(ये मैं पहले 30 दिसंबर 2010 को पोस्ट कर चुकी हूं आज नये सिरे से करना पड़ रहा है वहाँ प्लेअर नही चलने की वजह से )
ब्लॉग जगत में आभासी रिश्तों के बारे में बहुत कुछ कहा गया ...मैने भी बनाए रिश्ते यहाँ...जो सहयोग मुझे मिला उसके लिए आभारी हूँ सभी की...मुझे लगता ही नहीं कि हम लोग मिले नहीं हैं..रिश्तों के बारे में बातें करते हुए .मैने लिखा कुछ इस तरह ---
चाचा, पिता,बेटे -बेटी और मित्र मिले हैं मुझको घर -घर
साहस मेरा और बढ़ेगा,नहीं रहूँगी अब मैं डर -डर
सूख चुके हैं आँसू मेरे ,जो बह रहे थे अब तक झर -झर
उफ़न चुका गम सारा बाहर,भर चुके सारे नदिया निर्झर
मर चुके कभी अरमान मेरे जो,जी उठेंगे अब वो जी भर
फ़ूल उगेंगे हर डाली पर, हो चुकी सब डाली अब तर
छिन चुका था मेरा सब-कुछ,भटक रहे थे अब तक दर-दर
सुर सरिता की सहज धार में,अब पाया है स्नेह भर-भर
परबत-समतल एक हो गए ,मैं जा पहूँची अभी समन्दर
चाह मुझे सच्चे मोती की ,लेना चाहूँ सब कुछ धर-धर
गिरीश बिल्लोरे "मुकुल" जी नें सुधार करके मेरी भावनाओंको शब्द दिए और उसका नतीजा निकला ये गीत---
नित नाते संबल देते हैं
क्यों कर जियूं कहो मैं डर-डर
सूख चुके हैं आँसू भी मेरे
जो बहते थे अब तक झर-झर
उफ़न चुका गम सारा बाहर
शुष्क नहीं नदिया या निर्झर
प्राण हीन अरमान मेरे प्रिय
जी लेंगे कल को अब जी भर
रिमझिम ऐसे बरसे बादल
हरियाये तुलसी वन हर घर
छिना हुआ सब मिला मुझे ही
दिया धैर्य ने खुद ही आकर
सुर सरिता की सहज धार ने
अब तो पाया है स्नेह मेह भर
परबत-समतल एक हो गए
जा पहुंचा मन तल के अन्दर
चाह मुझे सच्चे मोती की
पाना चाहूं सहज चीन्ह कर
जिसे मैंने गाया कुछ इस तरह ----
9 comments:
सच में, बड़े स्वाभाविक हैं ये संबंध...
वाह अद्भुत संगम
ये रिश्ते ये नाते ... आपकी आवाज़ का जादू चल गया ...
रिश्ते आभासी लगते ज़रूर है ,हम जी नहीं पाते उन्हें सिद्दत से वरना उनकी गर्मी खून के रिश्तों से गाढ़े होते हैं
rishte aabhasi hote to aapaki lines ko nai sajawat kahan milati
बहुत सुंदर भाव अभिव्यक्ति...
बहुत सुंदर...
bahut se pyare se sambandh maine iss abhasi duniya me banaye. aur infact bahut jayda pyar paya.. bahut pyari rachna di...:)
बेहतरीन भाव संयोजन ...
वाह! बहुत सुन्दर.
सादर
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