Wednesday, November 7, 2012

तस्वीर...




1-
तस्वीर से टकराकर लौटती है
झरोंखे से पड़ती धूप
चौंधियाकर-
आँखों के बन्द होते ही
तुमसे बिछड़ना
याद आ जाता है ....

2-
तुम्हारा बिछड़ना,
और बिछड़कर

तस्वीर बन जाना,
धूप से नफ़रत है -
तब से ....

3-
भोर से ही बैठे थे 
तस्वीर सजाने को
धूप चढ़ी तो रंग निखरा

अब शाम ढलने को है
कहीं रात के अँधेरे में 
बिछड़ न जाना तुम.....

४-

बिछुड़ना उदासी फ़ैला रहा है
हम सबके बीच
कोई हँसाओ तो जरा सबको.....

५-
हँसती हुई तस्वीर देखो
ज़रा तुम भी
कैसे रंग भरती है जीवन में
और ये देखो
इंद्रधनुषी रंग
जाने का मन नहीं करता मेरा...

-अर्चना













11 comments:

Ramakant Singh said...

शुभ प्रभात .उदासी से शुरू होकर जीवन को नए आयाम देती आपके कुछ चुनिन्दा ख्वाबों ख्यालों में से एक अनुभूति . जिसे शब्द दिए हैं समय ने बहुत ही खुबसूरत एहसास जिसमे जीने का नया तरंग झलकता है.

प्रवीण पाण्डेय said...

सोचने को विवश करती क्षणिकायें।

अरुन अनन्त said...

उम्दा खयाल लाजवाब क्षणिकाएं

संजय भास्‍कर said...

एक से बढ़कर एक क्षणिकाएं

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल बृहस्पतिवार 08 - 11 -2012 को यहाँ भी है

.... आज की नयी पुरानी हलचल में ....
सच ही तो है .... खूँटे से बंधी आज़ादी ..... नयी - पुरानी हलचल .... .

Amrita Tanmay said...

बेहतरीन क्षणिकाएं..

Anita Lalit (अनिता ललित ) said...

बहुत खूबसूरत क्षणिकाएँ !
~सादर !

Anju (Anu) Chaudhary said...

वाह बहुत खूब

संध्या शर्मा said...

मिलना - बिछड़ना जीवन की रीत है, इन्द्रधनुषी रंग से सजाना सवांरना होता है इसे... गहन भाव... आभार

Bhawna Kukreti said...

वाह !!!

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

बहुत सुंदर क्षणिकाएं