1-
तस्वीर से टकराकर लौटती है
झरोंखे से पड़ती धूप
चौंधियाकर-
आँखों के बन्द होते ही
तुमसे बिछड़ना
याद आ जाता है ....
2-
तुम्हारा बिछड़ना,
और बिछड़कर
तस्वीर बन जाना,
धूप से नफ़रत है -
तब से ....
3-
भोर से ही बैठे थे
तस्वीर सजाने को
धूप चढ़ी तो रंग निखरा
अब शाम ढलने को है
कहीं रात के अँधेरे में
बिछड़ न जाना तुम.....
४-
बिछुड़ना उदासी फ़ैला रहा है
हम सबके बीच
कोई हँसाओ तो जरा सबको.....
५-
हँसती हुई तस्वीर देखो
ज़रा तुम भी
कैसे रंग भरती है जीवन में
और ये देखो
इंद्रधनुषी रंग
जाने का मन नहीं करता मेरा...
-अर्चना
11 comments:
शुभ प्रभात .उदासी से शुरू होकर जीवन को नए आयाम देती आपके कुछ चुनिन्दा ख्वाबों ख्यालों में से एक अनुभूति . जिसे शब्द दिए हैं समय ने बहुत ही खुबसूरत एहसास जिसमे जीने का नया तरंग झलकता है.
सोचने को विवश करती क्षणिकायें।
उम्दा खयाल लाजवाब क्षणिकाएं
एक से बढ़कर एक क्षणिकाएं
आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल बृहस्पतिवार 08 - 11 -2012 को यहाँ भी है
.... आज की नयी पुरानी हलचल में ....
सच ही तो है .... खूँटे से बंधी आज़ादी ..... नयी - पुरानी हलचल .... .
बेहतरीन क्षणिकाएं..
बहुत खूबसूरत क्षणिकाएँ !
~सादर !
वाह बहुत खूब
मिलना - बिछड़ना जीवन की रीत है, इन्द्रधनुषी रंग से सजाना सवांरना होता है इसे... गहन भाव... आभार
वाह !!!
बहुत सुंदर क्षणिकाएं
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