Tuesday, May 7, 2013

जिन्दगी ---

जिन्दगी ---
जिन्दगी एक पड़ाव - न शहर न कोई गाँव...
जिन्दगी एक बहाव -जिसमें डगमगाती नाव...
जिन्दगी एक बिछाव -जिसपे लगता हर दाँव...
जिन्दगी एक झुकाव -संभलकर रखो अपने पाँव...
जिन्दगी है तो अनमोल -पर हर वक्त बे-भाव...
जिन्दगी एक दरख़्त - ढूँढता हर कोई यहाँ ठांव...
-अर्चना

4 comments:

Rajendra kumar said...

जिंदगी की सुन्दर व्याख्या,आभार.

दिगम्बर नासवा said...

जिंदगी क्या क्या नहीं है ..
बहुत खूब ... कुछ नई व्याख्याएं हैं ...

प्रवीण पाण्डेय said...

जितनी स्थिर, उतनी गतिमय,
कौन रचे इसकी परिभाषा,
हम तो बस जीने बैठे पल,
कैसी उलझन, कैसी आशा।

Unknown said...

bakhhobi vyankhya ki apne Zindgi ki