Friday, April 19, 2013

वीनू - तुम बहुत याद आओगे !

 ये है वीनू ..... 
मैसूर मे वत्सल के घर वाली  गली का आम कुत्ता 

एक दिन बाहर से कूं -कूं की आवाज आने पर वत्सल ने बाहर जा कर देखा (आम तौर पर उसका आने का समय दस- साढ़े दस बजे का रहता है ) ये ही आवाज कर रहे थे वत्सल ने ब्रेड ले जाकर दी ,पहली ब्रेड को मुंह मे दबाकर वो भागते हुए गली के दूसरे छोर पर गया और ब्रेड रखकर वापस आया ,वत्सल ने दूसरी दी ये महाशय  दूसरी भी ले गए और फिर रखकर वापस आए तीसरी दी तो बैठ कर खा ली ,चौथी दी तो उठकर चल दिये ...

तीन -चार दिन तक यही क्रम चलता रहा वत्सल भी याद से रोज ब्रेड लाने लगा ,कभी जब ब्रेड भूल गया तो कार्नफ़्लेक्स देने पर यहीं खा लेता,रोटी दी - जो चीज वो मुंह मे दबा कर ले जा सकता ,जरूर लेकर जाता  वत्सल ने जाकर देखा की आखिर ब्रेड लेकर कहाँ जाता है तो पाया एक कुतिया थी ,जिसके लिए ब्रेड लेकर जाता था और दोनों उसे देकर आता था ,तीसरी वो खुद खाता था ,और हमेशा बस तीन ब्रेड...एक भी ज्यादा नहीं ....धीरे -धीरे रोज वत्सल के ऑफिस से आने का इंतजार करता था ...



अगर वत्सल और देर से आता तो गाड़ीदेखते ही उसके साथ दौड़ा चला आता ....




एकदम  साफ सुथरा रहता ----



अभी होली पर वत्सल घर गया तो ,वापस आने पर वीनू नहीं मिला :-(
पता नहीं चला कि कहां गया .... वत्सल बहुत याद करता है ... 

अभी मैं यहां हूं वत्सल के साथ बाहर जाते समय मैंने महसूस किया है की उसकी निगाह वीनू को ही खोजती है -नाम भी वत्सल ने ही दिया था ...
आज अपने फोटो फेसबुक पर अपलोड करते हुए ये फोटो मुझे दिखाए और वीनू के बारे मे बताया .... 

सच में !मिली तो नहीं उससे पर आभासी दुनिया के रिश्ते ऐसे ही तो बनाते हैं हम ....
तो मैंने आपसे मिलवाया --

काश! वीनू जहां भी हो अच्छा हो.... 

6 comments:

Girish Billore Mukul said...

अनोखा है वीनू

प्रवीण पाण्डेय said...

भावनाओं को समझने के लिये आँखें ही पर्याप्त हैं।

चला बिहारी ब्लॉगर बनने said...

प्यार के दुश्मनों ने कहीं अलग तो नहीं कर दिया दोनों को!! बहुत प्यारी घटना!!

शिवम् मिश्रा said...

:)












:(

Ramakant Singh said...

पालतू जानवर या पशु जीवन का अभिन्न अंग बन जाते हैं बस यही रंग बीनू के संग ...खुबसूरत जीव प्रेम सदभावना बनी रहे .....

शरद said...

bahut hi bhavuk....