेरा,  दोस्त की बात का बुरा नहीं मानते...
...समय के थपेड़ों से बच्ची बन चुकी अपनी पचास वर्षीया बेटी मुनिया का सर अपनी गोदी में रख बालों को सहलाते हुए तिहत्तर वर्षीय माँ समझा रही थी..... 

मुनिया का कहना जारी रहा---- वो अब मुझे "देवी" कहता है ....क्या मैं देवी हूँ ? माँ तुम तो कहती हो सब कुछ देवी की ईच्छा से होता है ....क्या सब कुछ मेरी ईच्छा से हुआ है ? माँ अब चुप थी .....


..और मुनिया ..........फ़िर पीछे दौड़ पड़ी थी अपने दोस्त को कालूउउउउउउ मोटेऎऎऎऎऎ कहते हुए............

बचपन में जीना और बचपन को जीना सीख लिया था मुनिया ने ..........

16 comments:

Smart Indian said...

लाजवाब!

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून said...

बालमन सलरतम

चला बिहारी ब्लॉगर बनने said...

अरे मेरी छोटी मोती बहन तो दार्शनिक बन गयी!! जैनेन्द्र कुमार की एक कहानी थी "खेल" आज वही याद हो आई!

प्रवीण पाण्डेय said...

उम्र निष्प्रभ हो जाती है इस प्रसन्नता पर...

Shanti Garg said...

कुछ अनुभूतियाँ इतनी गहन होती है कि उनके लिए शब्द कम ही होते हैं !

मनोज कुमार said...

पढ़ने वाले को उसकी अपनी कथा लगती है।

Udan Tashtari said...
This comment has been removed by the author.
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

बहुत बढ़िया।

सदा said...

अनुपम भाव संयोजन ..

Udan Tashtari said...

मोटे कल्लु को दौड़ाओ खूब दूर तक- सारी अकल ठिकाने लग जायेगी उसकी- बदमाश है बहुत. किसी को ऐसे परेशान करना चाहिये क्या? :)

संध्या शर्मा said...

निःशब्द ... भाव अंतर में उतर गए... आभार

Rahul Singh said...

नाजुक भावों की सहज अभिव्‍यक्ति.

Girish Kumar Billore said...

बहुत गहरा संदेश

abhi said...

सच में लाजवाब..इतनी छोटी सी कहानी इतनी अच्छी हो सकती है!!वाह :)

Anonymous said...

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Rakesh Kumar said...

सुन्दर भावपूर्ण कहानी.
बहुत अच्छी लगी पढकर.
सरल और मासूम सी.