शब्दों की तलाश में मेरी कविता
निकल पडी है दूर तलक
कालजयी होना है,
कहा था उसने मुझसे
समझी नहीं -
मेरे समझाने पर भी
बहुत रोका मैंने
ये कहकर
की कालजयी कविताएँ
जा चुकी है
काल के ही साथ . . .
और ले गई है साथ अपने
गूढ़ अर्थों वाले
आलंकारिक शब्दों को भी
जिन्होंने पकड़ रखा था
हाथ समासों का
जो घिसटते चले गए
उसी के साथ ...
सुना है काल के साथ ही
स्वाहा हो गए थे अरण्य भी ...
नतीजतन अब
मेरी कविता भटक रही होगी
सादे सपाट मैदान में ही कहीं
आशंकित हूँ ,
लौटेगी या नहीं
मेरे एकाकी जीवन में ........
कही बचे -खुचे
शब्द भी फुर्र न हों जाएं
उसके लौटने से पहले ....
12 comments:
सुना है काल के साथ ही
स्वाहा हो गए थे अरण्य भी ...
नतीजतन अब
मेरी कविता भटक रही होगी
सादे सपाट मैदान में ही कहीं
जंगल जिस तरह समाप्त हुये हैं उस पर प्रकाश डालती अच्छी रचना ।
शब्द सदा ही साथ रहेंगे, वही रहेंगे, जो अपने थे।
नतीजतन अब
मेरी कविता भटक रही होगी
सादे सपाट मैदान में ही कहीं,,,
बहुत सुंदर प्रस्तुति ,,,
Recent post: जनता सबक सिखायेगी...
There is no knowledge without poetry. Nice and straight !
bahut badiya
ek bar idhar bhi ayen
http://hinditech4u.blogspot.in/
कालजयी कविता है आज भी लेकिन उसका रूप बदला है बस.. आधुनिक युग में रहती है अलंकार और समास रहित...भला हो ब्लॉग़बुलेटिन का जिसने इधर की राह दिखाई.. :)
समय के साथ परिवर्तन कविता में भी दीखता है
सुना है काल के साथ ही
स्वाहा हो गए थे अरण्य भी ...
नतीजतन अब
मेरी कविता भटक रही होगी
सादे सपाट मैदान में ही कहीं
समय का प्रभाव कविता पर तो दीखता ही है
बहुत खूब
सार्थक और गूढ़
सादर आभार!
लाजवाब प्रस्तुति...बहुत बहुत बधाई...
शब्दों की तलाश में मेरी कविता
निकल पडी है दूर तलक
कालजयी होना है,
कहा था उसने मुझसे
Aasha kartee hun ki aapkee kavita zaroor kaljayee ho!
बहुत ही सुंदर प्रस्तुति.
विचारों की श्रृंखला का सुंदर चित्रण.
अयंगर.
सुन्दर भाव
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